पुस्तक समीक्षा

प्यार से बढ़कर कोई भी मुहूर्त शुभ मुहूर्त नहीं होता

कोई भी लेखक अपनी सृजनात्मकता व वैचारिक मंथन से बड़ी बात लघुकथा के माध्यम से कम शब्दों में अच्छे तरीके से कह सकता है। अपने प्रस्तुतिकरण से सभी का दिल जीत लेती है। वैसे वहीं बात पाठकों तक पहुंचाने में वरिष्ठ लेखक व लघु कथाकार देवेन्द्रसिंह सिसौदिया की यह किताब ‘शुभ मुहूर्त‘ में बहुत-सी बातें कही गई है। जिसमें कोई भी मुहूर्त अपनापन व स्नेह और प्यार से बढ़कर नहीं होता है। एक लेखक की सोच में जब समसामयिक विषयों पर पकड़ मजबूत होती है।

असल में ईमानदार लेखक तोल-मोलकर शब्दों के साथ सही न्याय करता है। मर्मस्पर्शी भाव के साथ दूरदृष्टी वाली सोच ही उसे आगे लेखन के लिए प्रेरित करती है। उसका लेखन ही पाठकों व साहित्यप्रेमियों को अपनी ओर खींच लेता है। क्योंकि सकारात्मक दृष्टिकोण बुराईयों को जड़ से खत्म करने में बहुत ही अचूक अस्त्र है। लघुकथाओ के इस दौर में सच्चा साथी हमारी भावनात्मकता की गहन सोच से ज्यादा आस-पास से छोटी बातों के साथ ही मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं के करीब ले जाने हेतु लघुकथा संग्रह जीवन दर्शन के लिए मील का पत्थर साबित होती है। लेखक की लघुकथाओ में चाहे वह मान हो माता-पिता का वह परिदृश्य में लेखक ने आज के नये जमाने के श्रवण कुमार के संस्कारों को अंकुरित करतीं एक बेटे की यह बात जिससे माँ की आंखों को आंसुओं से भर दिया।

वहीं मां-बाप शीर्षक पर एक बेटी की गंभीर सोच समाजिक चेतना को जागरूक कर रही है। क्योंकि जीवन में माँं-बाप ही तो है। जो दोबारा नहीं मिलते। वहीं सुविधा पर जो कटाक्ष सुविधा घर में किया वह बहुत बड़ी बात है। इस तरह आमजन के करीब लेखक की भावना नाकारात्मक को बताने में लघुकथाओ की चुटकी ली गई है। यह बात समझने वाले इन छोटी छोटी सी लघुकथा के महत्व से सब जान सकते हैं। बंटवारा की नींव रखने वाली भावनात्मकता पर अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने में लेखक पूर्ण रूप से सफल हुए हैं। वहीं एक लघुकथा में उन्होंने धर्म कर्म के साथ साथ पुण्य की झोली भर लीं है। यह सही भी है, मनुष्य अगर सकारात्मकता की सोच रख लें तो भेदभाव अमीरी-गरीबी सब खत्म हो जायेगा। मानवता के प्रति हम सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा सकेंगे। पुरानी यादों के आईने में लाल डिब्बा भी अपने आप में कहीं न कहीं छूती है। पोस्ट आफिस व चिट्ठी पत्री डालने हेतु वह लाल डिब्बा सही में जीवन के लिए बहुउपयोगी रहा होगा। पुराने जमाने में, तभी तो सुख-दुख या फिर रिश्तों के बंधनों में एकजुटता लाना हो तो वह केवल लाल डिब्बा नहीं यादों का पिटारा है। वहीं पांच सौ के नोट जो दुबे जी ने गुप्त दान के रूप में दिये थे। वह लघुकथा सही में संवेदनाओं को भावनात्मकता से जोड़े रखतीं हैं।

इस प्रथम लघुकथा संग्रह शुभ मुहूर्त में विभिन्न विषयों पर 82 लघुकथाओ में हर एक लघुकथा समाज की छोटी सोच को सीख देकर समाजिक ताने-बाने के अनुरूप सही दिशा सही सीख और सही प्रेरणा देती यह लघुकथाओ में चिंतनशील और जनसाधारण दोनों वर्गों में उनके विचारों के लिए शुभ समय भी है। शुभ मुहूर्त भी। इसलिए विचारों के इस लघुकथा संग्रह में मानव धर्म की प्रेरणा है और जो दुसरी और संवेदना लुप्त हो रही है उसे बचाने के लिए इस प्रकार के वैचारिक चिंतन से जिंदा रखा जा सकता है।

इन सभी रचनात्मक विचारों की व्यापक उद्देश्य की पूर्ति के लिए अगर ऐ लघुकथा पाठकों तक पहुंचने का सेतू बंधन बोधि प्रकाशन टीम ने किया। लघुकथाकार लेखक देवेन्द्र सिंह सिसौदिया जी ने अपनी पहली लघुकथा संग्रह में सर्वश्रेष्ठ देने का अटूट प्रयास किया है। ऐसे तो लेखक ने 800 से ज्यादा लेखों, व्यंग आलेख, संस्मरण और कविताओं के साथ लघुकथा लिख कर सही में सृजनात्मकता अभिव्यक्ति की बड़ी मिसाल प्रस्तुत की है। आप इसी तरह अपनी हिंदी भाषा व समसामयिक विषयों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी है। इसी आशा के साथ में अपनी अभिव्यक्ति में एक बात कह रहा हूँ-

जब विचारों का ही सृजन हो
रस प्रभाव भरा यह आंगन हो।
संवाद जिसकी पहल से सब जन एक हो,
उसी लेख, लघुकथाओ का नव-सृजन हो।

पुस्तक समीक्षा: शुभ मुहूर्त
समीक्षक लेखक – हरिहर सिंह चौहान इन्दौर

हरिहर सिंह चौहान

जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001 मोबाइल 9826084157

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