कृपा तुम्हारी भगवन
कृपा तुम्हारी भगवन
जग में समा रही है
उपवन में फूल खिला रही है ।
कृपा तुम्हारी भगवन
रवि-चंद्र चमका रही है
तारे टिमटिमा रही है ।
कृपा तुम्हारी भगवन
हर जीव में सांस चला रही है
वसुंधरा पर प्राण वायु बहा रही है ।
कृपा तुम्हारी भगवन
सागर गहरा बहा रही है
ऋतुओं का करतब दिखा रही है ।
कृपा तुम्हारी भगवन
संपूर्ण ब्रह्मांड में वर्णन हो रही है
भक्ति की शक्ति लुभा रही है ।
कृपा तुम्हारी भगवन
ज्ञान की ज्योति जला रही है
हृदय में उत्साह- उमंग भर रही है ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा