क्षणिका
ढूंढती हैं निगाहें
अब नजर आता न कोई
जिन्हें देखने के
इंतजार में थक जाती थी पलकें।
यादों में चेहरे अब
अक्सर अब दिल को
धड़काते रहते हैं
धड़कन भी उन्हीं यादों के
सहारे चलती जो है।
— संजय वर्मा “दृष्टि”
ढूंढती हैं निगाहें
अब नजर आता न कोई
जिन्हें देखने के
इंतजार में थक जाती थी पलकें।
यादों में चेहरे अब
अक्सर अब दिल को
धड़काते रहते हैं
धड़कन भी उन्हीं यादों के
सहारे चलती जो है।
— संजय वर्मा “दृष्टि”