अथ श्री न्यू ईयर कथा
ये उन दिनों की बात है, जब भारत को विभाजित हुए दो-चार बरस ही हुए थे । अधिकांश अंग्रेज़ वापिस इंग्लैंड लौट गए थे । फिर भी कुछ एंग्लो इंडियन दिल्ली में रुके हुए थे । तब दिल्ली भी अधिकतर गाँव जैसी ही थी ।
एक दिन की बात है, एक युवक कहीं जा रहा था । उसे पता नहीं था कि आस-पास ही एक पागल कुत्ता आतंक मचाए हुए था । वह बेचारा जैसे गली के मोड़ पर आया, अचानक उस पागल कुत्ते ने झपटकर उस लड़के का एक कान काट लिया और मुँह में लेकर भाग गया ।
वह लड़का बेचारा रोता हुआ घर आया । ख़ून बह रहा था । उन दिनों तक सर्जरी इतनी विकसित तो नहीं हुई थी परंतु फिर भी एक स्थानीय अस्पताल के योग्य डॉक्टर घोषाल बाबू ने उस युवक के कटे हुए कान के स्थान पर एक नक़ली कान लगा दिया । यह नया कान रबड़ का बना था और असली जैसा ही लगता था ।
जब वह अस्पताल से वापिस घर लौट रहा था तो रास्ते में कुछ एंग्लो इंडियन मिले । उन एंग्लो इंडियन्स के नाम में भले ही ‘इंडियन’ लगा था परंतु उन्हें हिंदी भाषा से वैसा ही परहेज़ था, जैसे नेहरू जी को अपने कपड़ों पर भारत में इस्तरी करवाने से ।
अतः उन एंग्लो इंडियन्स ने उस ‘कनलगे’ (बतर्ज़ ‘कनकटे’ ) युवक से अंग्रेज़ी में कहा : “हैप्पी न्यू ईयर !” अर्थात नए कान की बधाई हो ! वह बेचारा युवक तो अंग्रेज़ी समझ नहीं पाया । (हिंदुस्तानी कहीं का !) ।
समझ ना पाने के बावजूद उसने अपने घर आकर बताया कि कुछ लोगों ने उसे इस तरह बोला है । समझे तो उसके घर वाले भी नहीं लेकिन वे तो इसी बात से ख़ुश थे कि उनके बेटे को आज भयंकर सर्दी के बावजूद (जबकि अस्पताल बंद भी हो सकता था), नया कान मिला है ।
बस फिर क्या था, उन्होंने उस विशेष दिन को ‘कान दिवस’ (अर्थात न्यू ईयर डे) के रूप में प्रतिवर्ष मनाना शुरू कर दिया । यह बात बढ़ती चली गई और आज सारे संसार में उस दिन को ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के रूप में मनाया जाता है । बस यही है संक्षेप में हैप्पी न्यू ईयर की कथा !
— सागर तोमर