किस्मत
मेरी फलती किस्मत मैंने खुद मिटाई है
ग्लानि के दामन में सोकर नींद जलाई है
जब लगा सपने सच होते हैं
तभी डूबती कश्ती की राह बनाई है
सब कुछ होने पर कदर नहीं,
कुछ आंसू थे जिनमें सबर नहीं
जिसका कद मैंने बढ़ाया
अंत उसने ही मुझे लघुता दिखाई है
बेपरवाह होकर जो दिल की सुनी थी
दुनिया भूलकर एक राह पर चली थी
और निखरने के शौक में,
टूटकर बिखरने की रस्म निभाई है
किसे कहें क्या हाल मेरा?
टूटे कांच सा बेहाल मेरा
बस चुभने के लिए टूट गया
खुद की खुशियों पर नज़र लगाई है
हां! मेरी फलती किस्मत मैंने खुद मिटाई है
— सौम्या अग्रवाल