हिंदुओं की छाती में घुसा नेज़ा (भाला) योगी जी ने निकाल दिया
संभल के एएसपी श्रीशचंद का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने गाजी सालार मसूद की याद में मेला लगाने वाली कमेटी के मौलानाओं को जमकर फटकारा है और मेले की अनुमति देने से इनकार कर दिया है । ये मेला सदियों से लगता आ रहा था जिसे नेज़ा मेला कहा जाता है ।
1949 में जब बंटवारा हुए 2 साल हुए थे तब यूपी के अंदर ही हिंदू महासभा ने हुंकार भरी थी कि अब नेज़ा मेला नहीं लगने देंगे, तब भारतीय मुसलमान डरे हुए थे क्योंकि पाकिस्तान बने 2 साल हुए थे, नेजा कमेटी ने खुद प्रशासन के पास जाकर कहा था कि अब हम नेजा मेला नहीं लगाएंगे लेकिन उस वक्त नेहरू की शह पर कांग्रेसियों ने धरना देकर नेजा मेला करवाने के लिए प्रशासन पर दबाव बढ़ाया जिसके बाद हिंदू महासभा की नहीं चली और नेजा मेला लगा ।
भारत के इतिहास में ये पहली बार है जब किसी हिंदुओं के राजर्षि (योगी आदित्यनाथ) ने नेजा मेला को पूरी तरह से बंद करवा दिया है । सोमनाथ के लुटेरे गाजी सालार मसूद का जिक्र करते हुए योगी आदित्यनाथ ने ब्लैक एंड वाइट बयान दिया है कि आक्रांताओं का महिमामंडन देशद्रोह है । बहराइच में लगने वाले गाजी सालार मसूद का उर्स भी प्रतिबंधित हो सकता है । हिंदू संगठनों ने बहराइच के थानों में प्रार्थना पत्र देने शुरू कर दिए हैं । योगी जी का मैसेज लाउड एंड क्लीयर है ।
यहां समझना जरूरी है कि आखिर कौन था गाजी सालार मसूद । गाजी सालार मसूद के पिता का नाम सालार साहू था और वो सोमनाथ के लुटेरे महमूद गजनबी का सेनापति था । उसकी हिंदुओं को लूटने पीटने की क्रूरता को देखते हुए महमूद गजनबी ने अपनी बहन की शादी सालार साहू से कर दी थी । इसी सालार साहू और गजनबी की बहन से पैदा हुआ था, गाजी सालार मसूद ।
गाजी सालार मसूद 20 साल की उम्र में बहराइच की जंग में श्रावस्ती बहराइच के राजा सुहेलदेव से जंग करते हुए मारा गया था । आज भी उसकी मजार बहराइच में ही मौजूद है । आइए ज़रा इतिहास को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तारीखों को पढ़ लेते हैं ।
1014 ईस्वी- अजमेर में गाजी सालार मसूद का जन्म
1025 ईस्वी- गजनबी ने सोमनाथ मंदिर तोड़ा लूटा, उस वक्त गाजी सालार मसूद की उम्र 9 साल थी और जब गजनबी ने अपने साथियों से पूछा कि क्या सोमनाथ का शिवलिंग तोड़ना चाहिए तब 2 लोगों ने इसका विरोध किया था हालांकी उस वक्त भी 9 साल का ये सालार मसूद इतना जिहादी था कि उसने अपने मामाजान गजनबी से शिवलिंग तोड़ने के लिए कहा था । मामाजान ने अपने भांजे की बात मान ली ।
1030 ईस्वी- इस वक्त गाजी सालार मसूद की उम्र 16 साल थी और इसी साल उसके मामा महमूद गजनबी की गजनी में मौत हो गई थी जिसके बाद गजनबी का सबसे बड़ा बेटा मसूद गद्दी पर बैठा । मसूद ने अपने दरबार में इच्छा जताई कि एक बार फिर भारत को लूटा जाए । उसने अपने फूफा सालार साहू को आदेश दिया तो उसने इनकार कर दिया । तब उसने अपने फुफेरे भाई गाजी सालार मसूद को आदेश दिया तो वो भारत पर आक्रमण के लिए तैयार हो गया । इस वक्त उसकी उम्र सिर्फ 16 साल थी लेकिन वो कच्ची उम्र में भी कितना कट्टर था आप समझ सकते हैं ।
1031 ईस्वी- सालार मसूद ने सिंधु नदी पार की और सबसे पहले उसका मुकाबला आनंदपाल और अर्जुन पाल से हुआ । पहले वो जंग हारा लेकिन फिर गजनी से और सेना मंगवाकर जंग जीत ली । इसके बाद उसका मुकाबला दिल्ली में महिपाल तोमर से हुआ पहले मुकाबले में वो हारा दूसरे में जीत गया । फिर वो मेरठ में हरिदत्त नामके एक शासक को हराकर इस्लाम कबूल करवाने में कामयाब रहा । इसके बाद वो कन्नौज बुलंदशहर में प्रतिहार वंश के राजाओं पर आसान विजय प्राप्त करते हुए अयोध्या में विध्वंस मचाते हुए बहराइच के मैदानों में आ धमका जहां उसका मुकाबला राजा सुहेलदेव से तय हो गया ।
1034 ईस्वी- बैटेल ऑफ बहराइच- इस वक्त सालार मसूद की उम्र करीब 20 साल की थी । राजा सुहेलदेव की सबसे बड़ी कामयाबी ये थी कि वो 21 हिंदू राजाओं को एक साथ मिलाने में कामयाब हुए । बंटोगे तो कटोगे के मंत्र को चरितार्थ करते हुए एक सम्मिलित हिंदू सेना तैयार हो गई । जिसने डेढ लाख अफगानों को गाजर मूली की तरह काट डाला । क्योंकि सुहेलदेव का आदेश एकदम साफ था एक भी अफगान बचना नहीं चाहिए । इस जंग का वर्णन करते हुए मिलाते मसूदी का रचयिता अब्दुल रहमान चिश्ती 1620 में लिखता है कि ये युद्ध इस्लाम के लिए विनाशक साबित हुआ । सुहेलदेव ने अपने पराक्रम से भारत में कई सौ सालों के लिए इस्लाम के सूरज को अस्त कर दिया । आगे चिश्ती ये भी कहता है कि गजनी का ऐसा कोई घर नहीं था जिसका बेटा इस जंग में मारा ना गया हो । इसके बाद डेढ़ सौ सालों तक भारत पर हमला करने की हिम्मत कोई हमलावर नहीं जुटा पाया । लेकिन इस युद्ध को भारत के इतिहास की किताबों में पढाया ही नहीं जाता है ।
— दिलीप पाण्डेय