कितने निष्ठुर
फौजी तुम कितने निष्ठुर ।
लाते हो जब टुकड़ों में
कलेजे के टुकड़ों को
तिरंगे मे लपेटकर
कैसे बज्र बना लेते
अपना उर
फौजी तुम कितने निष्ठुर ॥
बदहवास सी माँ जब कहती
मैने तो साबूत दिया था
वजन में कुछ
कम न तुला था
दाँत भरे पूरे थे उसके
सीना कुछ कम नहीं दिया था
फिर कस लेती अपने दंतुर
फौजी तुम कितने निष्ठुर ॥
तुमने गद्दारी की होगी
बेटे को झौंक दिया होगा
तुम कैसे बच के आये
बेटे को मौत सुला लाये
क्या- क्या न कहा
दुःख उसके उर
फिर कस लेती अपने मुखखुर
फौजी तुम कितने निष्ठुर ॥
बलिदान न खाली जायेगा
तेरा लाल अमर हो जायेगा
ऑसू न गिराना तू इस पर
बस फूल चढ़ाना अर्थी पर
अब मैं मरुँगी झुरि झुरि
मुझसे पहले गया ये निष्ठुर
फौजी तुम कितने निष्ठुर
बेटा तुम कितने निष्ठुर
— देवेन्द्रपाल सिह “बर्गली”