संस्मरण

अनमोल सीख

सफेद सूट, लंबे लंबे सफेद बाल जिन्हें धूप में । सुखाती गोरा रंग चमकता चेहरा, माथे पर तेज, आवाज में मिठास, हम सभी नाती पोतों की जान थी वो। हमें लाइन से खाना खिलाती अपने हाथों से पकाती मजाल है, जो कपड़े पर एक भी दाग लग जाए। ननिहाल के वह दिन खाना पीना मौज मस्ती करना नानी से रोज किस कहानी सुना गुड़िया की शादी में नई ढेर सारा शरबत बनती नन्ही गोलू शरबत में उंगली डालकर सबको चढ़ती नानी के हाथों की खिचड़ी भी बिरयानी से ज्यादा लजीज बन जाती सारे छोटे बड़े लड़ते झगड़ते खाते पीते उधम मचाते ननिहाल में सबसे बड़ी होने की वजह से नई हर जगह मुझे साथ लेकर जाती थी घर का बाहर का सारा काम वह खुद करती मुझे भी उनसे बातें करना उनके साथ-साथ रहना बड़ा सुहाता छोटी राबिया तो उनके पीछे-पीछे लगी रहती और पटरे पर चढ़कर नानी के साथ रोटी सिकवाती गर्मी की छुट्टियां और नानी के घर की छत क्या यादगार थे, वह पल? पूरे मोहल्ले में लाइट नहीं मोमबत्ती जलाएं हम सारे छत पर नज़र आते बीच में बैठी नानी और सबका ध्यान आकर्षित करती उनकी नई-नई कहानी। नानी का जीवन भी एक संघर्ष की गाथा के कई पन्नों में समय था मेरी नानी इस पर जहां जो संस्कारी कर्तव्य परायण और मजबूत इरादों वाली महिला थी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के नवाबों के खानदान की बेटी थी पिताजी जौनपुर के नवाब जिनके सुंदरता थी लाजवाब, लोग एक झलक देख नहीं पाते सर से पांव तक वह ढकी रहती थी।पालकी में यहां से वहां जाती आमजन उन्हें देखकर मन मुग्ध हो जाते। सैकड़ो नामी खानदान के रिश्ते आते थे, तो कम उम्र में ही एक खानदानी लड़के से रिश्ता आ गया। अम्मी के मुंह से मैं जब नानी की कहानी सुनती मुझसे रहा नहीं जाता बस पूछ उठती अम्मी “तो नाना वह भी नवाब थे क्या” नानी की शादी कैसे हुई उनसे? अब नाना अब्बू कहां गए तब मेरी उम्र मुश्किल से 10 या 11 साल की रही होगी इतने सवाल कर बैठी अम्मी ने दुःखी होकर बताया नाना अब्बू शादी के कुछ साल बाद ही चल बसे थे उनकी आंखों में आंसू थे। पीछे से नानी सब बच्चों के लिए आम काटकर लाई और हम सब आम खाकर खेलने लग गए।
नानी के कमरे में एक बड़ा सा बक्सा था एक दिन नई उसको ठीक कर रही थी उसमें देख उनकी शादी का पुराना लाल जोड़ा और कुछ तस्वीरें मुझे रहा नहीं गया तस्वीर लेकर सबको दिखाने लगी अम्मी ने वह तस्वीर हमसे ले ली और उसे फ्रेम करवाने के लिए रख लिया। मेरी नानी, नाना अब्बू के साथ बड़ी ही खूबसूरत लग रही थी। लंबी चोटी, लाल जोड़ा ,मुझे बहुत खुशी हुई। अम्मी से ज़िद करने लगी की नानी के बारे में और बातें बताइए। आप लोगों का बचपन कैसा था? अम्मी की आंखों में आंसू आ गया। तुम्हारे नाना अब्बू के ख़त्म होने के बाद सभी ने कई दिन तक भूखे रहकर, लाही फांक कर दिन गुजारे।”अरे बाप रे” मेरे मुंह से निकल पड़ा.. तभी नानी आ गई और मुझे गोद में बिठा लिया। अम्मी के सिर पर हाथ रखकर हम सब बच्चों को बताने लगी। तुम्हारे नाना की मृत्यु के पश्चात जीवन में संघर्ष प्रारंभ हो गया। बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी ने अंदर से तोड़ दिया। लेकिन हमें अल्लाह के सभी फैसले स्वीकार करने पड़ते हैं। और बच्चों को पालने में अपना सब कुछ लगाना था। मुझे सबसे ज्यादा दुःख तब हुआ जब यह पता चला की औरत की सुंदरता ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन होती है। जब उसकी खूबसूरती उसके जीवन में बहुत बड़ी बाधा बनने लगती तब हिम्मत टूटती है।
क्योंकि एक मजबूर औरत की सुंदरता से मोहित होकर बहुत लोग मदद के लिए आगे आते हैं, मगर सभी मदद के नाम पर उनको अपना गुलाम बनाने तथा लाभ उठाने का प्रयास करते हैं। लेकिन नानी ने केवल अपने बच्चों के पालन पोषण व संस्कार देने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए जीवन बिता दिया। अपनी सुंदरता से मोहित होने वाले लालची लोगों से अपना बचाव करने के लिए अपनी सुंदरता को नष्ट करने का भी निर्णय लिया। आगे जो अम्मी ने बताया उसे सुनकर मुझे यकीन नहीं हुआ। एक दिन उन्होंने अपने कल सुंदर सुनहरे बालों को गुमराह के पानी लगाकर सफेद कर दिए और कई तरीकों से अपनी सुंदरता को खत्म करने का प्रयास किया काफी हद तक उन्होंने स्वयं को कुरूप कर लिया। उनके ऊपर एक और पहाड़ टूटा जब उनका जवान बेटा खत्म हो गया। और बहू को बेटी बनाकर रखा। और अपने बेटे की नौकरी भी अपनी बहू को दिलवा दी। उन्होंने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो कार्य किया उसका उदाहरण महान रणनीतिकार चाणक्य के जीवन से मिलता है उन्होंने भी राजा नंद को सत्ता से बेदखल करने के प्रण को पूरा करने के लिए अपना गुप्तांग ही काट दिया था। नानी ने अपने जीवन काल में जो भी परेशानियां कठिनाइयां का सामना कर साथ ही अपने बच्चों को पालने के संकल्प को पूरा किया आज भी उनके जीवन के संघर्ष की कहानी को सोचकर मेरे अंदर भी मजबूत संकल्पना का जन्म हो जाता है आज भी उनके जीवन से प्रेरणा लेकर मैं बड़ी से बड़ी संघर्षों की दरिया पार कर जाती हूं पर उनके जैसी मज़ेदार कचौड़ी आज भी नहीं बना पाती हूं। आज वह हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी बताई हर अच्छी बात हमारे कानों में गूंजती रहती है। मेरी नानी महिला सशक्तिकरण का एक बड़ा उदाहरण थी। जिन्होंने एक अकेली महिला होने के बावजूद अपने चार बच्चों को अकेले दम पर बिना किसी के आगे हाथ फैलाए पाला ,पोस बड़ा किया। और इस काबिल बनाया कि वह आज सब नौकरी करके अपना जीवन अच्छे से बिताने के योग्य बन चुके हैं। काश मेरी नानी आज जिंदा होती, और उन्हें मेरे बारे में भी पता होता कि मैं एक सफल शिक्षिका और समाज के लिए उदाहरण प्रस्तुत करने वाली शिक्षिका बनकर उनके दिए हुए संस्कारों को अपने अंदर उतार के आज भी उनका नाम ऊंचा करने का प्रयास करती हूं।
यू ही नहीं होती हाथों में उंगलियां, ईश्वर ने किस्मत से पहले मेहनत को रखा हैं।..
हौसलों की तरकश में कोशिश का वह तीर जिंदा रखो, हार जाओ चाहे जिंदगी में सब कुछ मगर फिर भी जीतने की उम्मीद जिंदा रखो।

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र

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