दुल्हन और सरकार
जीवन में कभी कभी आशाएँ निराशा में बदलती है तो चाँद भी सूरज दिखता है ।ज़ुल्फ़ें नागिन लगती है ।हँसना रोना लगता यानी धरती और आकाश का अंतर समझिए ख़त्म ।आज पीपनी भैया का यही हाल था हाल क्या कहें पूरा बेहाल था , ठीक वैसा जी जैसा जनता का सरकार से ठगे जाने पर होता है ।पीपनी भैया दुल्हन लाये थे बड़े अरमानों से जैसे जनता चुनती है सरकार को बड़े अरमान से ।जब लड़की देखने गये थे बड़ी मुस्करा कर प्यार से अदब से बात कर रही थी आँखें थी कि शर्म से झुकी झुकी थी ।पीपनी भैया ने जो भी पूँछा ,मसलन बर्तन माजने आते है रोटी पकानी आती है घर सम्भाल लोगी ।झाड़ू पोंछा आता है क्या ? तब तो हाँ जी ,सिर्फ़ हाँजी निकाला था मुँह से ।यानी ढोक बजा कर देखा था ।जैसे जनता बहुत सोचकर नेता चुनती है ।घर आये तो अपनी क़िस्मत पर नाज़ हो आया था भला आज के जमाने में भी कही ऐसी लड़की देखने को मिलती है और तो और पीपनी भैया की अम्मा भी खुश हो गई जब लड़की के घर में घुसते ही लड़की ने अम्मा के पैसे छू लिए जैसे नेता जब वोट माँगने आते हैं तो बड़े ही विनम्र ,हाथ कि बस जुड़े बंधे सारे कष्ट मिटा देने के वादे ,ना ग़रीबी ना महंगाई ,सबको नौकरी ,चोरी डकैती सब बंद मानों साक्षात भगवान का ही अवतार ले लिये हों ।अम्मा के कलेजे में तो मानो बर्फ ही पड़ गई इत्ती ख़ुश की बस पूँछों ही मत ,ढेर सारे आशीष दे डाले ,जैसे भोली जनता नेता जी पर मुग्ध हो जाती है उनकी मीठी बतगोली सुन ।अम्मा ज़ेवर तो जो ले गई उसके सिवा अपने भी उतार कर प्यार में उसे पहना दिये और आदेशात्मक स्वर में बोलीं ,सुन लल्ला ,ब्याह तो यही होगों ,मन में बोलीं लड़की क्या है ? एक दम ही गऊ है ।लल्ला तो पहले ही बाबरे से हो रहे थे ।इत्ती खूबसूरत लड़की वाको दिल भी हीरा और संस्कार तो क़तई सतयुग के ।पर घर आके सबहीं उलटो हो गये ।अम्मा कौने में बिसूर रहीं सो अलग ,ये तो गऊ नहीं बेल निकली सींग मार रही है बात बात पे सो अलग जैसे चुनाव ख़त्म होने पर जनता बिसूरती है और हाथ जोड़े नेता जी के तेवर ही बदल जाते हैं ।,क़तई व्यस्त जैसे इनसे बिज़ी कोई दुनियाँ में नहीं ,पर ये बिज़नेस देश के लिए नहीं उनके ख़ुद के लिए ही होती है लंबी यात्राये विदेश तक में होती है पहले बाहर तो अनुभव लें मूड ठीक करें वो क्या है कि चुनाव में फ़ज़ीहत हो होती है ,सब कुछ दावँ पर लगाकर भी जब तक चुनाव रिज़ल्ट ना आए साँस कलेजे में अटकी होती है तो पहले ख़ुद नार्मल हों फिर ही तो देश बदलेंगे ,चुनाव के पहले जो मन भर मुस्कान चेहरे पर सजी होती है सारी ग़ायब हो जाती है जैसे लल्ला की दुलहिन के चेहरे की मुस्कान लापता हो गई है ,रह गया है चेहरे पर एक विजय का गर्व ।सातों वचन दुलहिन भूली सातसौ वचन नेता जी ।घर की चाभी दुलहिन के पास और देश की नेता के पास ।दोनों ही गद्दी पा कर अकड़ते हैं आँख दिखाते हैं और आप सोचते रह जाते हैं ,अब पछताते होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ।
— सावित्री शर्मा ‘सवि’