लघुकथा

लघु-कथा – फरिश्ता

आजकल सावन मास के कारण मौसम में कभी भी अचानक बदलाव हो जाता है। आज जब घर से निकली तो चटक धूप खिल रही थी, परन्तु दोपहर बाद बादलों के संग काली घटाएँ घिर आईं और शाम से मूसलाधार बरसात होने लगी। छुट्टी होने पर जब कार्यालय से निकली तो हल्की बूँदाबाँदी सी थी। मैं सोच रही थी कि जल्दी घर पहुँच कर गर्मा-गर्म मसाले वाली चाय पीऊँगी।
मेरे बस स्टॉप पर पहुँचने से पहले झमाझम बरसात शुरू हो गयी।श बस स्टॉप पर खड़े दो तीन लोग भी बरसात के रुकने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उसमें दो बुजुर्ग जो कि अधेड़ावस्था के थे। मैने ध्यान से उनकी ओर देखा तो उनके सफेद बाल और चेहरे पर उमर के अनुभव की रेखाएँ गहराती नजर आ रही थीं। वे भी मौसम खुलने का इंतजार कर रहे थे और बाहर सड़क की ओर देख रहे थे।
पास ही एक सूटेड-बूटेड नवजवान युवक भी था।वह एक हाथ में काला बैग और दूसरे हाथ में काले रंग की बंद छतरी लिये हुआ था। जब मैने उसकी ओर देखा तो वह आँखों में हल्के से मुस्कुराया। पता नहीं क्यों मुझे उसकी पनीली सी बड़ी-बड़ी आँखों में कुछ अजब हलचल सी लगी। उसे देखकर मुझे लग रहा था कि इसकी गहरी आँखों में जरुर कोई राज छिपा है। काफी देर तक हम सभी मौन रहें और बारिश के रुकने की प्रतीक्षा करते रहे‌। बारिश हल्की होने पर वह हौले से मुस्कुराया और संजीदगी से मुझसे बोला —
“तेज बरसात अब तो कुछ कम हो गयी है।मौसम बहुत खराब है और आप अकेली हैं चारों ओर घना काला अंधेरा घिर आया है। ऐसे खराब मौसम में अपराधियों के द्वारा दुर्घटना करने की आशंका रहती है। मानवीयता के नाते आइए, मैं आपको घर छोड़ देता हूँ।”
अब मैंने अचकचा कर उसकी ओर देखा अचानक उसका सामने पड़ कर ऐसा कहना मेरे मन में कई आशंका भरे सवाल खड़े कर रहा था। मुझे असमंजस में देखकर उसने मुझसे कहा —
“मेरी ओर से आप बेफिक्र रहें और मुझे अपना भाई समझें।”
ऐसा कहते हुये उसकी आंखें छलछला आई।
“भाई के नाते ही मैं एक बहन को सुरक्षित उसके घर तक छोड़ना चाहता हूँ। देरी होने के कारण आपके घर-परिवार वाले आपकी प्रतीक्षा कर रहें होंगे।”
कहते-कहते उसकी आँखों में भर आये आँसू मुझसे छिपे नहीं रह सके। चूँकि मैं पहले ही दो घन्टे लेट हो चुकी थी, मन में थोड़ा सा खटका लग रहा था, किन्तु गहराती अंधेरी रात और तेज बारिश न बढ़ जाये ऐसा मन में सोच स्वयं को संयत कर बिना ना नुकुर किये उसके साथ चल पड़ी।
अभी भी तेज ठंडी हवाओं के साथ रिमझिम बारिश की फुहार जारी थी। चलते हुए उसके हाथों में खुली छतरी बार-बार पीछे घूमती और उड़ने लगती तब वह उसे और कसकर पकड़ लेता।
बारिश और ठंडे मौसम में उसके साथ चलते हुए घबराहट के साथ मुझे पसीना आ रहा था।
वह शायद मेरे मन की कुलबुलाहट समझ गया थोड़ा सा दूर हटकर उसने छतरी मेरे सिर के ऊपर कर दी। और शांत गम्भीर आवाज में मुझे अपने जीवन की करूण कहानी सुनाने लगा-
“ऐसी ही एक अंधेरी रात में किसी गुण्डे मवाली ने मेरी बहन का बलात्कार किया था और गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी। उस दिन बहुत तेज बारिश थी, कार्यालय से लौटते समय देर हो जाने के कारण मेरी निडर बहन अकेली ही घर जाने के लिए निकल पड़ी थी। रास्ते में किसी शराबी मवाली ने खराब मौसम निर्जन सड़क और अंधेरे का फायदा उठाया। कातिल ने पीछे से उसके सिर पर वार करके उसे बेहोश कर दिया। फिर कमीने ने मेरी बहन की इज्जत तो लूटी ही पहचान लिये जाने के डर से उसकी हत्या भी कर दी।” बोलते-बोलते उसका गला रुँध गया। लाल डोरे से भरी आँखों में तैरते हुए आँसुओं की सच्चाई जानकर मुझे अपनी सोच पर शर्म आने लगी।
मैं मन में सोचने लगी- “आजकल के समय में अच्छे संस्कारी युवक कहाँ मिलते हैं। जो दूसरे की बहन-बेटियों को अपनी बहन-बेटी समझते हैं। और निस्वार्थ कर्तव्य भावना का सार्थक उदाहरण समाज के सामने पेश करते हैं। यदि आज हमारे समाज में संवेदनशील जाग्रत ऐसे दस प्रतिशत युवक सजग हों तो फिर बहन बेटियों के साथ दुष्कर्म करने की हिम्मत भी कोई नहीं जुटा सकेगा। और न कोई उनकी जान के साथ खिलवाड़ कर सकेगा।”
उसकी हृदयस्पर्शी कहानी सुनकर मेरा मन अतिशय करुणा से भीगने लगा। अब मेरे मन में उसके लिये आदर सम्मान की भावना जागृत हो चुकी थी। इसलिए मैने विनम्रता से उसे कहा- “ये देखिए आप तो बुरी तरह से भीग चुके हैं। आइए ! मेरा घर सामने ही है। आप घर आइये ! एक कप कॉफी पीकर चले जाइयेगा।” ऐसा कहकर मैने घर के दरवाज़े पर लगी घंटी दबा दी। घननननन! घननननन !! घंटी की आवाज जोर से गूँजने लगी। लेकिन जब तक मेरा दरवाजा खुलता तब तक वह फिर कभी आने की बात कहकर वह फरिश्ता आगे बढ़ गया।

— सीमा गर्ग ‘मंजरी’

सीमा गर्ग मंजरी

मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश से वरिष्ठ कवयित्री एवं लेखिका

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