इतिहास

हिंदू समाज ऋणी है राणा सांगा के 80 घावों का

16 मार्च 1527, खानवा का मैदान, भरतपुर, राजस्थान

बाबर की तोपें आग उगल रही थीं । राजपूतों के नेतृत्व में हिंदू समाज, दिल्ली को मुक्त करवाकर संपूर्ण स्वराज की आखिरी जंग लड़ रहा था । समूचे उत्तर भारत के सम्राट और अब तक सभी लड़ाइयां जीतने वाले राणा सांगा सूर्य की भांति राजपूती सेना के मध्य और केंद्र भाग में सुशोभित हो रहे थे । उनके शरीर पर लगे 80 घाव, एक कटा हुआ हाथ, टूटा हुआ पैर और एक बुझी हुई आंख वीरता के स्वर्ण पदक की भांति चमचमा कर हजारों हिंदुओं को युद्ध में मर मिटने की प्रेरणा दे रही थे । ऐसे में बाबर की तोपों का चलना शुरू हुआ । बाबर मुख्य युद्ध भूमि से कई किलोमीटर दूर अपनी दूरबीन से ही युद्ध का संचालन देख रहा था । तोपों के गोलों से राजपूतों की अग्रिम टुकड़ियां स्वाहा हो रही थीं । हर गोले के साथ हिंदुओं के लोथड़े आसमान में उछल रहे थे । रणचंडी रक्त पी रही थी । नम: पार्वती पतये हर हर महादेव के नारों से आकाश कांप रहा था । तोपों के गोले से हर फटते सिपाही के साथ नया हिंदू सेनानी अपने सीने पर गोले खाने के लिए बेताब हो रहा था । राजपूत अपनी तलवारों की मूंठों को भींच रहा था और सोच रहा था ये कौन सी बला है ये कैसे हथियार हैं ये कैसा कायर दुश्मन है तलवार भाले से नहीं लड़ता, दूर से गोला फेंककर शत्रु की जान लेता है । आखिर हिंदू सेना का धैर्य टूटने लगा । तोपों के सामने तलवारों का क्या काम । आखिर मैदान छोड़कर हिंदुओं की अग्रिम पंक्तियां भागने लगीं ।

राणा सांगा को खबर पहुंचाई गई । राणा जी… सेना भाग रही है सामने से तोपें चल रही है । राणा के रणभूमि में होते हुए सेना भाग जाए । ये हो नहीं सकता । राणा सांगा ने कहा… मुझे अंग्रिम पंक्तियों के आगे एकदम तोपों के सामने ले चलो । सिपेहसालारों ने कहा राणा अब चित्तौड़ की शान हो, आप हो तो चित्तौड़ है । सिर सलामत तो सिर पर विजय की पगड़ी पिर पहन लेंगे । सामने से तोपें चल रही हैं । आपके एक हाथ नहीं, एक पैर नहीं, एक हाथ नहीं, 80 घाव, आप यहीं केंद्रबिंदू से युद्ध का संचालन देखिए । हम परिस्थितियों को देखते हैं । राणा सांगा नहीं माने, वो अग्रिम पंक्तियों पर आगे जाकर तोपों के सामने खड़े हो गए । राणा सांगा को तोपों के सामने देखकर राजपूतों का उत्साह दोगुना हो गया । मतवाले राजपूत योद्धाओं ने अपने सिरमुंड तोपों के मुंह में डाल दिए । राणा पर आंच नहीं आनी चाहिए । सेना जूझने लगी । मुगलों के पांव उखड़ने लगे । कोसों दूर मौजूद बाबर अपनी दूरबीन से सब देख रहा था । उसने तुरंत संदेशा भिजवाया, सीधा गोला राणा सांगा पर मारो । सारी तोपों राणा सांगा पर घुमा दो । कोई ना कोई तो गोला लगेगा । राणा सांगा जरूर मरेगा । आखिर राणा सांगा के सिर पर गोला लगा । वो बेहोश और अत्यधिक घायल हो गए । पता नहीं कितने फौलाद के घोड़े राणा सांगा की जांघों के नीचे दबकर काल कवलित हो चुके थे । लेकिन ये फौलादी गोला उनके प्राणों पर संकट बनकर टूटा । आखिर मेवाड़ को बचाने के लिए, चित्तौड़ के लिए राजपूत राणा सांगा की जान बचाने का अथक प्रयत्न करने में लग गए ।

मेवाड़ के वफादर सरदारों ने आगे युद्ध का नेतृत्व किया । उस दिन राजपूती वीरता का इतिहास लिखा गया । ये तोप से तोप की लड़ाई नहीं थी ये तोप से इंसान की लड़ाई थी । युद्ध का परिणाम ना जीत रहा ना हार । क्योंकि सांगा दिल्ली नहीं जीत सके और बाबर चित्तौड़ या मेवाड़ पर हमला करने की हिम्मत नहीं जुटा सका । छलपूर्वक राणा सांगा को बाबर ने जहर दिलवा दिया और दिल्ली में अपना तख्त महफूज कर लिया । बाबर ने इतिहासकारों से खानवा की जंग पर अपनी एकतरफा जयजयकार करवा ली और बाद में आजाद भारत के 3 मुस्लिम शिक्षामंत्रियों ने भी अपने मन की चला ली ।

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हिंदुआ सूरज, मेवाड़ रतन राणा सांगा पर सपा सांसद द्वारा लगाया गद्दारी का आरोप तीन कारणों से गलत है…

1- 1517 खतौली का युद्ध और 1618 धौलपुर के युद्ध में इब्राहिम लोदी को पहले ही राणा सांगा हरा चुके थे । राणा सांगा ने अपने से तीन गुनी बड़ी फौज को आसानी से हराया था । पहले से ही हारे हुए इब्राहिम लोदी को हराने के लिए आखिर राणा सांगा किसी को बाहर से क्यों बुलाएंगे

2- पंजाब के गवर्नर दौलत खां लोदी ने बाबर को बुलाया था क्योंकि वो दिल्ली से इब्राहिम लोदी को सत्ता से हटाना चाहता था । बाबर ने पूछा भी था कि तुम नमक हरामी क्यों कर रहे हो तो दौलत खां ने जवाब दिया इब्राहिम लोदी क्रूर और जालिम है और हम सरदारों की जान का दुश्मन है ।

3- राणा सांगा उत्तर भारत के एकक्षत्र सम्राट थे । दिल्ली का सरेंडर उन्होंने दो बार लिया था । इब्राहिम लोदी को कैद भी किया था । गुजरात भी जीता और मालवा आज का मध्य प्रदेश भी जीता था । मालवा के सुल्तान को कैद में रखा था । समस्त उत्तर भारत का सम्राट एक हारे हुए और पिटे हुए बाबर से आखिर मदद क्यों मांगेगा ।

लेखक एवं रिसर्च — दिलीप पाण्डेय

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