ग़ज़ल
यूं तो रग रग में खुद्दारी है
लेकिन अपनी इच्छा भारी है
सच्चाई से क्या मतलब इसका
ये सारी चर्चा अखबारी है
राजा राजा है ये तो समझो
जो दरबारी है दरबारी है
गद्दी पर बैठा वो प्यादा है
कहने भर को ही सरदारी है
खुद ही आंखों पर बांधी पट्टी
सत्ता क्या सचमुच गंधारी है
पार उतरने को था पुल टूटा
देखो कैसे किस्मत हारी है
— डॉ. महेन्द्र अग्रवाल