विलुप्त के कगार पर घर के आंगन में चहकने वाली नन्ही चिड़िया
पक्षियों के संसार में कई पक्षी प्रजातियां गायब हो चुकी हैं, और कई विलुप्ति के कगार पर हैं. पहले घर आंगन में चहक.ने वाली गौरैया अब कम ही दिखती है, और इसके विलुप्त होने का खतरा बढ़ता जा रहा है. यह नन्ही चिड़िया आज लाल सूची में शामिल हो चुकी है.
हर किसी की जीवनशैली बदल गयी है. इस बदली जीवनशैली के कारण घर-आंगन में चहकने-फुदकने वाली छोटी सी प्यारी चिड़िया गौरैया इंसानों से दूर होते जा रही है. मनुष्यों की बढ़ती आबादी की वजह से आज पक्षियों का आशियाना कम होता जा रहा है. शहरीकरण की वजह से खेत और खलिहान भी कम होते जा रहे हैं. गौरैया जिसे हम ‘मानव मित्र’ कहते हैं, आज उनके रहने की जगह न के बराबर है. हालांकि गांवों में अब भी बेहतर माहौल होने की वजह से इनकी संख्या अच्छी खासी है, लेकिन शहर में स्थिति चिंताजनक है. लेकिन थोड़े से प्रयास करने पर लोग अपने आस-पास भी गौरैया की चहचहाहट आसानी से सुन सकते हैं. यही वजह है कि राजधानी के कई लोग इसके संरक्षण के लिए आगे आ रहे हैं.
गौरैया का संरक्षण के लिए उठाये जा रहे कई कदम
राजधानी में भी गौरैया की घटती संख्या को लेकर कई कदम उठाए जा रहे हैं. यहां के कई नागरिक समाज, गैर सरकारी संगठन और सरकारी संस्थाएं गौरैया के संरक्षण के लिए जागरुकता फैलाने के काम में लगी हुई हैं. इन प्रयासों का उद्देश्य इस पक्षी की घटती संख्या को रोकना और उन्हें अपने प्राकृतिक आवास में पुनः स्थापित करना है.
2016 में इसे रेड लिस्ट में शामिल किया गया
ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ और आंध्र विश्वविद्यालय के अध्ययनों के मुताबिक, गौरैया की आबादी में 60-80 फीसदी तक की कमी आयी है. इसी कारण, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2016 में इसे रेड लिस्ट में शामिल किया था. इसके बावजूद, गौरैया समेत पक्षियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है.
संकट में है कई पक्षियों का जीवन
जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां जैसे वनों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण और कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग, पक्षियों के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं. तापमान में वृद्धि और मौसम में हो रहे निरंतर बदलावों से गौरैया और अन्य पक्षियों का जीवन संकट में है. यह परिवर्तन उनके भोजन, आश्रय और प्रजनन की प्रक्रियाओं को प्रभावित कर रहा है, जिससे उनकी संख्या में गिरावट हो रही है.
संरक्षण की करनी होगी पहल
भारत सरकार ने गौरैया को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसूची-II में शामिल किया है, ताकि इसका शिकार रोकने और संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके. इसके तहत, गौरैया को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए विशेष अनुमति जरूरी है. बावजूद इसके, इन कोशिशों के बावजूद गौरैया की आबादी में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आया है.
वन्यजीव संरक्षण में चुनौतियां
गौरैया और अन्य पक्षियों की घटती आबादी के पीछे मुख्य कारण हैं – कृषि में अत्यधिक कीटनाशकों का उपयोग, प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना, और शहरीकरण. खेतों, बाग-बगीचों और तालाबों के स्थान पर कंक्रीट के जंगल बन गये हैं, जिससे पक्षियों के लिए भोजन और आश्रय की कमी हो रही है. यह स्थिति पक्षियों के अस्तित्व को और भी खतरनाक बना रही है.
हरियाली को बढ़ावा देना आवश्यक
गौरैया की घटती आबादी का मुख्य कारण शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन है. जब तक हम अपनी जीवनशैली में बदलाव नहीं लायेगे, तब तक इसके संरक्षण के प्रयास अधूरे रहेंगे. घरों में गौरैया के लिए दाना पानी की व्यवस्था, कृत्रिम घोंसले बनाना, और शहरों में हरियाली बढ़ाना, इसके संरक्षण के उपाय हो सकते हैं. विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, जहां कंक्रीट की दीवारें और शीशे की खिड़कियां पक्षियों के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं, वहां हरियाली को बढ़ावा देना बेहद आवश्यक है.
पर्यावरणीय चेतना व व्यक्तिगत प्रयास हों
गौरैया सहित पक्षियों की घटती आबादी केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि हमारे जीवन से जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र में गहरी गड़बड़ी का संकेत है. इसके संरक्षण के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा. हमें पुराने दिनों की तरह अपने घरों और आंगन में गौरैया को वापस लाने के लिए अपने प्रयासों को तेज करना होगा. हमें अपने घरों के आसपास छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे, जैसे कि पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना और उनके आवास के अनुकूल वातावरण तैयार करना. इसके अलावा, पेड़-पौधों को बढ़ावा देना और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना भी आवश्यक है. इस तरह के प्रयास से हम गौरैया और अन्य पक्षियों को सुरक्षित रख सकते हैं.
— विजय गर्ग