पर्यावरण

चुनौती बनता ठोस कचरे का निपटान

बढ़ती जनसंख्या के साथ यह समस्या आम है कि उपयोग में लाई गई वस्तुओं को जब कचरे में बदलते हैं, तो फिर उनका क्या होता है? ठोस अपशिष्ट ऐसी ही चुनौतियों में शुमार है। इससे अनेक खतरे भी हैं। वैश्विक ताप में वृद्धि से दुनिया जूझ ही रही थी कि अब ठोस अपशिष्ट भी नई-नई शक्लो- सूरत में मुंह चिढ़ा रहा है। भारत में हरित विकास की अवधारणा अभी जोर नहीं पकड़ पाई है, जबकि दूसरी ओर ठोस कचरा तेजी पसर रहा है। नतीजा यह कि दुनिया एक नई समस्या की ओर बढ़ चली है। भारत में सालाना छह करोड़ बीस लाख टन कचरा उत्पन्न होता है। इसमें प्लास्टिक और चिकित्सीय जैव कचरा भी शामिल है। इसके अतिरिक्त खतरनाक अपशिष्ट उत्पादन लगभग अस्सी लाख टन है और पंद्रह लाख टन ई- कचरा भी एक बड़ी समस्या है।

अब यह भी समझना होगा कि आखिर ठोस कचरा होता क्या है। घर, ,कारोबार, उद्योग, संस्थाओं और कृषि से निकलने वाले बेकार या अवांछित ठोस या अर्ध ठोस पदार्थों को ठोस अपशिष्ट कहते हैं। ठोस अपशिष्ट में कई तरह पदार्थ शामिल होते हैं, जैसे कागज, प्लास्टिक, कांच, कार्डबोर्ड, खाद्य अपशिष्ट, उपकरण और निर्माण अपशिष्ट आदि । इसके अलावा, चिकित्सा जैव अपशिष्ट यानी अस्पतालों से निकलने वाला अपशिष्ट इलेक्ट्रानिक अपशिष्ट (ई-कचरा) मसलन, बैटरी, कंप्यूटर और मोबाइल फोन जैसी बेकार वस्तुएं। निर्माण स्थलों का मलबा, ,जिसमें ईंटें, सीमेंट और लकड़ी समेत रेडियोधर्मी अपशिष्ट जिसमें रेडियोधर्मी पदार्थ होते हैं जो गैस, तरल या ठोस रूप में हो सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) की वैश्विक अपशिष्ट प्रबंधन रपट 2024 के अनुसार, जैसे-जैसे देश अमीर होते जाते हैं, उद्योगीकरण और शहरीकरण की दर, आवास और खपत में वृद्धि होती है। यह अपशिष्ट 2030 तक ढाई अरब सवा तीन अरब टन और 2050 तक से अधिक तथा 2040 अन पौने चार अरब टन हो सकता है। आंकड़ों के 1 के मुताबिक, प्रति व्यक्ति ठोस कचरा उत्पादन में उत्तर अमेरिका अव्वल है, जबकि कुल ठोस अपशिष्ट के मामले में पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया पहले नंबर पर है। वैसे बीते ते कुछ वर्षों के आंकड़ों में चीन को विश्व स्तर पर सबसे अधिक प्रदूषक के | पहचाना गया है। चीन ने पिछले पंद्रह वर्षों में ठोस कचरे के संग्रह और प्रसंस्करण के बुनियादी ढांचे और सेवाओं में बड़े पैमाने पर निवेश किया है।

वर्ष 2022 में 175 देशों ने प्लास्टिक उत्पादन, उपयोग और निपटान से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए 2024 तक प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता विकसित करने पर सहमति व्यक्त की है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ठोस अपशिष्ट धरती को एक नए नुकसान की ओर धकेल रहा है। स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी अपनी जगह हैं। मसलन, ठोस कचरा हवा और पानी में हानिकारक रसायन छोड़ सकता है, जिससे मस्तिष्क क्षति और कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। ठोस कचरे को अनुचित तरीके से संभालने से चोट लग सकती है। ठोस अपशिष्ट जल आपूर्ति को दूषित कर सकता है, हवा को प्रदूषित कर सकता है और भूमि को भी खराब कर सकता है। इतना ही नहीं, इसके खराब प्रबंधन से हैजा, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां फैल सकती हैं। ठोस कचरे का अनुचित निपटान जलवायु संकट बढ़ा सकता है। खतरनाक कचरे में पेंट, सालवेंट, ‘आटोमोटिव’ अपशिष्ट, कीटनाशक और पारायुक्त अपशिष्ट शामिल हैं। खतरनाक पदार्थ विस्फोट कर सकते या आग लगने का कारण बन सकते हैं और कुछ मनुष्यों या पर्यावरण में विषाक्त प्रभाव पैदा सकते हैं। उपभोक्ता उत्पाद और उनकी ‘पैकेजिंग’ में भी कुछ रसायन मात्रा में पाए जाते हैं।

संयुक्त राज्य पर्यावरण संरक्षण एजंसी की 2023 की रपट में भी ऐसे ठोस अपशिष्ट के खतरों से आगाह किया गया है। कार्बनिक प्रदूषक चिंता का कारण हैं, क्योंकि ये हवा और पानी से लंबी दूरी तक चले जाते हैं। ठोस अपशिष्ट कई ऐसी बीमारियों का भी कारण हैं जिन्हें पहचानना शायद अभी बाकी है। वहीं अपशिष्ट न्यूनीकरण और अपशिष्ट प्रबंधन में कम निवेश हुआ है। भारत वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन के हिस्से के में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर लगभग सात हजार 366 खर्च कर देश भर में अपशिष्ट प्रबंधन पहल के लिए आबंटित समग्र कार्यक्रम बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। ‘नेचर जर्नल’ के अनुसार भारत सालाना नब्बे लाख तीस हजार टन उत्सर्जन कर दुनिया में सबसे बड़े प्लास्टिक प्रदूषक के रूप में शीर्ष पर है। यह वैश्विक प्लास्टिक उत्सर्जन का लगभग पांचवां हिस्सा है। जाहिर है, यह भारत के लिए चिंता का विषय है।

ठोस अपशिष्ट दुनिया के लिए चुनौती है। मगर इनमें कुछ आर्थिक अवसर भी छिपे हैं। अनुमान के मुताबिक भारत द्वारा अपनाई गई चक्रीय अर्थव्यवस्था से 40 लाख करोड़ रुपए का वार्षिक लाभ हो सकता है। आवश्यक संसाधनों की प्राप्ति समेत कई संदर्भों में यह रोजगार का एक जरिया भी बना हुआ । कबाड़ से करोड़ों बनाने की अवधारणा को भी ठोस अपशिष्ट में देखा जा सकता है। रोजमर्रा की जिंदगी के बीच कचरा बीनने वाले को देखा जाना आम है। इसमें बच्चों से लेकर बड़े तक शामिल हैं। स्पष्ट है कि ठोस अपशिष्ट नुकसान के साथ कई लोगों के लिए रोजी-रोटी है। है। बावजूद इसके अपशिष्ट प्रबंधन के समाधान का रास्ता खोजा ही जाना चाहिए। अकेले शहरी भारत में प्रतिदिन लगभग डेढ़ करोड़ टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है। मगर देखा जाए तो भारत में अपशिष्ट प्रबंधन कानून और नीतियां जिस सक्रियता के साथ लागू होनी चाहिए, वह अभी भी मजबूत धरातल नहीं बना पा रही हैं। यह सच है कि भारत में उचित निपटान और पुनर्चक्रण के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम है। ई- अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 इलेक्ट्रानिक कचरे को संभालने के लिए है, जिसे दो नवंबर, 2022 को अधिसूचित किया गया। इसके अलावा बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 भी हमारे यहां है, जिसके अंतर्गत अपशिष्ट बैटरियों का पर्यावरण के प्रबंधन सुनिश्चित किया जाता है। वर्तमान परिदृश्य में देखें, तो प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2021 एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देते हैं। फिलहाल, ठोस अपशिष्ट से दुनिया अनजान नहीं है। ऐसे में, इसके उत्पादन और निपटान में संतुलन ही आने वाले खतरे को कम कर सकेगा।

— विजय गर्ग

विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट

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