पुस्तक समीक्षा

अंधेरे में रखे गए किरदारों की साहसिक खोज 

वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश सौरभ द्वारा संपादित ‘गुलाबी गलियां’ देशभर के 63 लघुकथाकारों की लघुकथाओं का एक विचारोत्तेजक और भावनात्मक रूप से प्रेरित लघुकथा संग्रह है, जो वेश्याओं के मार्मिक जीवन पर प्रकाश डालता है। हाशिये पर रहने वाले समुदाय के भीतर मौजूद संघर्ष, करुणा और मानवता पर व्यापकता से यह संग्रह गहन विमर्श की वकालत करता है। यह संकलन रूढ़ियों और घिसी-पिटी बातों को दूर करते हुए वेश्याओं के पेशे की जटिलताओं को मार्मिकता एवं कुशलता से प्रस्तुत करता है। सभी लघुकथाएं संवेदनशील काल्पनिक गुलाबी गलियों पर आधारित हैं, ऐसी गलियां जहां के जीवंत रंग उस अंधेरे को दर्शाते हैं, जो अक्सर यहां के निवासियों के जीवन में काले साये की तरह छाये रहते हैं।

    प्रत्येक लघुकथा का कथानक एक अनोखा परिप्रेक्ष्य है, जो उन व्यक्तियों को मानवीय बनाता है, जिन्होंने ऐसा जीवन चुना है, या मजबूरन ऐसा जीवन जीया है, जिसे समाज अक्सर निर्दयता से आंकता है एवं हेय दृष्टि से देखता है। संकलन में जो बात सबसे अधिक उभरकर सामने आती है, वह है प्रस्तुत की गईं लघुकथाओं की विविधता। लघुकथाकार संवेदनशील विषयवस्तु को कुशलतापूर्वक नेविगेट करते हैं, इसे अनुग्रह और सहानुभूति के साथ संभालते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक चरित्र की आवाज शोषण या सनसनीखेज के बिना सुनी जाए। संकलन की ताकत पूर्वकल्पित धारणाओं को चुनौती देने और आत्मनिरीक्षण को प्रेरित करने की क्षमता में निहित है। यह पाठकों को अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों का सामना करने और सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाने के लिए मजबूर करता है, जो अक्सर यौन कार्य से जुड़े कलंक को कायम रखने में योगदान करते हैं।

   हालांकि, कुछ कहानियां पचाने में भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन लचीलापन और मानवता का व्यापक विषय प्रबल है। पूरे संकलन में लेखन विचारोत्तेजक और गहन है। गंभीरता और रोचकता का एक साथ अद्भुत निर्वाह कहानियों के बीच एक सहज परिवर्तन की अनुमति देता है, जिससे पाठक का जुड़ाव शुरू से अंत तक बना रहता है। इस संकलन के जरिए पाठक सुकेश साहनी, कमलेश भारतीय, राम मूरत ‘राही’, कांता रॉय, राजेंद्र वर्मा, मनोरमा पंत, अरविंद असर, डॉ। पूनम आनंद, मीरा जैन, ज्ञानदेव मुकेश, नीना मंदिलवार, रमाकांत चौधरी, डॉ। रामकुमार घोटड़ जैसे लघुकथाकारों की रचनाओं का आस्वादन ले सकते हैं। अंततः ‘गुलाबी गलियां’ एक प्रशंसनीय संकलन है, जो अक्सर अंधेरे में रखे गए किरदारों की साहसिक खोज के लिए ध्यान देने योग्य है। सशक्त विचार और सार्थक कहन के माध्यम से यह संकलन एक ऐसे समुदाय का मानवीकरण करने में सफल होता है, जिसे अक्सर अमानवीय बना दिया जाता है। कुशल संपादन के लिए संपादक बधाई के पात्र हैं। 

— देवेन्द्रराज सुथार

गुलाबी गलियां (साझा लघुकथा संग्रह)

संपादक : सुरेश सौरभ

मूल्य : ₹249

प्रकाशन : श्वेतवर्णा, नई दिल्ली

सुरेश सौरभ

शिक्षा : बीए (संस्कृत) बी. कॉम., एम. ए. (हिन्दी) यूजीसी-नेट (हिन्दी) जन्म तिथि : 03 जून, 1979 प्रकाशन : दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, हरिभूमि, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, प्रभात ख़बर, सोच विचार, विभोम स्वर, कथाबिंब, वगार्थ, पाखी, पंजाब केसरी, ट्रिब्यून सहित देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में सैकड़ों लघुकथाएँ, बाल कथाएँ, व्यंग्य-लेख, कविताएँ तथा समीक्षाएँ आदि प्रकाशित। प्रकाशित पुस्तकें : एक कवयित्री की प्रेमकथा (उपन्यास), नोटबंदी, तीस-पैंतीस, वर्चुअल रैली, बेरंग (लघुकथा-संग्रह), अमिताभ हमारे बाप (हास्य-व्यंग्य), नंदू सुधर गया, पक्की दोस्ती (बाल कहानी संग्रह), निर्भया (कविता-संग्रह) संपादन : 100 कवि, 51 कवि, काव्य मंजरी, खीरी जनपद के कवि, तालाबंदी, इस दुनिया में तीसरी दुनिया, गुलाबी गालियाँ विशेष : भारतीय साहित्य विश्वकोश में इकतालीस लघुकथाएँ शामिल। यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया में लघुकथाओं एवं हास्य-व्यंग्य लेखों की व्यापक चर्चा। कुछ लघुकथाओं पर लघु फिल्मों का निर्माण। चौदह साल की उम्र से लेखन में सक्रिय। मंचों से रचनापाठ एवं आकाशवाणी लखनऊ से रचनापाठ। कुछ लघुकथाओं का उड़िया, अंग्रेज़ी तथा पंजाबी आदि भाषाओं में अनुवाद। सम्मान : अन्तरराष्ट्रीय संस्था भाखा, भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर प्रताप नारायण मिश्र युवा सम्मान, हिन्दी साहित्य परिषद, सीतापुर द्वारा लक्ष्य लेखिनी सम्मान, लखीमपुर की सौजन्या, महादलित परिसंघ, परिवर्तन फाउंडेशन सहित कई प्रसिद्ध संस्थाओं द्वारा सम्मानित। सम्प्रति : प्राइवेट महाविद्यालय में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन। सम्पर्क : निर्मल नगर, लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) पिन कोड- 262701 मोबाइल- 7860600355 ईमेल- [email protected]

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