लघुकथा

पुरानी यादें

नीरा एक छोटे से गांव की लड़की थी। बचपन में उसे अपने मायके से बहुत लगाव था। हर त्योहार, हर छोटी खुशी मायके में ही जीती थी। लेकिन वक्त बदला, शादी हुई, और वह ससुराल चली गई। शुरुआत में सब कुछ ठीक था। वह अपने ससुराल की जिम्मेदारियों में इतनी उलझ गई कि मायके जाने का समय ही नहीं मिला।

कुछ साल बाद, उसने सोचा कि एक बार मायके जाकर अपने पुराने रिश्तों को ताजा करे। जब वह मायके पहुंची, तो दरवाजा उसकी भाभी ने खोला। भाभी का चेहरा ऐसा था जैसे वह नीरा को देखकर खुश नहीं हुई। अंदर जाकर देखा तो मां किसी बात में व्यस्त थीं और पिता अखबार पढ़ रहे थे। किसी ने नीरा को वैसे गले नहीं लगाया, जैसे वह उम्मीद कर रही थी। नीरा ने धीरे-धीरे महसूस किया कि अब उसे मायके में किसी की कमी नहीं खलती। मां-बाप को बहुओं और पोतों के साथ व्यस्त देख, वह सोचने लगी कि क्या उसकी अहमियत कम हो गई है। बचपन के दोस्तों से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनकी जिंदगी में अब उसके लिए जगह नहीं बची थी।

एक रात, नीरा छत पर अकेली बैठी थी। चांदनी रात थी, लेकिन उसके दिल में अंधेरा था। वह सोचने लगी, “क्या मैं अब किसी की यादों में हूं भी या नहीं?” अगली सुबह, बिना किसी को बताए, नीरा वापस ससुराल लौट गई। रास्ते में उसने यह महसूस किया कि कभी-कभी इंसान को अपनी उम्मीदें कम करनी पड़ती हैं। उसने तय किया कि अब वह खुद को अपने बच्चों और अपने घर में पूरी तरह समर्पित करेगी।

उसके मायके से कोई फोन नहीं आया, न कोई खत। लेकिन नीरा ने इस खालीपन को अपनी ताकत बना लिया। वह समझ गई थी कि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है, न कि पुरानी यादों में खोने का। “यादें चाहे जितनी भी मीठी हों, वक्त के साथ उनका स्वाद फीका पड़ ही जाता है।”

— विजय गर्ग

विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट

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