वैलेंटाइन डे के फलितार्थ
वैलेंटाइन डे के बाद मुश्किल से 10 दिन के अंदर गायनेकोलॉजिस्ट के पास लड़कियों की भीड़ लग जाती है। टीवी पर विज्ञापन दिखाते हैं कि सिर्फ एक कैप्सूल से 72 घंटों के अंदर अनचाही प्रेगनेंसी से छुटकारा मिल सकता है। बिना सोच-विचार की लड़कियां, ऐसी गोलियां निगल जाती हैं, जिनका न तो कम्पोजीशन पता होता है और न ही कांसेप्ट। इन फेक गोलियों में आर्सेनिक भरा होता है, जो 72 घंटों के अंदर सिर्फ बनने वाले भ्रूण को खत्म नहीं करती, बल्कि पूरा का पूरा Fertility System ही खराब कर देती है। शुरू में तो गोलियां खाकर सती सावित्री बन जाती हैं, लेकिन शादी के बाद पता चलता है कि इसके साइड इफेक्ट क्या होते हैं , जब ये गोलियां काम नहीं करतीं, तो कई लड़कियां घरवालों को बिना बताए गर्भपात करवाने पहुंच जाती हैं और कई अपनी जान भी गंवा बैठती हैं।
प्रेम प्रसंग में पड़ी लड़कियां ही प्रेमियों संग डेटिंग के बहाने रंगरेलियां मनाती हैं और शारीरिक संबंध बनाती हैं। शादी के बाद भी बहुत सी महिलाएं गर्भधारण से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोलियों के अत्यधिक सेवन से अपनी गर्भधारण क्षमता खो देती हैं। सरकार हर साल मातृत्व सुरक्षा, जननी सुरक्षा, बेटी बचाओ जैसी योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन नतीजा सिर्फ शून्य होता है।
कहते हैं, जो दिखता है वही बिकता है। जब विज्ञापन ऐसे होंगे, तो युवाओं को कैसे पता चलेगा कि सही क्या है और गलत क्या। हर विज्ञापन में सावधानी लिखी होती है, लेकिन इतने छोटे अक्षरों में कि किसी को दिखता ही नहीं, जैसे किसी लोन की शर्तें और नियम।
आज हालत ये हैं कि कई लड़कियां बैग में i-Pill लेकर घूमती हैं, जो कि बेहद दुखद है। ऐसी जहरीली चीजें Valentine पर दवा माफिया भारतीय बाजारों में जानबूझकर उतारता है। सबको पता है कि भारत में बुद्धिजीवी वर्ग की कोई कद्र नहीं होती। पहले ये लड़कियों को जहर खिलाकर बीमार करते हैं, फिर उसकी दवा बेचकर अरबों रुपये कमाते हैं। बेटी आपकी हो या हमारी, उसकी जिम्मेदारी भी हमारी और आपकी है। इस Valentine आप खुद सजग रहें और ऐसी चीजें देखने पर विरोध करें। समय है कि Valentine जैसे कुकर्म को बढ़ावा देने वाली घटिया मानसिकता को छोड़कर अपने माता-पिता का सम्मान करें और देश की युवा पीढ़ी को सशक्त बनाएं।
नोट: यह पोस्ट सिर्फ बहन-बेटियों की सुरक्षा और जागरूकता के लिए लिखी गई है, किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं।
— दिलीप पाण्डेय