गीतिका/ग़ज़ल

वो संस्कार जरूरी हैं

कुछ किरणे आई आँगन में, बस द्वार पे दस्तक की दूरी है,
इस अंतस् का तमस मिटाने, यही किरणें तो जरूरी है

सुबह-सवेरे नमन करे जो, मात पिता के चरणों में,
योग-ध्यान-जप भी हो शामिल, वो संस्कार जरूरी है

शौक-मौज वो करे मजे से, सफलता में भी हुए गगन,
पर गिरतों का हाथ पकड़ ले, वो संस्कार जरूरी है

खूब फूल खिलाएं ईश्वर ने, काँटो का भी है ये चमन,
पर सुगंध का ही संग करे, वो संस्कार जरूरी है

सालगिरह वो खूब मनाएं, उत्सव का भी रखे चलन,
जन्मदिवस पर एक वृक्ष लगा दे, वो संस्कार जरूरी है

चिंता, शोक और दुःखों से, चाहे भर जाएँ यह जीवन,
लेकिन नशे से दूर रहे जो, वो संस्कार जरूरी है

— जयदीप 

जयदीप

धार, मध्यप्रदेश

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