कविता

बचपन तुम्हारे लगे सुहावने

बचपन तुम्हारे लगे सुहावने
कोयल की ज्यों मन बहलाने
मदहोशी छा जाती
मुश्किल से ही सम्भल पाती
इस सम्भलने में भी थी
अस्थिर होते मन की
ढीली होती पकड़
अद्भूत अहसास
की गहरी होती जकड़
सांसों की बढ़ती तेजी
कम्पित होता हृदय बार-बार
उस मदहोश हवा में
बिन पंख उड़ी
चाहकर भी जो न कहती
अजब भाषा आंखों की
वो सब कहती
बूंदें बताना न जानती
आंखें छिपाना न जानती
नाचा मन मोर
देख काली घटा चहूँ ओर
विरह वेदना भी न कम थी
आग बरसाती गर्मी
एक झलक शीतल की अनुपम थी
हवा भी करती अटखेली
शर्मा जाती मैं नवेली।।

— डॉ. सुरेश जांगडा

डॉ. सुरेश जांगडा

पिता का नाम : श्री औमप्रकाश सम्पर्क : गांव व डाकखाना-चुलियाणा, जिला-रोहतक (हरियाणा) कवि व लेखक ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुडे रहकर बीस साल तक "भारतीय वायुसेना" में राष्ट्रसेवा का कर्त्तव्य निभाते हुए सनातन आर्य भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति-प्रेमी कवि हृदय व्यक्ति हैं। आपने वायुसेना से सेवानिवृति के पश्चात छ: साल तक खाद्य एवं पूर्ति विभाग में उपनिरीक्षक के पद पर कार्य किया। आपने हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर, एम. फिल, पीएच.डी की उपाधियां अर्जित की हैं। इसके साथ आपने हिन्दी विषय में यूजीसी नेट, एचटेट व बीएड की परीक्षाएं भी उत्तीर्ण की हैं। वर्तमान में आप राजकीय महाविद्यालय सांपला रोहतक में हिन्दी के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हैं। लेखक के विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय शोध-जर्नलों में अब तक 40 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। लेखक की अब तक पांच पुस्तकें पुस्तकें प्यार का पथ अटपटो, हिन्दी साहित्य की दशा और दिशा, हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा के विविध आयाम, चिन्तन, कोरोना काल अवसर या अभिशाप व भारतीय साहित्य में गीतोपदेश का स्थान प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी व हरियाणवीं में कविताएं लिखते हैं।

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