राजनीति

ईसाई बनता जा रहा है हिंदू राष्ट्र रहा नेपाल

कभी दुनिया का एक मात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल बहुत तेज़ी से ईसाई देश में बदलता जा रहा है। लगभग आठ हज़ार चर्चों और बीस हज़ार दक्षिण कोरियाई व सिंगापुरी पादरियों ( क्योंकि इनके चेहरे मोहरे नेपालियों से मिलते जुलते होते हैं और ये आसानी से नेपाली समाज में घुल मिल जाते हैं।) की मदद से अमेरिकी सरकार चर्च के माध्यम से इस अहिंसक जीनोसाइड को अंजाम दे रहा है। कागजों में नेपाल में पाँच लाख भी कट्टर ईसाई नहीं यद्यपि चर्च की अंतरराष्ट्रीय ससंस्थाएँ स्वीकार करती हैं कि यह संख्या अब पंद्रह लाख हो चुकी है। लेकिन नेपाल के हर गाँव, क़स्बे और शहर के लोग दबी ज़ुबान आरोप लगाते हैं कि नेपाल का हर दूसरा परिवार ईसाईयत के प्रभाव में आ चुका है यानि आधी आबादी ईसाई हो चुकी है। नेपाल में ईसाई धर्मांतरण का खेल सन् 2015 के विनाशक भूकंप के बाद बहुत तेज़ी से प्रारंभ हुआ। आर्थिक रूप से टूटे नेपाल की पुष्पकमल दहल “प्रचंड” सरकार ने उस समय भारी आर्थिक सहायता के नाम पर नेपाल को अमेरिका और चर्च के हाथों बेच दिया। प्रचंड के करीबी साथी और रिश्तेदार उनकी इस गंदी सच्चाई से बहुत व्यथित हैं और जिस क्रांति के लिए वो प्रचंड के साथ जुड़े थे उसको बिखरते देख भारी सदमे में हैं। कभी चीन की सहायता से वामपंथी माओवादी आंदोलन चलाकर राजशाही का तख्तापलट कर सत्ता क़ब्ज़ाने वाले प्रचंड सत्ता के खेल में इतना नीचे गिरते गए कि नेपाल की सनातन संस्कृति को ही चंद सिक्कों के लालच में अमेरिका के हाथों बेच दिया ।इसके बाद नेपाल की राजनीति के अनेक शीर्ष नेता अपना धर्म और ईमान बेचते गए और नेपाल का गरीब स्वाभिमानी हिंदू अनाथ और बेचारा होता गया। आज नेपाल दुनिया में सबसे तेजी से ईसाईयत में परिवर्तित होता राष्ट्र है और अनुमान है कि अगले दस वर्षों में घोषित रूप से ईसाई देश हो जाएगा। चर्च हर दिन गरीबी और भुखमरी के शिकार नेपाली हिंदुओ को चंद सिक्कों के लालच देकर ईसाई बनाते जा रहे हैं और सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ एवं मानवाधिकार संगठनों के मुँह में दही जमा हुआ है। नेपाल में अमेरिका और नाटो देशों के इस घृणित खेल पर भारत सरकार और संघ परिवार को चुप्पी बहुत निराश करती है। भारत के अंदर भी पिछले दस वर्षों में चर्च की साजिशों और मतान्तरण के खेल पर मोदी सरकार चुप है। क्या भारत भी अगले कुछ दशकों में हिंदू अल्पसंख्यक देश बन जाएगा ?

— अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया