सोलह श्रृंगार
करवाचौथ के दिन व्रत का संकल्प करती है,
सूर्योदय से चंद्रमा के आने तक,
अपने मन को पति की याद में बहलाती है,
लंबी उम्र हो पति की यही दुआ करती है।
सजती है सवंरती है सोलह श्रृंगार करती है,
मनमोहनी बनकर अपने चांद का दीदार करती है,
उपहार की कोई परवाह नहीं ,
बस अपनी जीवनसाथी के प्यार की इच्छा रखती है।
पूरा दिन भूखे प्यासे रह कर रीत निभाती है,
एक टक टकी लगाकर चांद के दीदार का इंतजार करती है,
क्या पता उम्र बढ़ी न बढ़े,
प्यार जरूर बढ़ेगा ऐसा विश्वास जताती है।
लंबी उम्र की दुआ करके,
अपने प्रण को निभाती है,
हर वर्ष इस पावन दिन को,
करवाचौथ के रूप में मनाती है।
— डॉक्टर जय महलवाल