चिकित्सा में आत्मनिर्भरता के कदम
केंद्र सरकार ने पिछले एक दशक में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के साथ आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कई पहल की है। इन कोशिशों से दुनिया में भारत की साख बेहतर हुई है। चंद्रयान 3 3 की सफलता के बाद केंद्र सरकार ने अब स्वास्थ्य क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों को नया ‘काम’ सौंपा है। इससे भारत चिकित्सा के क्षेत्र में छलांग लगाने में कामयाब हो सकता है। यह ऐसी योजना है, जो आजाद भारत में पहली बार एक चुनौती के के रूप में पूरी की जानी है। इस तरह की योजना को दुनिया में पहले कभी किसी देश ने नहीं लागू किया। यानी जिन बीमारियों का इलाज कोई नहीं ढूंढ पाया, उसे भारतीय वैज्ञानिक ढूंढेंगे। इसके लिए सरक ने विश्व में प्रथम चुनौती लक्ष्य भी तय किया है, जिसकी जिम्मेदारी नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र (आइसीएमआर) को सौंपी है। इससे दुनिया में चिकित्सा क्षेत्र में देश की साख एक नए भारत के रूप में बनेगी और यह यह अमेरिका, पेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस, जापान और जर्मनी के साथ आगे बढ़ सकेगा।
जिन विकसित देशों ने चिकित्सा क्षेत्र में नए और मौलिक शोध के जरिए आश्चर्यजनक परिणाम हासिल किए हैं, वहां के वैज्ञानिकों को सभी जरूरी सुविधाए दी गई भारत भी इसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। हमारी जो वैज्ञानिक मेधा, धन, सुविधाएं और उदारीकरण के कारण विदेश चली जाती थी, वह अब भारत में रह कर अपनी विलक्षण प्रतिभा का लोहा मनवाएगी, क्योंकि केंद्र सरकार शोधार्थी वैज्ञानिकों को सभी कुछ मुहैया करा रही है, जिससे चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल हो सकें। सरकार की इस नई योजना को पूरा करने के लिए देश के चिकित्सा संस्थानों को मिल कर काम करना होगा। कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार एक पत्र भी जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरे चंद्रयान 3 से प्रेरित होकर दुनिया में पहली बार चिकित्सा के क्षेत्र में भारत एक ऐसी पहल करने जा रहा है, जिससे उसके वैज्ञानिकों को नए और लीक से हट कर विचारों पर काम करने का 1 मौका मिलेगा। गौरतलब है कि देश में वैज्ञानिकों ने कोरोना के दौरान कोविड 19 के टीके तैयार करने अपनी पूरी शोध शक्ति लगा दी थी। केंद्र सरकार ने तीन तरह के टीके तैयार करवाए थे, जो दुनिया के अनेक देशों को सहयोग के रूप में भेजे गए थे। इससे भारत की दुनिया में प्रशंसा हुई। । केंद्र सरकार शोध के जरिए दवा खोजने और उपचार करने
के मद्देनजर आगे बढ़ रही वष्य में हो सकने वाली नई बीमारियों के उपचार के लिए शोध वास्ते केंद्र सरकार की तरफ से धन मुहैया कराया जा रहा है निश्चित है कि इससे चिकित्सा जगत में भारत विकसित देशों में शुमार होने की कतार में खड़ा हो सकेगा। यदि भविष्य में हो सकने वाली नई बीमारियों का बेहतर उपचार हमारे चिकित्सा वैज्ञानिकों ने खोज लिया, तो भारत दुनिया का महत्त्वपूर्ण चिकित्सा शोधार्थी के रूप में प्रतिष्ठित हो जाएगा।
केंद्र सरकार ने आइसीएमआर के जरिए सबसे जटिल बीमारियों के उपचार के लिए वैज्ञानिकों को तैयार करने का निश्चय किया है। इससे वे जटिल बीमारियों का उपचार करने के लिए प्रेरित होंगे। इस पहल का उद्देश्य लीक से हट कर भविष्य की तैयारियों, नए ज्ञान सृजन और खोज को बढ़ावा देना है। इससे बेहतर औषधियां और नए टीके मिलेंगे। लोगों का आसानी से उपचार हो सकेगा। आइसीएमआर के मुताबिक, अगले कुछ सप्ताह में सभी प्रस्तावों को एकत्रित करने के बाद समिति इनका मूल्यांकन करेगी और उसके बाद अंतिम प्रस्तावों पर शोध होंगे, जिन्हें अधिकतम तीन साल में पूरा करना होगा। इस पहल में सभी सरकारी मेडिकल कालेज, देश के सभी शीर्ष चिकित्सा संस्थानों के साथ दिल्ली सहित सभी एम्स, आइसीएमआर के सभी संस्थानों के अलावा यूजीसी, एआइसीटीई और एनएमसी में पंजीकृत संस्थानों के शोधकर्ता शामिल हो सकते हैं। इस लिहाज से देखें तो देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थानों और शिक्षा संस्थाओं एवं संगठनों के जरिए आजादी के बाद चिकित्सा क्षेत्र में गंभीर पहल की गई है।
चिकित्सा के क्षेत्र में भारत प्रत्येक नागरिक को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में अभी बहुत पीछे है। ऐसे में लाइलाज, असंभव लगने वाली बीमारियों का इलाज करने के मद्देनजर केंद्र सरकार की यह यह पहल स्वागतयोग्य है। | मगर सवाल है कि क्या सरकार कैंसर, पक्षाघात, मधुमेह, हृदयघात और अस्थमा जैसी बीमारियों का बेहतर इलाज, खासकर गांवों में आम आदमी को, उपलब्ध करा पाई है।
केंद्र की नीतियां इस वक्त बेहतर योजनाओं के जरिए सबको समुचित सहूलियतें | मुहैया कराने 1 की है। है। इनका | उद्देश्य हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाते हुए कामयाबी की उन बुलंदियों को हासिल करना है, जो विकासशील देशों के देशों के लिए करीब नामुमकिन माना जाता है। चिकित्सा क्षेत्र में नए शोध कराने और बेहतर परिणाम हासिल कर उसे मानवता के उपयोग के लिए देने की नीति निश्चय ही भारत की सर्वजन हिताय वाली नीति का ही हिस्सा है। भारत में सात दुर्लभ रोगों में से महज पांच फीसद बीमारियों का इलाज ही ही संभव है। अभी देश में देश में हालत यह है कि बीस में से एक व्यक्ति किसी न किसी रोग से पीड़ित है और उसका उपचार समुचित तरीके से नहीं हो पा रहा है। आइसीएमआर के मुताबिक, देश में सात करोड़ और दुनिया में 35 में 35 करोड़ लोग दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त हैं।
भारत में ऐसी अनेक बीमारियों से लोग पीड़ित हैं, जिनके लक्षण देख कर डाक्टर समझ पाते कि यह बीमारी’ है क्या! मिसाल के तौर पर ‘एसेंथामोएबा केराटाइटिस’ ‘ऐसी बीमारी है जिससे आदमी अंधा हो जाता है। इसका समुचित इलाज भारत में उपलब्ध नहीं है। | इसी तरह ‘क्रुत्जफेल्ट-जैकब’ ऐसी लाइलाज बीमारी है, जिसकी वजह से घातक मस्तिष्क घात हो जाया लक्षण के आधार पर समुचित तरह हजारों बीमारियां हैं, जिनके लिए सस्ता, सहज और कारगर इलाज खोजने की जरूरत है। केंद्र सरकार को चाहिए कि लाइलाज ● बीमारियों । और दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए सबसे पहले गौर करे, जिस पर अभी शोध की बहुत जरूरत है। वर्तमान में केंद्रीय तकनीकी समिति (सीटीसीआरडी) की सिफारिश पर असाध्य रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति के तहत 63 रोगों को ही शामिल किया गया है। इसमें प्रति रोगी 50 लाख तक की वित्तीय सहायता दी जाती है। भारत में चिकित्सा उपचार केंद्रों की संख्या जरूरत से बहुत कम कम है। गांवों में तो स्थिति और खराब है। इसलिए इस तरफ समुचित ध्यान जरूरत है। इसी तरह आबादी के मुताबिक चिकित्सकों की संख्या बहुत कम है। गांवों में एक लाख आबादी पर एक डाक्टर ही उपलब्ध है। । इसलिए अब भविष्य में होने वाली बीमारियों के नए उपचार की खोज करनी होगी। वहीं, वर्तमान में लाइलाज, दुर्लभ और अति गंभीर बीमारियों के सहज और सबको समुचित उपचार उपलब्ध कराने पर भी सोचने की जरूरत है।
— विजय गर्ग