कविता

कविता – पहेली

कुछ अधूरे ख्वाब हैं
दिल के कुछ अरमान है
रिश्ते भी साथ है
कौन अपना या पराया ?
क्या सही या ग़लत ?
यह न सूझता है
चेहरे से दिल का
पता न चलता है ।
सब कुछ सामने है
परंतु ज़िंदगी की ‘ पहेली ‘
न सुलझती है
मन – मस्तिष्क में
प्रश्न बन उलझती है ।

— गजानन पांडेय

गजानन पांडेय

हैदराबाद M- 9052048880

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