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महाकुम्भ : भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार

पंजाब, हरियाणा और दिल्ली चैंबर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 60 प्रतिशत से अधिक घरेलू यात्राएं धार्मिक स्थलों की होती हैं। धार्मिक पर्यटन आर्थिक उन्नति और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उत्तर प्रदेश का देश ही नहीं, अपितु विश्व में धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। 

     धार्मिक आयोजन कैसे किसी प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनते हैं, इसका साक्षात प्रमाण है प्रयागराज महाकुंभ।प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ का केवल धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही महत्व नहीं है, अपितु अर्थव्यवस्था को नई उड़ान देने वाला है। इस महाकुंभ में विज्ञान, संस्कृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम दिखाई दे रहा है। पारंपरिक परंपराओं के अस्तित्व से अनुकूलन स्थापित करता विश्व का विशालतम जनसमागम दिव्य, भव्य एवं डिजिटल महाआयोजन के रूप में आधुनिकता की ओर बढ़ चुका है। यूनेस्को द्वारा 2017 में कुंभ मेले को मानव जाति की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद से यह आयोजन विश्व के लोगों के लिए और आकर्षण का केंद्र बन गया है। 

    लगभग 60 करोड़ श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए समर्पित महाकुंभ में उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों के कारीगरों से लेकर उद्योगी तक (एक जनपद – एक उत्पाद कार्यक्रम के अंतर्गत) प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हैं।  सुचारु व्यवस्था चाक – चौबंद करने के लिए ‘महाकुंभ नगर ‘ नाम से नया जिला  बनाया गया है। मात्र 45 दिन में 35 देशों के बराबर आबादी आकर्षित करने वाला यह महा आयोजन उद्योगों के लिए दिवाली से कम नहीं है। अकेले 10 हजार करोड़ रुपये के ऑर्डर छोटे कारीगरों और छोटी इकाइयों के पास हैं।

     महाकुंभ में राज्य सरकार ने 7,500 करोड़ रुपये का बजट रखा है। इस वजह से इसके कुल 25 हजार करोड़ रुपये के राजस्व और दो लाख करोड़ रुपये के कारोबार का अनुमान है।इस महाकुंभ में जूता-चप्पल सिलने वाले कारीगर से लेकर हेलीकॉप्टर चलाने वाली कंपनी तक के लिए कमाई के रास्ते खुले हैं। इसके अतिरिक्त किराने सामान से 4200 करोड़ रुपये, खाद्य तेल से 2500 करोड़, सब्जियों से 2500 करोड़, बिस्तर, गद्दे, चादर, तकिया, कंबल आदि से 1000 करोड़, दूध तथा अन्य डेयरी उत्पाद से 4500 करोड़, हॉस्पिटैलिटी से 2500 करोड़ और अन्य क्षेत्रों में कम से कम 3000 करोड़ रुपये की कमाई होगी।

कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के यूपी प्रमुख महेंद्र गोयल के अनुसार महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं की मूलभूत आवश्यकताओं से जुड़ी चीजों से ही 17,500 करोड़ का राजस्व मिलेगा। स्मॉल इंडस्ट्रीज एंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अनुसार पूजा सामग्री, कपड़े, स्मृति चिह्नों की खरीदारी में हस्तशिल्प, रेडीमेड और खाद्य पदार्थों का व्यापार फल-फूल रहा है। इसका लाभ हर जिले को हस्तशिल्पियों को मिल रहा है, तो कपड़े में गौतमबुद्धनगर, कानपुर, गाजियाबाद, बनारस, मिर्जापुर और उन्नाव के कारीगरों व उद्यमियों को सीधा लाभ मिला है। 

     “इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज सिंघल के अनुसार महाकुंभ ने हर जिले के लिए रोजगार और आय के रास्ते खोले हैं। होटल, रेस्टोरेंट, खाने-पीने के खोमचे, हवाई यात्रा, रेल और सड़क परिवहन की मांग 100 गुना तक बढ़ेगी। वहीं, निर्माण, सुरक्षा, सफाई व स्वास्थ्य सेवाओं में लगभग 10 हजार श्रमिकों व अकुशल कारीगरों को रोजगार मिला । इनकी सर्वाधिक आपूर्ति गोंडा, देवरिया, बलिया, महाराजगंज, कुशीनगर, कानपुर, कौशांबी, चित्रकूट, महोबा, बांदा, हमीरपुर और गाजीपुर से हो रही है।”

    भीड़ प्रबंधन, स्वच्छता, बिजली और पानी की आपूर्ति एवं सुरक्षा व्यवस्था ने गोरखपुर, मेरठ, लखनऊ, सीतापुर, कन्नौज, इटावा और झांसी जिलों को समृद्ध किया है। परिवहन, पर्यटन, पानी, पूजा-पाठ की सामग्री आदि ने मथुरा, वाराणसी, कानपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद और बागपत को करोड़ों रुपयों का काम दिया है। प्रदेश के 82 बड़े ब्रांड्स और देश के 178 ब्रांड्स ने भी अस्थायी रूप से 10000 युवाओं को रोजगार रोजगार दिया है। टेंट सिटी ने स्थायी रूप से 3000 से अधिक रोजगार दिए हैं। 

     महाकुंभ में डिजिटल तकनीक के साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर भी जोर है। यहाँ करीब 500 पर्यावरण संरक्षण संस्थाएँ गंगा और कुंभ की स्वच्छता और निर्मलता बनाए रखने के लिए ‘हर घर से एक थैला, एक थाली’ द्वारा हरित कुंभ में लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक कर रही हैं।इसके लिए भी लगभग 3000 लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं। 

       महाकुंभ में आधुनिक तकनीक का प्रयोग केवल भीड़ को सुचारू रूप से प्रबंधित करने और सुरक्षा आदि के लिए ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि 11 भाषाओं में एआई संचालित चैटबॉट कुंभ सहायक महाकुंभ की समस्त आवश्यक जानकारी भी उपलब्ध करा रहा है।इस कार्य – योजना में अनेक तकनीक विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं।इससे  भविष्य में  उत्तर प्रदेश की आय में अत्यधिक वृद्धि होने का अनुमान है। 

      महाकुंभ को भव्य एवं सुगम बनाने पर सरकार द्वारा लगभग 7500 करोड़ रुपये व्यय किए गए हैं। इस निवेश से न केवल तीर्थाटन और रोजगार सृजन को प्रोत्साहन मिलेगा, अपितु इसके गुणक प्रभाव से उत्तर प्रदेश के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। प्रयागराज की देश के विभिन्न हिस्सों से कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए ही भारतीय रेलवे ने 3,000 विशेष ट्रेनों को चलाया है। प्रयागराज में गंगा पर छह लेन का ब्रिज, चार लेन का रेलवे ओवरब्रिज बनाया गया है। हल्दिया-वाराणसी जलमार्ग को प्रयागराज तक विस्तार दिया गया है। सरकार द्वारा महाकुंभ के लिए विभिन्न विकास योजनाओं पर व्यय के साथ बड़े-बड़े उद्योगपति भी अपनी-अपनी वस्तुओं की ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए 3,000 करोड़ रुपये से अधिक व्यय कर रहे हैं।

     प्रयागराज में 45 दिनों से अधिक  चलने वाले इस समागम में होने वाली आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप राज्य सरकार को 25,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है। वित्तीय लेनदेन 2.5 लाख करोड़ से अधिक होने की संभावना है। 

महाकुंभ की एक महत्वपूर्ण बात यह भी होगी कि डिजिटल लेनदेन पर बहुत अधिक जोर रहेगा। इस डिजिटल लेनदेन से गैर-संगठित क्षेत्र के लोगों की ऋण क्षमता बढ़ने से बैंकिंग क्षेत्र की व्यवस्था भी मजबूत होगी। होटल, रेस्तरां, परिवहन सेवाएं और टूर प्रदाताओं के साथ-साथ क्षेत्रीय हस्तशिल्प, कला और व्यंजनों के लिए बाजार से जुड़े लाखों लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। इस आयोजन से टैक्सी, ई-रिक्शा, स्ट्रीट वेंडर, शिल्पकार और दुकानदार आदि 45 दिनों में ही आठ महीने से अधिक की आय आसानी से अर्जित कर लेंगे। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के अनुसार महाकुंभ की तैयारियों में लगभग 50,000 परिवारों को रोजगार मिल चुका है।लगभग 60 करोड़ श्रद्धालुओं के महाकुंभ आने? का नया विश्व कीर्तिमान स्थापित हो चुका है, इससे श्रद्धालुओं को अमृत स्नान का पुण्य लाभ तो मिला ही है, उत्तर प्रदेश को आर्थिक आय में वृद्धि का सुअवसर मिला है। 

    महाकुंभ में अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आगमन से भी राज्य और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था, दोनों के राजस्व में वृद्धि होगी। महाकुंभ के लिए टूर ऑपरेटरों द्वारा अनेक प्रकार के आकर्षक टूर पैकेजों की पेशकश की जा रही है। प्रयागराज आने वाले तीर्थयात्री केवल महाकुंभ तक ही सीमित नहीं रहेंगे, अपितु आसपास के क्षेत्रों के धार्मिक स्थलों को भी भ्रमण करेंगे। अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, चित्रकूट, नैमिषारण्य, आगरा आदि अन्य स्थलों पर घरेलू एवं विदेशी मेहमानों के आने से सरकार को लगभग 200 करोड़ से अधिक आय सृजित होने की संभावना है।

          कुंभ मेले का सर्वाधिक आकर्षण स्थानीय उत्पादों के स्टाल होते हैं। कुंभ एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जिसके माध्यम से स्थानीय उत्पादों को अधिक से अधिक प्रोत्साहित कर वैश्विक स्तर पर आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ा जा सकता है। इसके लिए बड़े उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से स्थानीय उद्योगों को संरक्षित किया जाना आवश्यक है। महाकुंभ में लोगों द्वारा गरीबों एवं वंचितों को अन्न एवं वस्त्र के दान का भी विशेष महत्व होता है। श्रद्धालुओं द्वारा  संतों को भी दान दिया  जाता है।  भंडारे जैसी गतिविधियां आयोजित होती हैं। इसमें कोई एक व्यक्ति या समाज ही नहीं, अपितु पूरा देश ही एक साथ उठ खड़ा होता है। इस सामाजिक चेतना को भले ही आर्थिक मानकों पर न मापा जा सके, पर ये गतिविधियां भी आर्थिक मापदंड के आधार मजबूत करती हैं।

      महाकुंभ मात्र अध्यात्म – पर्यटन तक सीमित नहीं है, अपितु इस बार का आयोजन अन्य अनेक विषयों के साथ ही वित्तीय साक्षरता का भी कुंभ है। भारतीय रिजर्व बैंक एक छत के नीचे श्रद्धालुओं को बैंकिंग से लेकर साइबर जागरूकता तथा डिजिटल रुपया तक की जानकारी उपलब्ध करा रहा है। आरबीआई के त्रिवेणी मार्ग पर लगे शिविर में स्थित काउंटरों के माध्यम से श्रद्धालुओं को वित्तीय रूप से साक्षर किया जा रहा है। इसके अंतर्गत डिजिटल पेमेंट, उपभोक्ता संरक्षण, वित्तीय साक्षरता और इन्वेस्टमेंट कॉर्नर के विषय में  विस्तृत जानकारी एवं सेवाएं दी जा रही है। इससे बैंकिंग सेवाओं द्वारा ग्राहकों को निवेश के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होगा। 

     महाकुंभ से देश की जीडीपी में 1 प्रतिशत की वृद्धि होने के साथ ही अन्य दूरगामी आर्थिक प्रभाव होंगे, जो उत्तर प्रदेश को आर्थिकी को  एक ट्रिलियन डॉलर वाले लक्ष्य के और निकट लाएंगे। महाकुंभ में आर्थिक प्रभावों से अधिक सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का विकास होगा, जो हमें ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की मूल भावना के और अधिक निकट लाएगा।

— विभा कनन

विभा कनन

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