रंग बरसे … लेकिन कब से?
भारतवर्ष एक बहुभाषी और विशाल देश है। यहां पर विभिन्न धर्मो और समुदायों के लोग रहते हैं। इस कारण यहां त्योहार भी अलग-अलग तरीके से मनाए जाते हैं। सब धर्म के लोग अपने-अपने त्योहारों को बहुत उत्साहपूर्वक और पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। हर महीने हमारे भारतवर्ष में कोई ना कोई त्यौहार किसी न किसी धर्म का चला ही रहता है। हिंदू धर्म में होली का त्यौहार भी एक विशेष महत्व रखता है। “बुरा ना मानो होली है” इसी डायलॉग के साथ लोग एक दूसरे को रंग लगाने से नहीं हिचकते हैं। सबको पता है की होली का त्यौहार है तो रंग तो लगेंगे ही, इसलिए सब लोग इस त्यौहार को बहुत ही आनंदपूर्वक मनाते हैं। होली के दिन छोटे से छोटे बच्चों से लेकर नौजवान और बूढ़ों तक में उत्साह देखा जा सकता है। जहां एक और छोटे-छोटे बच्चे पिचकारिया लेकर और गुब्बारे में पानी भरकर एक दूसरे के ऊपर रंग फेंकते हैं वहीं दूसरी ओर व्यस्क एक दूसरे के चेहरों को रंग और गुलाल से लाल पीला कर देते हैं। होली के बारे में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। सबसे अधिक प्रचलित कथा हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की है। हिरण्यकश्यप एक बहुत ही शक्तिशाली राजा था। क्योंकि प्रहलाद विष्णु भक्त था और वह विष्णु की बहुत अधिक भक्ति करता था इसी कारण हिरण्यकश्यप ने नाराज होकर उसको कठोरतम दंड दिए थे। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी वाले दिन सबसे पहले प्रहलाद को ऊंचे पहाड़ की छोटी से नीचे फिंकवा दिया गया था लेकिन प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ था। लगातार आठ दिनों तक प्रहलाद को कठोर से कठोर दंड दिए गए। उसको गर्म तेल के बहुत बड़े कढ़ाहे में डाल दिया गया तो कभी उसको हाथी के पैरों से कुचलवाया गया। जब हिरण्यकश्यप ने देखा कि प्रहलाद को इतनी यातनाएं देने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है तो उसने थक हार कर नौवे दिन अपनी बहन होलिका की गोद में प्रहलाद को बिठाकर जिंदा जलाने की कोशिश की। उसने सोचा कि इसके साथ जलकर प्रहलाद भस्म हो जाएगा। होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे आग जला नहीं सकती है, परंतु वह अग्नि में जलकर खुद तो भस्म हो गई और प्रहलाद को कोई आंच नहीं आने दी।
होली के त्यौहार को चंद्रमा की पूर्णिमा के आखिरी दिन मनाया जाता है। अगर होली के इतिहास की बात करें तो हम पाते हैं कि पुरातन काल से इस त्यौहार को मनाया जाता आ रहा है। इतिहास की कई साहित्यिक कृतियों और ग्रंथों में होली का उल्लेख मिलता है। जहां ऋग्वेद(1500 ईसा पूर्व) में “होलिका” शब्द का उल्लेख मिलता है वहीं महाभारत (400 ईसा पूर्व) में हिरण्यकश्यप और प्रहलाद का महत्वपूर्ण वर्णन मिलता है।300 ईसा पूर्व में पुराणों में भी होलिका दहन का उल्लेख हमको मिलता है। 400 ईस्वी में कालिदास की रचनाओं में मशहूर रचना मेघदूत में भी होली का उल्लेख मिलता है । हेमचंद्र 1100 ईस्वी की रचनाओं में से एक रचना “त्रिशतिकल्पलता” में होली का प्रमुख वर्णन है। 1500–1800 ईस्वी मुगल बादशाहों के दरबार में भी होली का उल्लेख मिलता है, जैसे कि बाबर की “तुज़क-ए-बाबरी” में। 1800–1947 ईस्वी ब्रिटिश शासन काल में जेम्स थॉमसन की कृति “इंडिया एंड इट्स पीपल” में भी होली का वर्णन खूब किया गया है।
अगर बात स्वतंत्र भारत की की जाए तो सन 1947 से वर्तमान तक होली का उल्लेख मिलता है, जिनमें कि हिंदी कवियों और साहित्यकारों में होली पर लिखी गई कविताएं और कहानियां काफी उल्लेख डालती हैं। प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मन की होली की चित्रकला भी बहुत मशहूर है। हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर जिले के सुजानपुर की होली और ऊना जिले के मैड़ी का होला मोहल्ला मेला बहुत ही प्रसिद्ध है। मंडी में सेरी मंच पर होली मनाने लोग दूर दूर से आते हैं। हिमाचल प्रदेश और भारत वर्ष (खजुराहो)में कई मंदिरों में होली की चित्रकला का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है,जिससे कि यह स्पष्ट होता है कि यह त्यौहार कितना पुरातन एवम् सौहार्दपूर्ण तरीके से मनाया जाता रहा है। होली के गीत एवम् संगीत भी बहुत चर्चित हैं। फिल्मों में भी होली के गाने बहुत चर्चित है जिनपर कि होली के दिन सारे लोग मिलकर थिरकते हैं और इस त्यौहार को आनंदपूर्वक मनाते हैं।
कहा जाता है कि भारतवर्ष में यह त्यौहार 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता आ रहा है। अगर बात रामगढ़ के अभिलेख की की जाए तो बिना क्षेत्र में स्थित रामगढ़ स्थान पर इशा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। हमारे देश में इसको भगवान श्री कृष्णा और राधा के बीच अटूटप्रेम के रूप में भी जाना जाता है। भारतवर्ष में सब राज्यों में अपने-अपने तरीके से होली का त्यौहार मनाया जाता है । जहां भारत के उत्तरी क्षेत्रों में इस त्यौहार को बहुत अधिक मनाया जाता है वहीं दक्षिण क्षेत्रों में इसको आंशिक रूप से ही मनाया जाता है।परंतु सब का उद्देश्य एक ही होता है कि आपस में सबका भाईचारा कायम रहे और प्यार प्रेम यूं ही बना रहे।
— कैप्टन (डॉ) जय महलवाल (अनजान)