गुरु गोविंद सिंह जयंती विशेष
भारतीय इतिहास में गुरू गोविंद सिंह का होना भारतीय इतिहास की शोभा और गरिमा को और बढा़ता है । गुरु गोविंद मां भारती के उन शेरों में से थे जिन्होनें धर्मध्वजा को कभी झुकने नहीं दिया । परम आदरणीया माता गुजरी एवं परम आदरणीय गुरु तेग बहादुर जी के यहां जन्में गुरु गोविंद सिंह ने इतिहासों में भारत भूमि को वह पहचान दी है , जो दे पाना सबके वश की बात नहीं थी । गुरु गोविंद सिंह का प्रारंभिक नाम गोविंद राय था और वे शुरुआती दिनों से ही साहस, वीरता एवं बुद्धिमता के अनंत सागर थे । गुरु तेग बहादुर की मृत्यु के बाद वे सिखों के दसवें गुरु बने । गुरु गोविंद सिंह के सानिध्य में सिख धर्म के सिद्धांतों और आदर्शों को पहले से अधिक बल मिला । वे सिर्फ सिखों नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के लिए ईश्वर का स्वरुप थे । गुरुदेव ने मानव जाति के कल्याण के लिए मानवता के नाम जो संदेश दिए थे वो आज भी प्रासंगिक है । अपनी मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए गुरुदेव ने सेना का गठन किया और उसके सेनापति भी रहे । इसी कारण से उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता है । खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोविंद एक प्रकांड विद्वान, साहसी योद्धा , कुशल प्रशासक, सफल कवि एवं आध्यात्मिक नेता भी थे । अपनी धर्म एवं भूमि की सुरक्षा के लिए उन्होनें मुगलिया सल्तनत से कई बार लोहा लिया । इसी युद्ध में उन्होनों अपने कलेजे के टुकड़े खोए । अपने बेटों को खोने का उन्हें तनिक भी मलाल न हुआ क्योंकि उनके बेटे मातृभूमि की राह एवं चाह में शहीद हुए थे । इस घटना के बाद से उन्हें सरबंसदानी अर्थात अपना पूरा वंश दान कर देने वाला भी कहा जाने लगा । गुरू गोविंद के संघर्ष, श्रद्धा , त्याग और बलिदान की कल्पना करना या फिर उसे शब्दों में बांधना संभव नहीं है । गुरु गोविंद जी का वीरता , साहस एवं धैर्य में निश्चित रूप से कोई सानी नहीं था । उनके बेटों के खो देने की दास्तान ने पूरी धरा को गमगीन कर दिया था पर गुरुजी ने धैर्य का दामन नहीं छोडा़ और सदैव मानवता के कल्याण में लगे रहे । निश्चय ही गुरुजी ईश्वर के प्रतिरुप थे क्योंकि , उनमें आस्था रखने वाले व्यक्ति सदैव परिश्रमी , साहसी, उदार एवं मानवतावादी होते हैं । उनके प्रति अपनी श्रद्धा रखने वाले सभी लोगों की श्रद्धा मानवता में होती है । उन्हें मानने वाले लोगों ने ही संसार में इंसानियत को सही मायनों में चरितार्थ किया है । गुरु जी के पुण्यों का प्रताप देखिए कि आज संपूर्ण भारत में लाखों लोग इनके नाम से लंगर में अपनी भूख मिटाते है । गुरु जी ने अपने शिष्यों अथवा अपने मानने वालों को ऐसी शिक्षा दी कि हर कोई निस्वार्थ भाव से दीन-दुखियों की सेवा , सामाजिक उत्थान इत्यादि में सदैव तत्पर रहते हैं । गुरू गोविंद सिंह ने सदैव अपने मानने वालों को अपने जैसी बहादुरी, शौर्य, पराक्रम, साहस, हिम्मत, मानव कल्याण के भाव, परिश्रम, धैर्य, इत्यादि वर में दिए हैं । कुल मिलाकर बात यह है कि, भारतीय इतिहास में सिखों के दशमेश गुरु गुरू गोविंद सिंह हिंद के शिरोमणी थे । वे सच्चे मायनों में भारत माता के श्रृंगार थे । अपना संपूर्ण जीवन उन्होनें दलेरी से जिया और मानवता के कल्याण और उत्थान को सदैव उपलब्ध रहे ।
ऐसे महान विभूति को उनकी जयंति पर शत्-शत् नमन ।