गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दर्दे-इंसां को मैंने लिबासे-अदब पहनाया
बला की ख़ूबसूरत लगे है बदनाम ज़ुबां मेरी

कई बार सोचा कि हम भी ख़ुदपरस्ती सीख लें
मगर दुआ बन गई है अक्सर बद दुआ मेरी

यहाँ जिस्मो-दिल सर्द हैं, आँच तक नहीं कहीं
ग़नीमत है इस टूटी हुई कोठरी में धुआँ मेरी

बहकिए मत जनाब ये मुखौटा देखकर
क्या ख़बर कि ग़र्ज़मंद हो हर इक अदा मेरी

तुम बहलाते हो कि ये मौसम ख़ुशगवार है
इधर तो छाई है नज़रों में ख़िज़ां मेरी

इंसां तो हर तरफ़ थे इंसानियत ग़ायब मिली
मुझे लेकर भटकी है ‘सागर’ तलाश कहाँ-कहाँ मेरी

— सागर तोमर

सागर तोमर

ग्राम -- बाफ़र पोस्ट -- जानी ख़ुर्द जनपद -- मेरठ (उत्तर प्रदेश) पिन कोड -- 250501 फ़ोन -- 9756160288