कविता

लालच का खेल

हर जगह जहाँ भी देखो,
दुनिया में लालच का खेल है
मतलब के इस जहाँ में,
सब लालच में अपने-आपको लगाए हुए हैं।

दु:ख-तकलीफ़ में भी,
लोग अपना ईमान भूल गए
चंद पैसों की खातिर,
लालच के रंग में डूब गए।

अजब-गजब ज़िन्दगी के इस रंग में,
पैसे की भूख की खातिर
दो रोटी को भूल गए,
लालच के इस दौर में,
सब बदनाम हो इंसानियत भूल गए।

यह अंधेरा कुआं है जीवन में, जिसमें रोशनी नहीं है।
क्योंकि लालच का यह पानी,
इसमें है
तभी तो यह सब लालची हो गए॥

— हरिहर सिंह चौहान

हरिहर सिंह चौहान

जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001 मोबाइल 9826084157