कविता

भावनाओं का खिलौना

भावनाएं हैं मन का साज,
खिलौने जैसे रंग-बिराज।
खुशियों की हंसी, ग़म की छाया,
दिल के कोने में, सबको सज़ाया।

प्यार की मिठास, जैसे शहद,
दुख की कराह, जैसे कोई चुभन।
उम्मीद का सूरज, चढ़ता हर रोज,
निराशा की रात, घेरती जैसे कोई ठोस।

बचपन के खिलौने, मुस्कान लाते,
वृद्धावस्था की यादें, आंसू बहाते।
हर भावना में, एक कहानी छुपी,
जिंदगी की किताब, पल-पल में सजी।

खिलौनों की तरह, मन को सजाना,
भावनाओं का संग, सच्चा नज़ाना।
हर एहसास में, छिपा है जादू,
इंसान का दिल, भावनाओं का बाग़ है साज़ू।

जगती दुनिया में, रंगीनी बिखेरें,
भावनाओं का खिलौना, सबको साथ लेकर चलें।

— डॉ. आकांक्षा रुपा चचरा

डॉ. आकांक्षा रूपा चचरा

शिक्षिका एवम् कवयित्री हिंदी विभाग मुख्याध्यक्ष, कवयित्री,समाज सेविका,लेखिका संस्थान- गुरू नानक पब्लिक स्कूल कटक ओडिशा राजेन्द्र नगर, मधुपटना कटक ओडिशा, भारत, पिन -753010

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