सामाजिक

शिक्षा और  बच्चे

दिल्ली दुनिया के नक्शे पर सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से एक होने का हैरान कर देने वाला दर्जा प्राप्त कर चुकी है। प्रदूषण क्यों होता है? इस सवाल का पता लगाने के लिए शासन और प्रशासन डटे हुए हैं। विशेषज्ञ और वैज्ञानिक जो भी कहते रहे लेकिन दिल्ली में प्रदूषण की वजह से सांस लेना भारी हो रहा है। सारी दिल्ली गैस का चैंबर बन चुकी है। एयर क्वालिटी इंडेक्स अर्थात वायु गुणवत्ता का लेवल 400 पार हो चुका है। इसीलिए इस कड़ी में दो दिन पहले जब पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के स्कूल बंद करने का ऐलान किया गया तो हर कोई  हैरान रह गया लेकिन बच्चों को स्वस्थ बनाए रखना बहुत जरूरी है क्योंकि बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं। इसके साथ ही उनकी पढ़ाई-लिखाई अब ऑनलाइन की जायेगी यह जानकार थोड़ा अच्छा भी लगा और हैरानी भी हुई।

 कोरोना के दिनों में जब लोग मास्क लगाते थे और नियमों का सख्ती से पालन हुआ तो अब प्रदूषण से बचने के जो नियम हैं उनका पालन सख्ती से क्यों नहीं हो रहा? जिस भारत ने कोरोना जैसी महामारी को शिख्सत दी उस भारत की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण अब विनाशकारी असर दिखाने लगा है। मैं सीधा बच्चों पर केंद्रित होना चाहती हूं और पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के ऑनलाइन जुड़ने को लेकर थोड़ी संतुष्ट इसलिए हूं कि उन्हें प्रदूषण से बचा लिया जायेगा लेकिन साथ ही चिंता की बात यह है कि बच्चों के मानसिक विकास का यह तरीका बचपन की एक मौज-मस्ती की स्टेज को प्रभावित जरूर करेगा। ऑनलाइन स्टडी एक सुरक्षित तरीका हो सकता है लेकिन इसके व्यावहारिक पहलू और जमीन कुछ अलग ही कहानी कहती है। बड़े-बड़े और प्राइवेट स्कूलों में पांचवीं तक के बच्चों के पास मोबाइल नहीं होते लेकिन ऑनलाइन स्टडी का मतलब है उनके लिए मोबाइल अनिवार्य कर देना। जो मोबाइल हमारे बचपन की मासूमियत छीन चुका है ऐसे में उन बच्चों का मोबाइल से कई-कई घंटे जुड़ना थोड़ा सा हैरान करने वाली स्थिति जरूर है। प्राइवेट स्कूल के बच्चों के लिए माता-पिता मोबाइल की व्यवस्था कर सकते हैं लेकिन सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए मां-बाप मोबाइल की व्यवस्था कैसे करेंगे और फिर प्रश्न यह भी है कि बच्चे मोबाइल को महज मनोरंजन के लिए प्रयोग करेंगे या फिर स्टडी के लिए गंभीर भी होंगे, यह एक बड़ा प्रश्न है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि छोटे बच्चों के लिए प्रदूषण से बचाने की चिंता तो की जा रही है तो क्या छठी से लेकर 12वीं के बच्चों पर प्रदूषण का असर नहीं पड़ता लेकिन इस मामले में मेरा जवाब यह है कि छोटी उम्र के बच्चों को प्रदूषण से बचाना बहुत जरूरी है।

प्रदूषण के क्या कारण हैं, क्याें नहीं यह काम शासन, प्रशासन और विशेषज्ञ जानें लेकिन केवल पराली जलाना ही प्रदूषण फैलाने का बड़ा कारण नहीं। व्यक्तिगत तौर पर मैंने महसूस किया है कि सड़कों पर वाहनों की लंबी-लंबी कतारें और जिस रफ्तार से व्हीक्ल आगे बढ़ते हैं वे बड़ी तेजी से खतरनाक गैसें भी छोड़ते हैं। गैस उत्सर्जन प्रदूषण फैलाने का एक बड़ा कारण है और इस पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। डीजल चालित वाहनों के दिल्ली प्रवेश पर ग्रेप-3 के तहत अब पाबंदी लगा दी गयी है। यह कैसी व्यवस्था है कि महंगे वाहनों के चलने पर पाबंदी लग रही है, यह सवाल भी सोशल मीडिया पर उठ रहे हैं लेकिन डीजल या अन्य वाहन उत्सर्जन तो एक जैसा ही करते हैं। दिल्ली के एक-एक घर में कई-कई वाहन बताए जाते हैं और वाहनों के चलाए जाने पर या सड़कों पर उतरने को लेकर ठोस व्यवस्था है या नहीं। हालांकि ऑड-ईवन लागू भी किया गया था। शुरूआती दिनों में यह प्रयोग सफल भी रहा लेकिन जब सड़कों पर सैकड़ों की जगह हजारों और हजारोंं की जगह लाखों वाहन एक साथ उतरेंगे तो फिर खुद ही अंदाजा लगाइये गैस उत्सर्जन क्या करेगा?

पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई उनके जीवन में तनाव ला सकती है। मनोरंजन पक्ष हावी रहेगा व शरारतें या फिर गंभीरतापूर्वक स्टडी होगी। इस सवाल का जवाब सोशल मीडिया पर मांगा जा रहा है। दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए खुद ही फैसला करना होगा। कुछ काम साइकिलों से या सार्वजनिक वाहनों से या वाहन शेयरिंग करके भी किये जा सकते हैं। उद्देश्य एक ही होना चाहिए कि सड़कों पर ज्यादा वाहन न हो लेकिन अब स्थिति बिगड़ चुकी है और वाहनों के गैस उत्सर्जन को भी कंट्रोल करना होगा, और भी उपाय करने होंगे। देखना है कि हर साल की तरह नवंबर में होने वाले प्रदूषण से दिल्ली वालों को मुक्ति कैसे मिलती है।

छोटे बच्चों का जैसे मिट्टी में खेलना जरूरी है, वैसे ही कक्षा में जाकर पढ़ना भी जरूरी है। क्योंकि बच्चे बहुत कुछ सिखते हैं। आपसी सहयोग, कम्पीटिशन, नई बातें, एर्जेस्टमैंट सभी कुछ स्कूल से सिखते हैं और जीवन का बेस बनता है तो सब मिलकर इसका समाधान ढूंढें।

— विजय गर्ग

विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट

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