धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

राम : भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष

‘राम’ शब्द जितना सुंदर दिखता है, उसका उच्चारण उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। राम नाम का उच्चारण मात्र ही मन और शरीर में एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है, जिससे हमें आत्मिक शांति मिलती है। हिन्दू धर्म के चार प्रमुख आधार स्तंभों में से एक हैं प्रभु श्रीराम। भगवान श्रीराम ने एक आदर्श चरित्र का उदाहरण प्रस्तुत कर समाज को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया था। वास्तव में, श्रीराम भारत की आत्मा हैं।

भगवान श्रीराम सूर्यवंश के तेजस्वी, धर्मपरायण और स्वतंत्र शासक थे। वे सत्यप्रतिज्ञ और वेद की मर्यादा के रक्षक थे। उनका अवतार ही जगत के कल्याण के लिए हुआ था। भगवान श्रीराम का जीवन हमें सिखाता है कि हमें कभी अपने लक्ष्यों का परित्याग नहीं करना चाहिए। रामकथा सिखाती है कि यदि ईश्वर एक मार्ग बंद करता है, तो वह दूसरे मार्ग को खोलता है और किसी न किसी रूप में सहायता भी भेजता है। इसलिए हमें अपने जीवन में अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए, क्योंकि अंततः सफलता अवश्य मिलती है।

“रमणे कणे कणे इति राम:”

जो कण-कण में बसे, वहीं राम हैं। श्रीराम की सनातन धर्म में अनेक गाथाएँ विद्यमान हैं।

श्रीराम का जन्म और बाल्यकाल—

श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में चैत्र मास की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। वाल्मीकि रामायण में भगवान राम के जन्म का उल्लेख किया गया है:

“चैत्रे नावमिके तिथौ ।।  

नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु ।  

कर्कटे लग्ने वाक्पता वाक्पता विन्दुना विन्सा सह ।।”

प्रभु श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था, जो आज के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। वे अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं- कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। कई जप-तप के बाद, राजा दशरथ को चार पुत्रों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कौशल्या से राम, कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

श्रीराम का बाल्यकाल अत्यंत स्नेहमयी और शीलयुक्त था। वे बचपन से ही अपने पिता के अत्यंत प्रिय थे। राम का स्वभाव सहज और विनयशील था, और वे अपनी तीनों माताओं के प्रति समान स्नेह रखते थे। बड़े भाई होने के नाते, वे अपने छोटे भाइयों से विशेष स्नेह करते थे और उनकी देखभाल करते थे।

शिक्षा-दीक्षा और पराक्रम—

श्रीराम की शिक्षा गुरु वशिष्ठ के आश्रम में सम्पन्न हुई। बाल्यकाल से ही राम में अद्वितीय पराक्रम था, जिसे उन्होंने अपने कृत्यों से प्रमाणित किया। आगे चलकर उन्होंने राक्षसों का संहार किया और महाबलशाली रावण का वध कर धरती को पवित्र किया।

राम का आदर्श व्यक्तित्व—

स्वामी विवेकानंद के शब्दों में, “श्रीराम “सत्य के अवतार, नैतिकता के आदर्श पुत्र, आदर्श पति और आदर्श राजा थे।” राम ने अपने गुणों से स्वयं को ईश्वर की श्रेणी में स्थापित किया। उनका व्यक्तित्व दयालु, स्नेही, उदार और सरल था। वे परिस्थितियों के अनुसार समायोजन करने वाले, अत्यंत शिष्ट और निडर थे। वे हमेशा सत्य, धर्म, करुणा और मर्यादा के मार्ग पर चलते रहे, जिसके कारण उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहा जाता है।

रामराज्य: आदर्श शासन—

श्रीराम का राज्य ‘रामराज्य’ के रूप में जाना जाता है, जो एक आदर्श शासन का प्रतीक है। इस राज्य में सत्य, न्याय, करुणा और धर्म का पालन होता था। रामराज्य का उल्लेख भारतीय इतिहास में सबसे महान शासन तंत्र के रूप में किया जाता है, जहाँ प्रजा सुखी और संतुष्ट थी। यही कारण है कि आज भी रामराज्य की कल्पना एक आदर्श समाज के रूप में की जाती है। तुलसीदास ने रामराज्य का वर्णन इन शब्दों में किया है:

दैहिक, दैविक, भौतिक तापा । 

राम राज नहिं काहुहि व्यापा ।।

असुरों के नाशक भगवान राम के राज्य में सभी लोग अपने-अपने धर्म का पालन करते थे और परस्पर प्रेमपूर्वक रहते थे।

श्रीराम की महानता और प्रासंगिकता—

भगवान श्रीराम का प्रभाव भारतीय संस्कृति और समाज पर अनंतकाल तक रहेगा। उनके आदर्श, उनके कृत्य, और उनके जीवन से हमें सीखने को मिलता है कि धर्म, सत्य और मर्यादा का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ ने भगवान राम को जन-जन के हृदय में प्रतिष्ठित कर दिया है।

आज भी, भगवान श्रीराम का नाम मात्र उनके भक्तों के समस्त दुःखों का हरण करने वाला है। राम का चरित्र हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनका धर्मपरायण मार्ग आज के युग में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि त्रेता युग में था। उनके उपदेश और जीवन की घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि कैसे सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलते हुए जीवन के कठिन समय को भी पार किया जा सकता है। 

भगवान राम का जीवन और उनके आदर्श हमें सिखाते हैं कि यदि हम अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहें और धर्म के मार्ग पर चलें, तो अंततः सफलता अवश्य मिलती है। उनकी प्रेरणादायक गाथाएँ आज भी हमें मार्गदर्शन और प्रोत्साहन देती हैं।

निष्कर्ष—

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को शत-शत नमन। उनका नाम मात्र ही हमारे जीवन की समस्त बाधाओं को हरने वाला है। श्रीराम का चरित्र और उनका जीवन आज भी हमें आदर्शों और मर्यादाओं के प्रति समर्पण की प्रेरणा देता है। राम का नाम भारतीय जनमानस में व्याप्त है और उनके आदर्श युगों-युगों तक हमें प्रेरित करते रहेंगे।

— अवन्तिका सिंह

अवन्तिका सिंह

Psychology researcher Jabalpur, madhya pardesh

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