राजनीति

सीमा से सैनिकों की वापसी – क्या पिघलने लगी भारत और चीन के बीच रिश्तों की बर्फ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में वैश्विक स्तर की गंभीर समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय हैं। प्रत्येक वैश्विक मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व विदेश मंत्री एस जयशंकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। युद्ध व आतंकवाद के कारण अशांत विश्व की दृष्टि अब वैश्विक शांति की  स्थापना के लिए भारत की ओर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए संकल्पवान हैं। प्रधानमंत्री मोदी रूस -यूक्रेन युद्ध से लेकर इजरायल-अरब के बीच चल रहे तनाव को कम करने के लिए नेताओं के संपर्क में हैं। तीसरी बार पद संभालने के बाद प्रधानमंत्री मोदी दो बार रूस की यात्रा पर जा चुके हैं। 2024 लोकसभा चुनावों के पूर्व ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भारत और रूस के मध्य संबंधों में कुछ खटास आ रही है लेकिन रूस के कजान शहर में आयोजित ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मध्य मैत्रीपूर्ण व्यवहार व वार्ता को देखकर राजनैतिक विश्लेषक आश्चर्यचकित रह गये। 

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पूरे विश्व की दृष्टि भारत के प्रधानमंत्री मोदी व चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मध्य होने वाली द्विपक्षीय वार्ता पर थी क्योंकि  ब्रिक्स सम्मेलन के पूर्व ही  भारत और चीन के मध्य सीमा विवाद को हल करने के लिए सहमति बन गई थी। भारत और चीन के शासनाध्यक्षों  के मध्य यह वार्ता गलवान दुर्घटना के लम्बे अंतराल के हुयी जिससे लगा कि अब भारत और चीन के मध्य जमी बर्फ अब पिघल रही है। 

दोनों शासनाध्यक्षों की भेंट के बाद यह समाचार भी आ गया है कि भारत और चीन के मध्य हुए समझौते के अनुसार पूर्वी लद्दाख सेक्टर में डेमचोक और देपसांग से भारत और चीन के सैनिकों की वापसी आरम्भ हो गई है। यह भारत की बड़ी रणनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक जीत है। डेमचोक में दोनों सेनाओं ने पांच -पांच टेंट हटा लिये हैं तथा यह प्रक्रिया लगातार जारी है। एक बार जब सभी टेंट और अस्थायी ढांचे पूरी तरह से हटा दिये जाऐंगे तब एक संयुक्त सत्यापन प्रक्रिया प्रारम्भ होगी। सत्यापन जमीन पर और हवाई सर्वेक्षण दोनों के माध्यम से किया जाएगा। प्रारंभिक ऑपरेशन के अंतर्गत डेमचोक में भारतीय सैनिक चार्डिंग नाला के पश्चिमी हिस्से की ओर पीछे हट रहे  हैं और चीनी सैनिक नाला के पूर्वी हिस्से की ओर  पीछे हट रहे हैं।दोनों तरफ करीब 10 से 12 अस्थायी ढांचे और करीब 12 तंबू बने हुए हैं जिन्हें हटाया जा रहा है। देपसांग इलाके में चीन ने अपने सैनिकों व वाहनों की संख्या काफी कम कर दी है और भारतीय सेना ने भी अपने सैनिक वहां से कम कर दिये हैं।   

ताजा घटनाक्रम को लेकर चीन का वक्तव्य भी आ गया है कि भारत- चीन सीमा पर तनाव कम हो जाने के बाद लद्दाख में सैनिकों की वापसी आरम्भ हो गई है । इस वक्तव्य में कहा गया हे कि दोनों पक्षों की अग्रिम पंक्ति की टुकड़ियाँ सुचारू रूप से प्रासंगिक कार्य कर रही हैं,  जो लंबे समय से चली आ रही गतिरोध चर्चाओं के बाद तनाव कम करने की शुरूआत है। ज्ञातव्य है कि ब्रिक्स सम्मेलन के पूर्व ही कई दौर की वार्ता होने के बाद  भारत के साथ सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में सहमति बनी थी अब वही सहमति धरातल पर उतारी जा रही है। यदि यह कार्य इसी प्रकार चलता रहा तो पूर्वी लद्दाख में मई 2020 के पूर्व की स्थिति वापस आ जाएगी। 

भारत और चीन के मध्य जो समझौता हुआ है उसके अनुसार पेट्रोलिंग को लेकर भी व्यापक सहमति बन गई है।  अब सर्दियों के मौसम में  दोनों देशों के सैनिक पीछे हटेंगे। बेहतर तालमेल के लिए दोनों देशों के कमांडर के बीच हर महीने एक बैठक होगी। यह बदले हुए भारत की मजबूत इच्छाशक्ति की जीत है। 

रूस के कजान शहर में आयेजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मोदी और शी जिनपिंग की वार्ता के बाद  भारत और चीन के मध्य अन्य अनेक मुद्दों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना नजर आ रही है। पचास मिनट की बैठक में तय हुआ है कि भारत और चीन सीमा विवाद को स्थाई रूप से सुलझाने के साथ – साथ आर्थिक मोर्चे पर भी मिलकर काम करेंगे। वार्ता में यह भी तय हुआ है कि सीमा पर शांति हो जाने के बाद अब मानसरोवर यात्रा प्रारंभ करने पर भी बैठक होगी। कजान में प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आपसी व्यापार बढ़ाने तथा सहयोग के नये क्षेत्र ढूँढने  और अनेक वैश्विक मुद्दों पर चर्चा हुई। भारत ओैर चीन के मध्य पांच साल के बाद तनाव कम होना एक महत्वपूर्ण है। 

यहाँ यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत और चीन के मध्य संबंधों में उतार चढ़ाव आता रहता है और इतिहास सिखाता है कि भले ही समझौते को धरातल पर उतारने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई हो चीन पर तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता जब तक कि सब कुछ संपूर्णता पर न आ जाये। हिंदी -चीनी भाई भाई के नारे की आड़ में चीन भारत पर पूर्व में आक्रमण और घुसपैठ दोनों ही कर चुका है और भारत की भूमि हड़प चुका है।  चीन की धोखेबाजी के ही कारण  गलवान घटना घटित हुई थी किंतु भारतीय सैनिकों ने चीन को मुहंतोड़ जवाब दिया और झड़प वाली जगह पर सीना तान कर खड़े रहे। वर्तमान समझौता इसीलिए हो भी सका है क्योंकि भारतीय सैनिकों ने चीन को पैर वापस खींचने को बाध्य कर दिया।

भारत अब 1962 वाला देश नहीं रहा। आज का भारत जो कहता है वह करता भी है। पहली  बार बिना बड़े युद्ध के  चीन को पीछे हटने पर मजबूर किया गया है। पहली बार भारत सरकार ने चीन के खिलाफ वास्तविक रूप से कड़े कदम उठाए। गलवान की घटना के बाद भारत ने चीन के साथ सीधी उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया, वीजा नियम सख्त किये गये । भारत में चीनी निवेश पर कड़े नियम लागू कर दिये गये जिसके कारण विगत चार वर्षों में चीन द्वारा प्रस्तावित अरबों डालर की अनुमोदन प्रक्रिया रुक गई। इसी प्रकार डाटा और  गोपनीयता के मुद्दों को सामने रखते हुए 300 चीन ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया गया जिसके कारण चीन को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।  

भारत को अभी भी बहुत अधिक सावधान रहना है क्योंकि भारत ओैर चीन के मध्य अरुणाचंल प्रदेश तनाव का बड़ा कारन बना रहेगा। आतंकवाद पर भी चीन की नीति स्पष्ट नहीं है, आतंकवाद के मुददे पर वह पाकिस्तान व आतंकियों के साथ खड़ा दिखाई देता है। उसने अभी तक पाक आतंकी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर उस पर प्रतिबंध  लगाने के बजाय संयुक्तराष्ट्र में वीटो किया है। वहीं संयुक्तराष्ट्र महासभा में भारत की स्थायी सदस्यता का अब केवल चीन ही विरोध  कर रहा है जिसके कारण  संयुक्तराष्ट्र में भारत को स्थायी सदस्यता नहीं मिल पा रही है और न ही वहां सुधार लागू हो पा रहे हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या चीन आतंकवाद के मुद्दे पर अपना दोहरा रवैया छोड़ेगा। व्यावसयिक और व्यापारिक दृष्टि से भी चीन के समकक्ष रहने के लिए भारत को वोकल फॉर वोकल पर बहुत बल देना होगा।

मोदी और जिनपिंग की ताजा वार्ता की सफलता की अग्निपरीक्षा शीघ्र ही हो जाएगी क्योंकि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स देशों ने आतंकवाद को साझा  खतरा बताकर निर्णायक कदम उठाने का संकल्प लिया है।रूस के कजान शहर में जारी साझा घोषणापत्र में आतंकवादी विचारधारा के प्रसार, उसके उद्देश्यों के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग, आतंकियों की सीमा पार आवाजाही व आतंकी वित्तपोषण को रोकने के लिए  निर्णायक कदम उठाने का संकल्प लिया गया है। ब्रिक्स घोषणा पत्र पर चीन के भी हस्ताक्षर हैं। 

ये देखना रुचिकर होगा कि चीन अपने इस हस्ताक्षर को कितनी गंभीरता से लेता है । 

— मृत्युंजय दीक्षित