राजनीति

बसपा के लिये एक बार फिर बुरा सपना तो साबित नहीं होंगे उप चुनाव

उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में भाजपा और समाजवादी पार्टी में  किसको कितनी सीटें मिलेंगी,इसको लेकर तो चर्चा हो सकती है,परंतु उप चुनाव में जिस तरह का मतदान देखने को मिला उससे यही लगता है कि बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर हासिये पर ही खड़ी नजर आई। किसी भी सीट पर बसपा फाइट करती नहीं दिखी। बसपा सुप्रीमों मायावती के लिये लगता है अब आगे की राह आसान नहीं रह गई है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि बसपा का कोर वोटर कहलाने वाले दलितोें ने अब भाजपा-सपा के रूप में अपनी नहीं मंजिल चुन ली है।इसी वजह से कमोबेश सभी जगह बसपा मुख्य लड़ाई से गायब दिखी,जिसके चलते  भाजपा और सपा सीधी लड़ाई में आ गए हैं। बसपा की तरह ही चन्द्रशेखर आजाद की आजाद पार्टी भी कोई गुल खिलाते नहीं दिखी है। कई सीटों पर दलित मतदाता मुख्य रूप से भाजपा-सपा के बीच बंटे हुए दिखाई दिए, जिसने बीजेपी-सपा के जीत के आकड़े को थोड़ा उलझा दिया है, जिसके पक्ष में दलित मतदाता ज्यादा जायेगें, परिणाम उसी के पक्ष में रहेगा। सबसे बड़ी बात यह रही कि मुरादाबाद की मुस्लिम बाहुल्य कुंदरकी में भाजपा मुस्लिम मतों में सेंध लगाते हुए दिखी, जिसे काफी चौंकाने वाला माना जा रहा है।उधर,कानपुर की सीसामऊ में सपा और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने को अनुमान है। यहां के करीब 5.0 मतदान केंद्रों में से आधे से ज्यादा में बसपा प्रत्याशी का बस्ता नहीं दिखा।
   समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी के कटेहरी उपचुनाव में मतदान से पहले की स्थिति कुछ और थी। तब मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा था। संभावना थी कि बसपा प्रत्याशी अमित वर्मा अपने सजातीय मतों में सेंधमारी कर सपा को तगड़ी चोट देंगे, लेकिन मतदान के दौरान ऐसा प्रतीत नहीं हुआ। अंत में भाजपा के धर्मराज निषाद और सपा की शोभावती वर्मा के बीच ही सीधा मुकाबला दिखा। हां, बसपा का प्रदर्शन कमल व साइकिल का संतुलन बिगाड़ सकता है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार बसपा ने अपने पारंपरिक वोटों के साथ ही जातिगत समीकरण को साधा तो सपा का गणित बिगड़ सकता है।यहां सीधा मुकाबला सपा प्रत्याशी तेजप्रताप यादव और भाजपा प्रत्याशी अनुजेश सिंह में रहा।
मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में कई जगह पुलिस और वोटरों के बीच नोकंझोंक होते दिखी। यहां मुकाबला बीजेपी समर्थित रालोद प्रत्याशी मिथलेश पाल और सपा प्रत्याशी सुम्बुल राना के बीच सिमटता हुआ नजर आया। बसपा और आसपा प्रत्याशियों के बीच तीसरे नंबर की लड़ाई दिखी। मुस्लिम मतों की अधिकता वाले गांव के मत प्रतिशत से नतीजे तय होने के आसार बन गए हैं।अति पिछड़ा वर्ग और जाट मतों की अधिकता वाले गांव में रालोद प्रत्याशी के पक्ष में रुझान नजर आया। भोकरहेड़ी, करहेड़ा, बेलड़ा समेत अन्य गांवों में रालोद प्रत्याशी के पक्ष में मतदाताओं की लामबंदी दिखी। मुस्लिम मतों की अधिवक्ता वाले ककरौली, सीकरी, मीरापुर, जटवाड़ा, जौली में सुबह मुस्लिम मतदाता सपा, बसपा और आसपा के बीच बंटते नजर आए। ककरौली में पथराव के बाद मुस्लिम मतों की लामबंदी सपा प्रत्याशी के समर्थन में अधिक दिखी। मीरापुर में अनुसूचित जाति के मतदाताओं में बिखराव नजर आया। युवाओं ने सपा को तरजीह दी, जबकि अन्य मतदाताओं की पहली पसंद बसपा नजर आई। गुर्जरों के मतों के बंटवारे पर भी सबकी निगाह बनी हुई है।
    प्रयागराज की फूलपुर विधानसभा उपचुनाव में करीब एक दर्जन प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे थे लेकिन, मुख्य मुकाबला भाजपा-सपा के बीच है। कुछ इलाकों में सपा भारी दिखाई दी तो कुछ में भाजपा। दलित वोटरों ने किसके पक्ष में मतदान किया, इस पर परिणाम तय होगा। उधर, अलीगढ़ की खैर सीट पर भी सपा और भाजपा प्रत्याशी के बीच सीधी टक्कर दिखी।
      बीजेपी और समाजवादी पार्टी के अपनी-अपनी जीत के दावों के बीच  चुनाव आयोग ने उप चुनाव के वोटिंग प्रतिशत की भी जानकारी दे दी है। मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर सबसे ज्यादा मतदान हुआ है तो सबसे कम वोटिंग गाजियाबाद सीट पर रही। मीरापुर सीट पर 57.1 फीसदी, कुंदरकी में 57.7 फीसदी, गाजियाबाद में 33.3 फीसदी, खैर में 46.3 फीसदी, करहल में 54.1 फीसदी, सीसामऊ में 49.1 फीसदी, फूलपुर में 43.4 फीसदी, कटेहरी में 56.9 फीसदी और मझवां में 50.4 फीसदी मतदान हुआ. इस तरह किसी भी सीट पर मतदान 60 फीसदी का आंकड़ा पार नहीं कर सका. वहीं, 2022 के विधानसभा चुनाव में हुए वोटिंग के लिहाज से देखें तो उपचुनाव वाली 9 सीटों पर 62.14 फीसदी मतदान हुआ था. सीसामऊ में 56.85 फीसदी, खैर सीट पर 60.80 फीसदी, कुंदरकी सीट पर 71.26 फीसदी, मीरापुर सीट पर 68.65 फीसदी, करहल सीट पर 66.11 फीसदी, गाजियाबाद सीट पर 51.77 फीसदी, कटेहरी सीट पर 62.5 फीसदी, फूलपुर सीट पर 61.1 फीसदी और मझवां सीट पर 60.3 फीसदी वोटिंग हुई थी. तब सपा ने चार, बीजेपी ने तीन, आरएलडी ने एक और एक सीट निषाद पार्टी ने जीती थी.

— संजय सक्सेना

संजय सक्सेना

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