कविता

कवि

कवि बनना सरल नहीं है
कलम कॅंपकपाती है
मन छटपटाता है
आत्मविश्वास लड़खड़ाता है
रातों की नींद चली जाती है
तब कोई कवि बन पाता है…।

जमाने भर की व्यथा सहनी पड़ती है
सदियों शब्द साधना करनी पड़ती है
संसार का सुख-दुःख सहना पड़ता है
सौ बात की एक बात पागल होना पड़ता है
तब कोई कवि बन पाता है…।

जब जग हंसता है तब रोना पड़ता है
मन चाहे पुष्पों को छोड़, कांटों को चुनना पड़ता है
पग -पग पर संग्राम महान करना पड़ता है
हृदय होता है छलनी और सृजन करना पड़ता है
तब कोई कवि बन पाता है…।

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111

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