कविता

दिल ने चाहा जो

एक ख्वाब जिसमें कुछ अधूरा नहीं मिला
नैन सजाने को सुरमा नहीं मिला
दिल पर पत्थर रखकर इंतजार किया उसका
दिल ने चाहा जो, पूरा नहीं मिला

चांद तक बोला हर रात उसको
और किस हद तक चाहें उसे
उसका प्यार कभी मुझे पूरा नहीं मिला
दिल ने चाहा जो, पूरा नहीं मिला

पत्थर में भगवान मिले
सूखी धरती पर फूल खिले
उसपर मगर मुझे अधिकार नहीं मिला
दिल ने चाहा जो, पूरा नहीं मिला

राहगीर रास्ते बना बैठे
कोयले को कनक बना बैठे
उसके दिल में मुझे ठिकाना नहीं मिला
दिल ने चाहा जो, पूरा नहीं मिला

सोचा कुरेदे जख्म भर रहे हैं
गम के मौसम बदल रहे हैं
जख्मों को मेरे आराम नहीं मिला
दिल ने चाहा जो, पूरा नहीं मिला

ज्यादा जताकर गुनाह कर बैठे
आंसू बहाकर सजा ले बैठे
एहसासों को मेरे मान नहीं मिला
दिल ने चाहा जो, पूरा नहीं मिला

सौम्या अग्रवाल

पता - सदर बाजार गंज, अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तक - "प्रीत सुहानी" ईमेल - [email protected]