कविता

बाती, जड़ और बीज

बाती जलती है
लेकिन होता है नाम
कि दीपक जल रहा है
बढ़ती है जड़
लेकिन हम कहते हैं
कि पेड़ बहुत लंबा है
नींव में दबते हैं पितर
लेकिन हमें दिखता है
केवल संतान का कलश
बीज तो मिट्टी में दब जाता है
और फ़सल लहराती है
सारी दुनिया में
तो क्यों न हमें
बाती या जड़
और नींव का बीज होना चाहिए ?
क्योंकि त्याग और संघर्ष
बुरी चीज़ नहीं हैं
क्योंकि भले ही हम दब जाएँ
लेकिन परिणाम तो
सुगन्धित और प्रिय होगा !

— सागर तोमर

सागर तोमर

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