कविता

कविता – हम तुम

अकेले हम बूंद हैं,
मिल जाएं तो सागर।

अकेले हम धागा हैं,
मिल जाएं तो चादर।

अकेले हम अल्फ़ाज़ हैं,
मिल जाय तो जवाब ।

अकेले हम पत्थर हैं।
मिल जाएं तो इमारत।

अकेले हम शब्द हैं,
मिल जाएं तो किताब।

अकेले हम दुआ हैं,
मिल जाएं तो इबादत।

अकेले हम अधूरे हैं,
मिल जाएं तो मुकम्मल।

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र

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