संविधान बदलना
एक शाहबानो बेगम को 180 रु महीना न मिले इसलिए राजीव गांधी न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदला दिया बल्कि मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता न मिले इसलिए संविधान को बदल कर मुस्लिम मौलानाओं को खुश किया सोरोस के एजेंट राहुल गांधी को बताना चाहिए कि संविधान में किसने बदला तलाक के नियम…. #मुस्लिमतलाक यानी कोई #गुजाराभत्ता नहीं …… तब आप्का शायद जन्म भी न हुआ हो उसी घटना का आज परिणाम है की एक हिन्दू तलाक दे तो पत्नी को हर्जाना या गुजारा भत्ता देना होता है पर एक मुस्लिम को नही. करीब 25 साल पहले सुप्रीमकोर्ट ने एक तलाक़शुदा 62 साल की बूढ़ी महिला को गुजारा भत्ता देने की ईमानदार कोशिश किया था, पर आज की तरह उस समय भी इस्लाम खतरे मे आ गयी थी । उस समय काँग्रेस इस मामले में पूरी निर्लज्जता से मुस्लिम कठमुल्लावाद के समर्थन मे उतर गई थी । किसी ने भी यह पूछने की हिम्मत नहीं की कि यह कैसा मजहब है, जो एक बूढ़ी महिला को गुजारा भत्ता देने मात्र से खतरे में पड़ जाती है ? . शाहबानो केस के रूप मे कुख्यात यह मामला मुस्लिम तुष्टीकरण और कठमुल्लावाद को कोंग्रेसी समर्थन की कहानी के रूप आज भी याद की जाती है । जिसने मुस्लिम कट्टरपंथियों को संतुष्ट करने के लिए हिंदुस्तान के संविधान, कानून, न्यायपालिका और संसद सबको अपमानित किया । शाह बानो 62 साल की बूढ़ी महिला, जिसके 5 बच्चे थे, उसका पति एकदिन केवल तीन शब्द बोलकर तलाक दे देता है और बदले मे उसे किसी प्रकार का गुजारा भत्ता देने से भी इन्कार कर देता है, जिससे की बेचारी वृद्ध महिला को दो रोटी के लाले पड़ जाते हैं । बेचारी महिला तमाम मुल्ला-मौलनाओं के दरवाजों पर जाकर गिड़गिड़ाती है कि उसे अपने खर्च लायक भत्ता दिलवा दे कोई । परन्तु मुल्लों ने उसे टका सा जबाब दिया कि इस्लामी कानून के अनुसार गुजारा भत्ता केवल “इद्दत की मियाद” तक ही होता है, उसके बाद हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं। . हर जगह से धक्के खा शाहबानो नयायालय के पास गुहार लगाती है । निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक शाहबानो जीतती गयी और उसका अमीर पति हर बार ऊपरी आदालत मे अपील करता रहा । आखिर मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट और यहाँ भी जजमेंट शाहबानो के ही पक्ष मे आया । सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय आधार पर शाहबानो के पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया । . बस इसी बात पर कठमुल्लों को मिर्ची लग गयी । इस्लामिक कानून मे सरकारी-अदालती हस्तक्षेप बता इसका जमकर बिरोध किया । “इस्लाम खतरे में है” के नारे लगाये जाने लगे …… न्यायाधीशों के पुतले जलाये जाने लगे । ओबैदुल्ला खाँ आजमी और सैयद शहाबुद्दीन जैसे कठमुल्लों ने तत्काल All India Muslim Personal Law Board का गठन कर डाला और ‘इस्लाम बचाने’ के कार्य में जुट गये। . यह बात 1986 की है….. केन्द्र मे सरकार पर काबिज थी काँग्रेस । पूर्ण बहुमत प्राप्त राजीव गांधी की सरकार उस समय दोनों सदनों मे “पूर्ण बहुमत” मे थी ।
राजीव गांधी की सरकार मुस्लिम वोट बैंक हड़पने के लिये इतना गिर गई की उन्होने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिये संविधान मे ही परिवर्तन करने का फैसला किया । समझे राहुल ये क्या हुआ कोंग्रेसियों ने एक कानून पास किया जिसने शाह बानो जैसी सभी तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाओं को हमेशा हमेशा के लिये “गुजारा भत्ता” से वंचित कर दिया । . वोटबैंक के सौदागरों ने तब भी एक मुस्लिम महिला का दर्द नहीं समझा था, तो आज क्या समझेगी ? 62 साल की एक बेसहारा वृद्धा घुट घुट कर जीने को मजबूर थी पर काँग्रेस ने मुस्लिम वोट से अपनी झोली भर ली । आज भी जब ट्रिपल तलाक, 4 बीबियों और निकाह हलाला जैसे इस्लामिक रिवाजों से महिलाओं को सताया जा रहा है तो नीच सेक्युलरों का ब्यवहार “शाहबानो केस” की तरह ही है । संविधान बदलना इसे कहते है राहुल गांधी