भाषा-साहित्य

प्रयोगशील लघुकथा से तात्पर्य ऐसी लघुकथा से है

प्रयोगशील लघुकथा वह है जिसमें लेखक पारंपरिक ढांचे से हटकर कुछ नया करने का प्रयास करता है। यह प्रयोग कथानक, कथ्य, भाषा, शैली या अन्य किसी भी स्तर पर हो सकता है। आइए इसे विभिन्न उदाहरणों से समझते हैं:

  1. कथानक के स्तर पर प्रयोग:
    पारंपरिक लघुकथा: एक सीधी-सादी लघुकथा जो शुरू से अंत तक एक ही क्रम में चलती है।
    प्रयोगशील लघुकथा: कथानक को गैर-रैखिक (non-linear) तरीके से प्रस्तुत किया जाए। इसके अंतर्गत आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी की लघुकथा को रख सकते हैं। उनकी “टेबल के बाद” लघुकथा एक अलग कथानक पर तैयार की गई थी। जिसमें पूरी टेबल यानी पहाड़े की सहायता से लघुकथा को संपूर्ण किया गया था।
  2. कथ्य के स्तर पर प्रयोग:
    पारंपरिक लघुकथा: लघुकथा का संदेश स्पष्ट और सीधा होता है।
    प्रयोगशील लघुकथा: कथ्य को अमूर्त (abstract) या प्रतीकात्मक (symbolic) तरीके से प्रस्तुत किया जाए। जैसे, एक लघुकथा जो मानवीय भावनाओं को प्रकृति के माध्यम से दर्शाती है, जहां पेड़-पौधे या जानवर मनुष्य की भावनाओं को व्यक्त करते हैं। इसे काव्य पंक्तियों, गजल अथवा अन्य कथ्य के माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
  3. भाषा के स्तर पर प्रयोग:
    पारंपरिक लघुकथा: सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
    प्रयोगशील लघुकथा: भाषा को अलंकृत, काव्यात्मक या असंगत (absurd) तरीके से प्रयोग किया जाए। जैसे, एक लघुकथा जिसमें शब्दों का अर्थ बदल दिया जाए या शब्दों को उलट-पलट कर प्रस्तुत किया जाए, जिससे पाठक को एक नया अनुभव मिले। मगर इस सब के बावजूद लघुकथा का अपना स्वरूप ना बदले। विपरितार्थी शब्दों को लेकर भी लघुकथा रची जा सकती है। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप इसमें किस तरह का प्रयोग कर सकते हैं।
  4. शैली के स्तर पर प्रयोग:
    पारंपरिक लघुकथा: सीधी-सादी शैली में लघुकथाएं कही जाती हैं।
    प्रयोगशील लघुकथा: शैली में नवीनता लाई जाए। जैसे, एक लघुकथा जो पत्रों, डायरी के अंशों, या संवादों के माध्यम से लिखी गई हो। या फिर एक लघुकथा जो कविता और गद्य के मिश्रण से बनी हो। लघुकथा भले ही संवाद शैली में हो, मगर उसे चित्र प्रस्तुति के आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है। अथवा आप शैली के रूप में नया प्रयोग भी कर सकते हैं।
    उदाहरण:
    कथानक के स्तर पर प्रयोग:
    एक लघुकथा जो अंत से शुरू होती है:
    उदाहरण:
    “रमेश ने आखिरी सांस ली। उसकी आंखों के सामने पूरा जीवन फिर से घूम गया। बचपन की वो गलियां, पहली नौकरी, पत्नी से पहली मुलाकात… और फिर वो दिन जब उसने अपने बेटे को खो दिया।”

भाषा के स्तर पर प्रयोग:
एक लघुकथा जिसमें शब्दों का अर्थ बदल दिया गया हो:
“आकाश नीला था, पर नीला क्या था? क्या रंग होता है नीला? क्या यह वही है जो हम देखते हैं या वह जो हम महसूस करते हैं? नीला एक भावना थी, एक सपना, एक सच्चाई जो हवा में तैर रही थी।”

शैली के स्तर पर प्रयोग:
एक लघुकथा जो पत्रों के माध्यम से लिखी गई हो:
“प्रिय मित्र,
आज मैंने एक ऐसा सपना देखा जो सच्चाई से भी ज्यादा सच लगा। तुम्हें याद है वो पुराना घर? वहां की दीवारें अब भी मुझसे बातें करती हैं…”

इस प्रकार, प्रयोगशील लघुकथा पारंपरिक ढांचे को तोड़कर नए विचारों और अभिव्यक्तियों को जन्म देती है, जिससे पाठक को एक नया और रोचक अनुभव मिलता है।

तब यह प्रश्न उठ सकता है कि हम लघुकथा में इस तरह का प्रयोग किस तरह कर सकते हैं? क्या उसे किसी और उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है?
तब हमारा उत्तर होगा कि जी हां, प्रयोगशील लघुकथाओं को नए और रचनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है और उसे उदाहरण द्वारा भी समझा जा सकता है। यहां कुछ ऐसे उदाहरण दिए गए हैं, जो विभिन्न स्तरों पर प्रयोग को दर्शाते हैं:

  1. कथानक के स्तर पर प्रयोग:
    उदाहरण:
    “वह दिन जब समय ने अपनी दिशा बदल ली। सुबह का सूरज पश्चिम में उगा और शाम को पूर्व में डूब गया। लोगों ने देखा कि उनके बचपन की यादें अचानक भविष्य में चली गईं, और भविष्य के सपने अतीत में खो गए। एक बूढ़ा आदमी जवान होने लगा, और एक बच्चे की आंखों में बुढ़ापे की झुर्रियां दिखाई देने लगीं। समय ने सब कुछ उलट दिया, पर किसी को पता नहीं चला कि यह सब क्यों हुआ।”

प्रयोग:
यहां कथानक में समय के साथ प्रयोग किया गया है। समय की दिशा उलट दी गई है, जो पाठक को एक नया और अलग अनुभव देता है।

  1. कथ्य के स्तर पर प्रयोग:
    उदाहरण:
    “एक पेड़ ने फैसला किया कि वह अब जड़ें नहीं बढ़ाएगा। उसने अपनी जड़ें जमीन से बाहर निकाल लीं और चलने लगा। लोग हैरान थे, पर पेड़ ने कहा, ‘मैं भी तुम्हारी तरह आजाद होना चाहता हूं।’ धीरे-धीरे उसकी पत्तियां झड़ने लगीं, और एक दिन वह सूखकर गिर गया। उसकी जगह एक नन्हा पौधा उग आया, जिसने फैसला किया कि वह कभी जड़ें नहीं छोड़ेगा।”

प्रयोग:
यहां कथ्य को प्रतीकात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। पेड़ की आजादी की चाहत और उसके परिणाम को मानवीय भावनाओं से जोड़कर दिखाया गया है।

  1. भाषा के स्तर पर प्रयोग:
    उदाहरण:
    “शब्दों ने विद्रोह कर दिया। वे वाक्यों से निकलकर अलग हो गए और हवा में तैरने लगे। ‘प्यार’ शब्द ने कहा, ‘मैं अब किसी वाक्य का हिस्सा नहीं बनूंगा।’ ‘दर्द’ शब्द ने कहा, ‘मैं अब किसी के साथ नहीं जुड़ूंगा।’ शब्दों ने अपनी आजादी का जश्न मनाया, पर जल्द ही वे अकेले हो गए। उन्हें एहसास हुआ कि उनका अर्थ तभी है जब वे एक दूसरे से जुड़े हों।”

प्रयोग:
यहां भाषा के साथ प्रयोग किया गया है। शब्दों को मानवीय गुण दिए गए हैं, और उनकी आजादी की चाहत को एक नए ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

  1. शैली के स्तर पर प्रयोग:
    उदाहरण:
    “डायरी के पन्ने:

दिन 1: आज मैंने एक तितली देखी। वह मेरे हाथ पर बैठ गई। मैंने सोचा, क्या वह मेरी आत्मा है?

दिन 2: तितली उड़ गई, पर मैंने महसूस किया कि मेरा दिल भी उसके साथ उड़ गया।

दिन 3: आज मैंने देखा कि मेरी छाया भी मुझे छोड़कर चली गई। शायद वह भी तितली बन गई।

दिन 4: अब मैं खुद एक तितली हूं। मेरे पंख हैं, पर उड़ने का साहस नहीं।”

प्रयोग:
यहां शैली में प्रयोग किया गया है। कहानी को डायरी के पन्नों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठक को एक अलग अनुभव मिलता है।

  1. संवाद के स्तर पर प्रयोग:
    उदाहरण:
    “दो पहाड़ों के बीच बातचीत:
    पहाड़ 1: ‘तुम्हें लगता है हम हमेशा यहीं खड़े रहेंगे?’
    पहाड़ 2: ‘हां, यही हमारी नियति है।’
    पहाड़ 1: ‘पर मैं चलना चाहता हूं। समुद्र तक जाना चाहता हूं।’
    पहाड़ 2: ‘तुम्हारे पैर कहां हैं?’
    पहाड़ 1: ‘शायद मेरे सपनों में।’
    पहाड़ 2: ‘तो फिर सपनों में चलो।’
    और फिर पहाड़ 1 ने सपनों में चलना शुरू कर दिया।”

प्रयोग:
यहां संवाद के माध्यम से एक गहरी बात कही गई है। पहाड़ों को बोलते हुए दिखाकर एक नया प्रयोग किया गया है।

  1. अमूर्तता के स्तर पर प्रयोग:
    उदाहरण:
    “एक रंग जो बोलता था। वह नीला था, पर उसकी आवाज लाल थी। जब वह बोलता, तो हवा में हरा रंग छा जाता। लोग उसे समझ नहीं पाते थे, पर वह बोलता रहा। एक दिन उसने कहा, ‘मैं वह हूं जो तुम देख नहीं सकते, पर महसूस कर सकते हो।’ और फिर वह गायब हो गया।”

प्रयोग:
यहां अमूर्तता के साथ प्रयोग किया गया है। रंगों को भावनाओं और ध्वनियों से जोड़कर एक नया आयाम दिया गया है।

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि प्रयोगशील लघुकथा में कथानक, कथ्य, भाषा, शैली, संवाद, या अमूर्तता के स्तर पर नए और रचनात्मक प्रयोग किए जा सकते हैं। यह पाठक को एक नया अनुभव देती है और साहित्य को समृद्ध बनाती है।

इस तरह के प्रयोग करने के बाद अपनी दो प्रयोगशील लघुकथाएं और उसे विचार प्रक्रिया को, जिसकी वजह से लघुकथा ने जन्म लिया है, उसे अपने शब्दों में लिख कर और अपने भावों की अभिव्यक्ति सहित हमें इस ईमेल पर भेज दीजिए।
[email protected]

— ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

*ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जन्म- 26 जनवरी’ 1965 पेशा- सहायक शिक्षक शौक- अध्ययन, अध्यापन एवं लेखन लेखनविधा- मुख्यतः लेख, बालकहानी एवं कविता के साथ-साथ लघुकथाएं. शिक्षा-बीए ( तीन बार), एमए (हिन्दी, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र, इतिहास) पत्रकारिता, लेखरचना, कहानीकला, कंप्युटर आदि में डिप्लोमा. समावेशित शिक्षा पाठ्यक्रम में 74 प्रतिशत अंक के साथ अपने बैच में प्रथम. रचना प्रकाशन- सरिता, मुक्ता, चंपक, नंदन, बालभारती, गृहशोभा, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी, जाह्नवी, नईदुनिया, राजस्थान पत्रिका, चैथासंसार, शुभतारिका सहित अनेक पत्रपत्रिकाआंे में रचनाएं प्रकाशित. विशेष लेखन- चंपक में बालकहानी व सरससलिस सहित अन्य पत्रिकाओं में सेक्स लेख. प्रकाशन- लेखकोपयोगी सूत्र एवं 100 पत्रपत्रिकाओं का द्वितीय संस्करण प्रकाशनाधीन, लघुत्तम संग्रह, दादाजी औ’ दादाजी, प्रकाशन का सुगम मार्गः फीचर सेवा आदि का लेखन. पुरस्कार- साहित्यिक मधुशाला द्वारा हाइकु, हाइगा व बालकविता में प्रथम (प्रमाणपत्र प्राप्त). मराठी में अनुदित और प्रकाशित पुस्तकें-१- कुंए को बुखार २-आसमानी आफत ३-कांव-कांव का भूत ४- कौन सा रंग अच्छा है ? संपर्क- पोस्ट आॅफिॅस के पास, रतनगढ़, जिला-नीमच (मप्र) संपर्कसूत्र- 09424079675 ई-मेल [email protected]

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