केक काटने की होड़ में कमर तोड़ती सभ्यता
भारत की संस्कृति और सभ्यता दुनिया की सभी सभ्यताओं में सर्वश्रेष्ठ, वैज्ञानिक, तार्किक और सत्य की कसौटी पर सौ प्रतिशत शुद्ध है, किन्तु वर्तमान समय में पाश्चात्य जीवन शैली की अंधी दौड़ में भारत का समाज अपने मूल को छोड़कर अवैज्ञानिक, अतार्किक, असत्य पर आधारित पाश्चात्य जीवन शैली की ओर अग्रसर हो रहा है। वर्तमान समय में भारतीय समाज द्वारा जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ आदि के अवसरों पर केक काटकर फूहड़ता का जो नंगा नाच किया जाता है वह सभ्यता और संस्कृति तो तार – तार करने वाला होता है। हमारी सभ्यता में
जन्मदिन का प्रारम्भ भगवान सूर्य की प्रथम किरण के साथ होता था। प्रातः उठते ही सबसे पहले स्नान, फिर पूजा, और उसके बाद बड़ों का आशीर्वाद और सबकी बधाइयां लेना। यही हमारे लिए जन्मदिन होता था। लेकिन आजकल जन्मदिन की शुरुआत आधी रात में केक काटकर होने लगी है। सिर्फ जन्मदिन ही क्यों आजकल तो यह चलन ख़ुशी के हर मौके पर ही देखनें को मिलने लगा है। यह केवल युवा पीढ़ी तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि बड़ों- बच्चों, सभी के जन्मदिन या विवाह की वर्षगांठ पर रात में केक काटा जाने लगा है। यह चलन इस तरह हमारी संस्कृति में हावी हो चुका है कि देवी-देवताओं की जयंती पर केक काटे जा रहे हैं। क्या यह सही है? या फिर हम पाश्चात्य संस्कृति की अंधी नकल में फंसते जा रहे हैं, इस बदलाव के पीछे एक बड़ी वजह है- हमारी तेजी से बदलती जीवनशैली, जो मुख्य रूप से वैश्वीकरण, आधुनिकता, और सोशल मीडिया से प्रभावित हो रही है। हम आजकल हर चीज़ को ग्लैमरस बनाना चाहते हैं। जन्मदिन हो या कोई भी खुशी का मौका, उसे यादगार बनाने के लिए हम हर संभव कोशिश करते हैं। और इसमें पाश्चात्य संस्कृति की चमक-धमक हमें सबसे ज्यादा आकर्षित कर रही है। ऊपर से आजकल सोशल मीडिया पर दिखावा करने की होड़ सी लगी हुई है, जहाँ कोई भी नया ट्रेंड चला, तो हमें भी उसकी नक़ल करना जरुरी हो गया है। वरना हमें पुरानी सोच का माना जाएगा। और पुरानी सोच का माना जाना हमें गंवारा नहीं होगा इसलिए हम भेड़चाल में चलने के आदि हो गये हैं।
केक कटिंग का बढ़ता चलन इस बात का प्रतीक है कि हम आधुनिकता की आड़ में कहीं न कहीं अपनी सांस्कृतिक जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। ज़रूरी नहीं कि हर नया ट्रेंड सही हो और उसे अपनाया ही जाए, साथ ही यह भी सही नहीं है कि अपनी परंपराओं को छोड़ दिया जाए। हमारी संस्कृति की गहराई को समझते हुए हमें यह तय करना होगा कि हमें कौन नया ट्रेंड अपनाना चाहिए और कौन सा नहीं। या किसी ट्रेंड को अपनाने के पीछे कोई सार्थक कारण है या नहीं, इस पर भी विचार करना चाहिए। मैं आधुनिकता या पाश्चात्य संस्कृति का विरोधी नहीं हूँ। लेकिन बिना दिमाग लगाए नकलबाजी और दिखावा, मेरी समझ से परे है। इससे बेहतर है कि हम अपनी पुरानी परंपराओं को नए तरीके से अपनाएं, जिससे परंपराओं और आधुनिकता दोनों की अहमियत बनी रहे।
रात में केक काटने और दिखावा करने के बजाय, जन्मदिन का उत्सव अपनी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए भी तो मनाया जा सकता है। जैसे देर रात को जन्मदिन मनाने की जगह जन्मदिन पर सुबह जल्दी उठा जाए। अंग्रेजी में ‘हैप्पी बर्थडे’ गाने के बजाय इसे हिंदी या संस्कृत में गाया जाए। मोमबत्तियां बुझाने की जगह जन्मदिन की शुरुआत दीपक जलाकर किया जाए। शोर-गुल वाली पार्टियों की जगह कोई धार्मिक कार्यक्रम किया जाए जो मन को शांति और आनंद दे।
जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ भारतीय पंचांग से ही मनाने चाहिए। हम सब जानते हैं कि हमारे सारे पर्व,उत्सव जैसे दीपावली, होली, दशहरा, रक्षाबंधन आदि भारतीय पंचांग से ही मनाए जाते हैं यहां तक कि हम अपना गृह प्रवेश, विवाह की तिथि, जन्मकुंडली एवं अन्य सभी मांगलिक कार्यक्रम की तिथियों को पुरोहित से जानकार शुभ गृह, लग्न, मुहूर्त आदि को ध्यान में रखकर भारतीय पंचांग से ही निर्धारित होता है और वही जीवन में सार्थक परिणाम लाने वाला होता है किन्तु हम लोग अज्ञानता के कारण अर्थात् पाश्चात्य के अंधानुकरण में गहरा डूबने के कारण भारतीय काल गणना को दरकिनार कर अवैज्ञानिक, असत्य , अशुद्ध ईसाई कैलेण्डर के अनुसार जन्मदिवस ईत्यादि मनाने लगे हैं जो सर्वथा अनुचित है।
गुलामी के कालखण्ड में हमारे समाज में जो विकृति आई है उसे अब बाहर फेंक देना चाहिए, जीवन में गुलामी के चिन्हों को स्थान देना हमारी अज्ञानता का कारण सिद्ध होती है । अतः संपूर्ण भारतीय जनमानस को यह संकल्प करना चाहिए कि हम अपने स्वयं के स्वभाव में, अपने परिवार में, अपने मुहल्ले में, समाज में जहां कहीं गुलामी के अवशेष देखने को मिलें उन्हें दूर करना चाहिए। हम सब अपना जन्मदिन केक काटकर नही भारतीय पंचांग के अनुसार हवन, पूजन, रामायण पाठ, मंदिर दर्शन के साथ मनाना चाहिए यही हमारी संस्कृति है।
— बाल भास्कर मिश्र