कफ़न और हेसियत
विनोद कुमार जैसे ही दुकान में घुसे दुकान के मालिक बृजमोहन ने कहा “कहिए क्या सेवा करूँ? विनोद कुमार ने कहा कि एक ऊनी शॉल दिखलाइए दुकानदार ये जनता था कि विनोद बाबू हमेशा उच्चकोटि का सामान ही पसंद करते थे अतः उसने दुकान के सबसे अच्छी क्वालिटी के शाल दिखाना शुरू किया तो विनोद कुमार ने शालो की क्वालिटी देखते हुए कहा इतनी हैवी नही बृज मोहन जी ??? कोई हल्की निकालिए
बृजमोहन ने कुछ हल्के शाल दिखाए तो विनोद कुमार ने कहा, “ऐसा है बृजमोहन भाई हमारी बहन उर्मिला है ना उसकी सास शांतिदेवी के लिए भिजवानी है। दुकानदार ने शॉल के ढेर को एक तरफ़ सरकाकर कुछ मीडियम क़िस्म की शॉलें खोल दी विनोद कुमार ने सिर हिलाते हुए कहा कि कुछ और दिखलाओ बृजमोहन हैरान था पर ग्राहक की मर्ज़ी के सामने लाचार भी विनोद कुमार ने साढ़े चार सौ रुपये की एक शॉल चुन ली और उसे पैक करवाकर घर ले आए और उसी दिन शाम को उसने वो शॉल बहन की सास को भिजवा दी!
शॉल पाकर शांतिदेवी बड़ी खुश हुई थी! ऐसा नही था कि शांतिदेवी के घर मे कोई कमी थी और उसके घर वाले भी उनके लिए कहते ही वो चीज मंगवा देते थे। लेकिन शांतिदेवी जिन पर अपना अधिकार समझती थी अक्सर उनसे किसी भी वस्तु को अपनत्व दिखाते हुए मांग लेती थी और फिर विनोद बाबू पर तो उनका विशेष स्नेह था इसलिए उन्हें शाल के लिए कहला भेजा था वैसे उनकी पसन्द भी बढ़िया थी। लेकिन दो-ढाई माह बाद ही एक दिन रात के वक्त उसके सीने में तेज़ दर्द हुआ और दो दिन बाद ही रात बारह साढ़े बारह बजे के आसपास वो इस संसार से सदा के लिए विदा हो गई!
उनकी अंत्येष्टि के लिए अगले दिन दोपहर बारह बजे का समय निश्चित किया गया ! सुबह-सुबह बृजमोहन अपनी दुकान खोल ही रहे थे कि विनोद कुमार वहाँ पहुँचे और कहा, “भाई बृजमोहन जी उर्मिला की सास गुज़र गई है एक चद्दर दे दो बृजमोहन ने कहा “ओह??? अभी कुछ दिन पहले ही तो आप उनके लिए गरम शॉल लेकर गए थे कितने दिन ओढ़ पाईं बेचारी ? उसके बाद बृजमोहन ने चद्दरों का एक बंडल उठाकर खोला और उसमें से कुछ चद्दरें निकाली विनोद कुमार ने चद्दरें देखीं तो उनका चेहरा बिगड़-सा गया और उन्होंने कहा कि बृजमोहन भाई ज़रा ढंग की चद्दरें निकालो उसके बाद विनोद कुमार ने जो चद्दर पसंद की उसकी क़ीमत थी पच्चीस सौ रुपए
बृजमोहन ने कहा, “विनोद बाबू वैसे आपकी मर्ज़ी पर मुर्दे पर इतनी महँगी चद्दर का कफ़न कौन डालता है विनोद कुमार ने कहा-बृजमोहन जी “बात महँगी-सस्ती की नहीं, बात हैसियत की होती है उर्मिला के ससुराल वालों और उनके दूसरे रिश्तेदारों को पता तो चलना चाहिए कि उर्मिला के भाई की हैसियत क्या है और उसकी पसंद कितनी ऊँची है।
मुर्दे को पूजे सारी दुनिया जिंदे की इज्ज्त कुछ भी नहीं मतलब-जितना अपनेपन का हेसियत का दिखावा और सहारा मरनेवाले इंसान या उसके परिवार से बाद मे करते है! अगर जीते जी उतना सहारा बन जाए तो शायद बात कुछ और हो!
— डॉ. शिवदत्त शर्मा