कविता

दोषी कौन?

अकेलापन वो नहीं जो शायरी या कहानियों में बताया जाता है ये उससे पूछो जो इस आग में पल पल जला हो और सिर्फ आंसुओं के अलावा उसके पास कुछ नहीं हो। जो इससे झूझ रहा है वो उसको बयां तब ही कर सकता है जिसको ये अकेलापन खा नहीं पाया हो। डर, चिंता, दुःख, दर्द क्या महसूस नहीं कराता यह, फिर जब बांटने के लिए भी कोई न हो तब लगता है इस संसार में क्या कोई एक इंसान भी ऐसा नहीं बचा है जो २ पल के लिए ही सही मेरे मन में क्या चल रहा है उसको बिना हिचक के सुन सके और समझ सके ? और जो कोई आता भी हो अगर तो क्या वो झूठा दिलासा दिए आये कि मैं हमेशा रहूँगा चाहे जो हाल में हो तुम। आज न किसी के पास दोस्त है और न कोई शुभचिंतक , स्वार्थ सिद्धि के लिए सम्बन्ध रखे जाते हैं और आजकल तो एक नया शब्द चला है – टाईम पास , जो आज की पीढ़ी की नींव है। लोग आते हैं, वादों के साथ लेकिन जब वे वादे पूरे नहीं कर पाते तब उनपर ही हम दोषारोपण करते हैं कि हमने तो तुमसे ये उम्मीद नहीं की थी, तुम मेरी आशाओं पर खरे नहीं उतर पाए , ऐसे में आखिर उस इंसान की भी क्या गलती है ? जब हमनें ही उसको पहचानने में जल्दबाज़ी कर दी , क्या इसमें गलती हमारी नहीं है , हमारे भ्रम की नहीं है ? जो हमने सोचा कि वो हमारे साथ रहेगा हमेशा। हमें किसने अधिकार दिया था उस इंसान पर आंख बंद करके भरोसा करने को जब यहां सब कुछ ही क्षणिक है। वादे कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं जो पूरे न होने पर किसी की जवाबदेही में आये। ये तो बस प्राथमिकताओं और इंसान की क्षमता पर आधारित है। भावनाओं में हम कभी कभी इतना गिर जाते हैं कि लगता है हम तैर जाएंगे पर कब सागर इतना गहरा हो जाता है कि हमारे तैरने की क्षमता खत्म होने लगती और कुछ समय में डुबा देती है, ख़ास बात ये है कि इसमें आप अकेले नहीं डूबते हो, आपके साथ डूबते हैं -आपके सपने, उम्मीदें , ख़ुशी, भाव, आत्मसम्मान, उन लोगों का भरोसा जो आप पर उम्मीद टिकाये थे। जब तक ये ज्ञात होता है, समय चला जाता है और पश्चाताप और ग्लानि के सिवाय कुछ हाथ नहीं आता। अगर हम कोई रिश्ते को भावात्मक पहलू पर रखते हैं तो हमें भावों में डुबकी लगाना सार्थक लगता है लेकिन क्या जिसके लिए ये कर रहे हैं वो उसके लायक है ? सवाल यह होना चाहिए। अगर वो समझ जाता है तो लायक नहीं तो फिर दोषारोपण!!! हमारा भावों को आगे रखना हमारे लिए गर्व है , कोई उसे समझे या न समझे , उससे हमारा गर्व कम नहीं हो जाता,,, लेकिन इसका मतलब ये कदापि नहीं कि हम सब कुछ जानकर भी सहते रहें, मन का उलझना चलता रहेगा, मन का बदलना चलता रहेगा जब तक जीवन में स्थिरता नहीं आ जाती। क्यूंकि आज रिश्ते कॉन्ट्रैक्ट पर निभाए जाते हैं ………

सौम्या अग्रवाल

पता - सदर बाजार गंज, अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तक - "प्रीत सुहानी" ईमेल - soumyaagrawal2402@gmail.com