सर्वसिद्धिप्रद : कुंभ प्रयागराज
प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ की विशेषता अद्वितीय है, कुंभ विश्व का सबसे वृहद धार्मिक आयोजन है, जिससे देश- विदेश के लोग आकृष्ट होकर पुण्य एवं मोक्ष की कामना से बिना किसी आमंत्रण के खींचे चले आते हैं। कुंभ में संपूर्ण भारत की विविधता संजोए लघु रूप के दर्शन होते हैं इससे विशाल एवं भव्य समागम की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती तभी तो यूनेस्को ने महाकुंभ को मानवता की अद्भुत सांस्कृतिक विरासत को विश्व धरोहर रूप में मान्यता प्रदान किया है यह विश्व स्तरीय महापर्व वैश्विक पटल पर धार्मिक, पौराणिक, ज्योतिष एवं आध्यात्मिक तत्व निहित होने से राष्ट्र को शांति, सामंजस्य एवं सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधने का प्रतीक भी है। पौराणिक काल से चले आ रहे कुंभ का यह मेला मकर संक्रांति से प्रारम्भ होकर माघ मास की पुर्णिमा तक चलता है गोस्वामी जी लिखते हैं कि –
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।। सभी प्रकार के फलों, मोक्ष प्रदाता प्रयागराज का कुंभ भारतवर्ष के प्रत्येक जन – जन के ह्रदय में बसा हुआ है। संपूर्ण भारतवर्ष के दर्शन किसी को यदि एक स्थान पर करना हो तो वह स्थान होगा श्री प्रयागराज का कुंभ। प्रयागराज के कुंभ में आज भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण दुनिया के लोग श्रद्धा भाव से आकर त्रिवेणी संगम में स्नान कर अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं भारत के तो लगभग सभी शहरों , गांवों, सुदूर क्षेत्र जंगल, पहाड़ों पर निवास करने वाले हिंदू बहुत ही भक्ति भावना के साथ कुंभ में आने को लालायित रहते हैं। वह प्रति वर्ष माघ माह में प्रयाग में त्रिवेणी संगम में स्नान करने की बाट जोहते रहते हैं कि कब माघ आए और हम सपरिवार स्नान करने को प्रयाग जाएं इस प्रकार सभी के मनों में प्रयाग रचा – बसा हुआ है। प्रयागराज, भारत वर्ष का विशिष्ट धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्र, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर प्रथम यज्ञ किया था। इस प्रथम के पर ‘प्र’ एवं ‘याग’ अर्थात ‘यज्ञ’ से मिलकर इस अलौकिक भूमि का नाम प्रयाग पड़ा। जिस प्रकार ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चंद्रमा श्रेष्ठ है। उसी प्रकार समस्त तीर्थों में प्रयागराज सर्वोत्तम है।
ग्रहाणां च यथा सूर्यो, नक्षतृणां यथा शशि।
तीर्थाना मुत्तमं तीर्थ, प्रयागा ख्यमनुत्तमम ।।
यह विश्व का एकमात्र पवित्र स्थल है जहां पुण्य सलिला पतित पावनी माँ गंगा, यमुना एवं सरस्वती का त्रिवेणी का संगम होता है अतः यह संगम नगरी से भी विश्व विख्यात है।
प्रयागराज में भारतीय संस्कृति के महापर्व “कुंभ” आयोजन का प्रमुख केंद्र है जिसका संदर्भ देवों एवं दानवों के मध्य समुद्र मंथन उपरांत उत्पन्न अमृत कलश से है। तीर्थराज के कुंभ में स्नान मात्र से सौ अश्वमेध यज्ञ, हजारों तीर्थ यात्रा एवं करोड़ गायों के दान का पुण्य प्राप्त होता है।
श्रीरामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी जी ने प्रयागराज की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है कि
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।
अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा।।
भारतीय वाङ्मय में श्री प्रयागराज की महिमा बहुत स्थान पर सुन्दर प्रकार से की गई है। भारतवर्ष का यह आयोजन केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु समाजिक सद्भाव, पर्यावरण, प्रकृति के प्रति भारतीय दृष्टिकोण को भी परिभाषित करता है। मैने देखा है कि देश के अलग-अलग भागों से आए नाना प्रकार के लोग चारों तरफ बैठे है। उनके पास सोने की कोई जगह नहीं थी इसलिए वे अलग-अलग जगहों पर आग जलाकर उसके चारों ओर बिखरे, अपनी भाषा व बोली में अपनी-अपनी संस्कृति और परंपरा के गीत गाते नाच रहे थे। मानव जाति के सबसे अधम इंसान से लेकर उत्तम इंसान, सभी वहां मौजूद थे। हजारों साल से लोग इसी तरह यहां जमा होते आ रहे हैं। इसका एक अपना सामाजिक आधार होने के साथ-साथ विशेष आध्यात्मिक शक्ति भी है। कुंभ में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत पहचान को भूलकर सभी के साथ एकरस हो जाता है यहां कोई ऊंच – नीच नहीं होता है। पर्यावरण के प्रति हमारी आस्था भी यहां प्रस्फुटित होती दिखती है यहां कल्पवास करने वाले संत, महात्मा, ऋषि, तपस्वी, गृहस्थ सभी प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर संगम के तट पर भूमि शयन करते हैं अद्भुत होता है, कल्पवास का वर्णन शब्दों से कर पाना कठिन है इसे केवल भावों में ही वर्णित किया जा सकता है। ‘सर्व सिद्धि प्रदा कुंभ’ कुंभ सभी प्रकार की आध्यात्मिक शक्तियों को प्रदान करता है महाकुंभ आध्यात्मिक महत्व का एक गहन प्रतीक है। आइए हम सब आने वाले कुंभ में सहभागी व प्रत्यक्षदर्शी बन भव्य भारत, दिव्य भारत की संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन में अपना भी हिस्सा दें।
— बाल भास्कर मिश्र