बच्चों को मानसिक मजबूती प्रदान करे
कोटा में आत्महत्या करने वाली छात्रा कृति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि :-“मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूँ कि अगर वो चाहते हैं कि कोई बच्चा आत्महत्या न करे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें।ये कोचिंग छात्रों को खोखला कर देते हैं।पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं।इसको पढ़कर मन विचलित हो जाता है कि इस होड़ में हम अपने बच्चों के सपनो को छीन रहे हैं। जब हमारे बच्चे असफलताओं से टूट जाते है तो उन्हें ये पता ही नहीं है कि इससे कैसे निपटा जायें। क्या-क्या बंद करोगे ?स्कूल,परिवार,समाज।कोचिंग क्लासेस बंद करना समस्या का समाधान नहीं है।
अभी कक्षा बारहवीं की प्रायोगिक परीक्षाएँ चल रही हैं। मैं देखती हूँ कि बच्चे इस समय भी बहुत घबराते हैं।कहते है बहुत डर लग रहा है।
*तो डर किस बात का है*? घबराहट किस बात की है?
ये घबराहट है, दबाव की ।दबाव से बच्चों में नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होते हैं ।उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ता है। उन्हें लगता है हमारी छोटी- सी गलती पर हमारा मूल्यांकन किया जाएगा ।जिससे उनमें चिंता, हीन भावना ,तनाव ,अवसाद ,घबराहट जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती हैं ।ये कमी दर्शाती है कि हम बच्चों को मजबूती प्रदान नहीं करते हैं ।जैसे बचपन में डेढ़,दो साल के बच्चे को टेबल से ठोकर लग गयी या चलते- चलते धरती पर गिर गया तो हम बच्चे को यह नहीं समझाते कि बेटा तुम देखकर नहीं चले,अब देखकर चलना अपितु हम धरती पर हाथ मार कर कहते हैं उसने गलती की मैं इसकी पिटाई कर रही हूँ। टेबल पर हाथ मार कर कहते हैं इसने गलती की मैं इसकी पिटाई कर रही हूँ। बच्चों को हम उनकी गलतियों का एहसास बचपन से नहीं कराते तो बड़े होकर उन्हें लगता है कि हम गलती ही नहीं करते। गलती हमेशा उन्हें दूसरों की लगती है। जब दबाव उन पर आता तो वह उस दबाव को सहन नहीं कर पाते क्योंकि हमने बचपन से उन्हें थोड़ा भी सहने की आदत नहीं डाली है इसलिए उनमें सहनशक्ति नहीं रहती है। ऐसा तो नहीं की स्कूल बंद कर दिए जाये या कोचिंग क्लासेस बंद कर दी जाए परिवार में भी पढ़ाई के लिए कहते हैं तो परिवार ही बंद कर दिया जाये।बच्चे इस मार्ग की ओर क्यों अग्रसर हो रहे हैं,हमें इस बात पर विचार करना है। हमें उनकी रुचि का ध्यान रखना चाहिए। माता-पिता का निरंतर हस्तक्षेप और दबाव बच्चों के आत्मविश्वास पर सकारात्मक प्रभाव नहीं डालता है बल्कि वह नकारात्मक प्रभाव की हो बढ़ते जाते हैं । दबाव के कारणबच्चे न तो कठिनाइयों से निपटना सीखते हैं न ही उनमें निर्णय क्षमता उत्पन्न हो पाती है ,न ही जिम्मेदारी वहन कर पाते है न आत्मनिर्भर बन पाते हैं। सबसे पहले माता-पिता को तनाव मुक्त रहने की आवश्यकता है।बच्चों की शिक्षा को लेकर वर्तमान में बच्चों से ज्यादा तनाव तो माता-पिता और अध्यापक में देखा जाता है। माता-पिता को तनाव में देखकर बच्चे भी तनाव में आ जाते हैं क्योंकि आजकल परिवार छोटे होते हैं। एक या दो बच्चे हर परिवार में होते हैं।वह चाहते हैं हमारे बच्चों को कोई कमी महसूस न हो उन्हें सारी भौतिक सुविधाएँ उत्पन्न कराते हैं ।यही बात जो है बच्चों में मजबूती प्रदान नहीं करती है। उन्हें संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न नहीं कर पाती है। वे अपने जीवन के धनात्मक तथा ऋणात्मक पहलुओं के बारे में नहीं सोच पाते हैं। वर्तमान में माता-पिता अपने स्तर को मजबूती प्रदान करने में लगे रहते हैं ।उन्हें महसूस होता है कि यदि बच्चों केअच्छे अंक नहीं आये या वह कुछ अच्छा नहीं कर पाया तो लोग हमें ही कहेंगे कि हमने अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दिया। फिर हमारी कोई इज्जत नहीं रहेगी। माता-पिता इन व्यर्थ की बातों के बारे में न सोचे। बच्चे और माता-पिता इन बातों पर ध्यान दें-
1) *तनाव मुक्त रहे*-
अभी बोर्ड परीक्षाएँ आने वाली है ।इसको लेकर बच्चे तनाव में है ।तनाव में रहने की आवश्यकता नहीं है। तनाव लेने से क्या आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा बल्कि तनाव लेने से समस्या और बढ़ जाएगी जैसे बच्चों के प्रश्नपत्र के एक या दो अंक के प्रश्न छूट जाते हैं तो बच्चे तनाव ले लेते हैं और तनाव में ही दूसरे प्रश्नपत्र की तैयारी करते हैं इससे पूरी तरह वह दूसरे प्रश्न पत्र पर ध्यान नहीं दे पाते हैं ।ध्यान दें अब जो छूट गया तो छूट गया उसके लिए तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं, पर जो आने वाला है उसके लिए हम कर सकते हैं। इसलिए उसे भूलकर आगे की तैयारी की ओर ध्यान दें।
2) *भावनात्मक लगाव* –
माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों से भावनात्मक लगाव रखें। उन्हें महसूस कराये कि वह हर कदम पर उनके साथ हैं ।लेकिन उन्हें अहसास कराये कि जो कुछ करना है आपको अपने लिए करना है, आपको अपना निर्णय लेना है। बच्चों में निर्णय क्षमता उत्पन्न करने की शक्ति उत्पन्न करें । बचपन से ही छोटे-छोटे निर्णय लेने के लिए उन्हें प्रेरित करें ।जिससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा उन्हें क्या पढ़ना है ,आगे क्या विषय लेकर पढ़ना है यह उनकी रुचि पर निर्भर करता है। यह नहीं कि माता-पिता या दोस्तों के दबाव में आकर बच्चे अपना निर्णय बदलते रहे ।
3)समय नियोजन -बच्चों को समय नियोजन का तरीका सीखाना सबसे महत्वपूर्ण है। इससे बच्चे समय पर अपना कार्य करेंगे ।समय पर यदि वह कार्य नहीं करते हैं तो उसके परिणाम उन्हें भुगतने पड़ते हैं।
वर्ष भर का समय उनके पास रहता है शुरू से पढ़ाई का अभ्यास करें ताकि परीक्षा के समय उनको भार महसूस न हो। परीक्षा में 3 घंटे का समय मिलता है तो वह प्रत्येक प्रश्न के अनुसार अपना समय नियोजित कर ले ताकि सारे प्रश्नों को समय से कर पाये।
4) *ग्रुपबाजी से दूरी*- मन को एकाग्र रखने में सबसे बड़ा बाधक तत्व है ग्रुपबाजी। इससे दूर रहें किसी ने यदि कुछ कह दिया है तो हँसी -मजाक में टाल दें।परीक्षा के दौरान मन को शांत रखें ।आवेश में न आये कि चार साथियों को लेकर उनसे लड़ने पहुँच जाए। इससे पूरी जिंदगी पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकता है। जहाँ तक हो लड़ाई -झगड़ों से दूर रहे। स्कूल या कोचिंग में ऐसा माहौल बनता है कि कोई आपको जानबूझकर परेशान करना चाहता है ताकि आप डिस्टर्ब हो और आपका पूरा फोकस पढ़ाई पर न रहे । ऐसे समय आप यदि परेशानी महसूस करते हैं तो माता-पिता से बात करे,स्कूल प्रबंधन को बताये, कोचिंग संस्थान के प्रमुख से शिकायत करें ।
5) *समझाये दबाव न बनाये*- माता-पिता और अध्यापक बच्चों के जीवन की मुख्य धुरी होते हैं ।यदि बच्चे कोई गलती करते हैं या अपने किसी कार्य में असफल होते हैं तो हम उनकी आलोचना नहीं करें बल्कि उन्हें समझाएँ कि इस बार तुम असफल कहाँ हुए ,कमी कहाँ रह गई है और इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है ।इस समस्या को हम कैसे सुलझा सकते हैं ।उस कमी को हम कैसे दूर कर सकते हैं?समस्या का समाधान कैसे हो इस ओर उनका ध्यान केंद्रित करें।
6) *माता-पिता और अध्यापक की भूमिका*–
बच्चों के साथ संवाद करें और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास करें। वर्तमान में अधिकतर माता-पिता कामकाजी हैं इस कारण वह बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं ।जितना भी समय उनके पास है वह उन्हें दें ,उनके साथ बैठे हैं उनकी बातें सुने तो बच्चे आपसे अपनी बात कहने में संकोच नहीं करेंगे। अध्यापक का भी कर्तव्य बनता है कि विद्यार्थियों को जहाँ समस्या आ रही है ,उसका समाधान करने में सहयोग करें। वर्तमान में यह देखने में आ रहा है कि अध्यापक भी चाहते हैं कि वह उनके ही विषय में अच्छे अंक लाये ताकि उनकी इमेज अच्छी बन जाए। माता-पिता और अध्यापक बच्चों को लेकर अपना स्तरीय मापदंड निर्धारित न करें।
7 ) *सिलेबस को समझें*–
रट्टा नहीं लगाये।सिलेबस को अच्छे से समझे और सोचे कि मुझे किस विषय या पाठ पर फोकस करना है ।अपने डाउट क्लियर करें ।नियमित रूप से रिवीजन करें और मॉक टेस्ट ,पिछले साल के प्रश्न पत्र या सैंपल पेपर हल करें। हर एक दिन का उद्देश्य बनाएँ कि आज मुझे यह पाठ पूरा समझकर पढ़ना है।छोटे-छोटे उद्देश्य जब पूरे होते है तो हममें आत्मविश्वास जागृत होता है ।अच्छे स्टडी मैटेरियल का उपयोग करें ।आखिरी पल की तैयारी से बचे। सोशल मीडिया तथा मोबाइल फोन से दूरी बनाए रखें ।रिवीजन के लिए प्रयास करें। पढ़े हुए विषय या पाठ के उपरांत उसे दोहराएँ कि कहीं कोई डाउट तो नहीं है।मुश्किल विषयों को अलग से हाइलाइट करें और उन पर ज्यादा ध्यान दें। पढ़ाई के बीच में छोटे-छोटे विराम लें ताकि आपका दिमाग तरो -ताजा रहेगा ।
8) *परीक्षा की तैयारी*–परीक्षा से पहले अपने सारे स्टडी मैटेरियल को सही तरीके से एक स्थान पर एकत्रित करके रखें ताकि परीक्षा के समय कोई चीज ढूंढने में आपका समय बर्बाद न हो ।परीक्षा के लिए सारी आवश्यक चीज़े तैयार रखें ताकि परीक्षा के दिन आपको परेशानी न उठानी पड़े। नकारात्मक सोच से दूरी रखें और ऐसे लोगों से भी दूर रहे और अपनी तैयारी पर ध्यान केंद्रित करें ।ज्यादा न सोचें अन्य छात्रों से तुलना न करें और अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करें। एक साथ बहुत सारी चीजे़ पढ़ने का प्रयास न करें ।एक बार में एक चीज पर ही ध्यान केंद्रित करें ।कोई चीज यदि नहीं बन रही तो अध्यापक से सम्पर्क करें।संकोच न करें।
9) *परीक्षा कक्ष*–परीक्षा की अपनी मर्यादा रहती है और एक समय सीमा निश्चित रहती है। उस समय सीमा के अंदर ही आपको पूरा प्रश्न पत्र हल करना होता है इसके लिए आज अपनी योजना बना लें। हर प्रश्न के लिए समय नियोजित करें।कई बार जल्दी-जल्दी लिखते हैं तो हाथ में दर्द होने लगता है और हमारी गति धीमी हो जाती है । यदि धीरे-धीरे लिखेंगे तो प्रश्न छूट जाएंगे। जब हाथ में दर्द होने लगे हाथ और उंगलियों को हल्के से झटक दें।कक्ष में ये न देखें कि दूसरे परीक्षार्थी क्या कर रहे हैं।यह देखें कि मुझे कितने समय में क्या करना है। कुछ बच्चों में देखा जाता है कि पूरक पुस्तिका को लेकर होड़ होती है ।जरूरी नहीं कि आप अतिरिक्त कापी भरेंगे तो ही आपको अच्छे अंक मिलेंगे ।आप सही और सटीक उत्तर लिखिए और निश्चिंत होकर प्रश्नपत्र हल करें।
— मीना दुष्यंत जैन