कहानी- दामाद हैं आंखिर
सर्दियों अपना कहर ढा रही थी । चूल्हा- चौका का काम तो मानो एक पहाड़ बना हुआ था। किसी तरह कुछ खिला-पिला कर कंबल का आनंद मिल जाए। रेखा भी चांद निकलते ही इसी ताक में लग जाती।
इसी बीच लंबे वक्त के बाद घर की लक्ष्मी रेखा का माइके आने की सूचना मिली। यह सुनते ही मां तो दिन फिर सप्ताह गिनने लगी। रेखा के साथ दामाद जी को देख पूरा घर खुशी की तरंगों में गोता लगाने लगा।
सुंदर सुशील बहु सोनी जो खुद से भी ज्यादा घर वालों का ख्याल रखती। उनकी सेवा के लिए वह सदा तत्पर रहती। लेकिन कुछ दिनों से स्वास्थ्य की दिक्कत देख वह कुछ परेशान सी थी। सासू मां भी हालात को देखते हुए क्या डॉक्टर, क्या वैध कुछ भी न छोड़ी, लेकिन सुधार के नाम पर शून्य हीं था।
सोनी भी मां की चाय से लेकर दवाइयां तक का पूरा ख्याल रखती। मां भी घर के कामों में भरपूर हाथ बंटाने की भरपूर कोशिश करती। सोनी मुर्गी की ध्वनि से उठती तो रात ग्यारह बजे तक बर्तनों से खेलती । जिससे सासु मां मौका मिलते ही अपनी सोनी की तारीफों से नहीं चूकती।
अगले दिन दोनो पति -पत्नी (बेटी रेखा और सिंहल जी) सैर सपाटे के लिए निकल पड़े। जंगलों पहाड़ों, कल- कल करती धोलेश्वरी नदी की धाराऐ तू कहीं दूर-दूर तक सुपारी के खम्भो में छोटे-बड़े पान की लताओं के बीच उलझते रहे। एक तरफ इन्हें देखने का आनंद, तो दूर पहाड़ों से आती निर्मल जल की धाराएं मन को तृप्त कर रही थी। इन हवाओं के बीच चांदनी ने कब अपना पहरा जमा लिया पता भी ना चला । देखते- देखते घड़ी का कांटा दूसरे दिन को भी पुकारने लगा। बढ़ती घड़ी का कटा देख सासू मां ने बहु सोनी को डाइनिंग टेबल पर भोजन पानी सब कुछ तैयार कर आराम करने की सलाह दी। सोनी का भी बिस्तर पर जाते कब पलको ने अपना कहर शांत कर दिया पता भी ना चला।
करीब रात डेढ़ बज रहा था। रात्रि के सन्नाटे को चिरते हुए सिर्फ बड़े भाई ही अपना पहरा जमा रहे थे। रेखा और सिंगल जी को देख भैया ने व्यंग्य भरे शब्दों में कहा–आने में बड़ी देर कर दिया आप लोगों ने! कोई नहीं, मेज पर सब कुछ तैयार रखा है, भोजन पानी कर आराम कीजिए । मैं भी चला आराम करने ।
इतना कहते हैं वह अपने कमरे की ओर बढ़ गए । यह सुनते ही मि. सिंहल को बड़ा अजीब लगा। दोनों ने भोजन पानी भी कर लिया। उन्होंने रेखा से भी इस बारे में बात करनी चाही, लेकिन वह अपने भाई का पक्ष लेती रही । उधर सिंहल जी के दिल में आक्रोश सुलगता रहा। रेखा मौन हो सुनती रही।
अगली प्रातः ही सिंहल जी को जोर शोर से अपना बोरिया बिस्तर समेटते देख बहन रेखा शिकायत भरे शब्दों में कहा –भाभी कल की वजह से यह आज ही ये घर वापसी की जिद कर रहे हैं।
“क्यों कल क्या हुआ था! “जीजा जी क्या हुआ? सोनी ने अनजान स्वर में कहा।
“नहीं बस , कुछ नहीं,”जीजा ने आक्रोश भरे शब्दों में कहा।
“जब हम आए तो आप लोग तो सभी नींद मार रहे थे , किसी ने भोजन तक का नहीं पूछा। ” रेखा ने कहा।
“लेकिन क्यों, यह क्या बात हुई! “सोनी ने एतराज भरे शब्दों में कहा।
सोनिया का उतरा चेहरा देख मां ने सफाई देते हुए कहा– रात बहुत हो चुकी थी, वह मैंने ही उसे भोजन पानी तैयार कर आराम करने की सलाह दिया था। इसमें बुरा मानने की क्या बात है? आखिर वह पूरा दिन काम करती है, और रात के बारह बजे कोई किसी का इंतजार करता है क्या?
“मम्मी आप भी! तो क्या कोई सिर्फ खाने के लिए कहीं जाता है ! फिर तो मेरा यहां आना ही बेकार है सिंहल जी ने कहा।”
भाभी को तो एक बार कम से कम पूछना चाहिए था, रेखा ने कहा।
बेटी ये तुम क्या बोल रही हो! मां ने आश्चर्य भरे शब्दों में बोला।
यह भी तो तुम्हारा ही घर है और अपने घर में किसी के पूछने बोलने का क्या इंतजार करना! मां ने समझाते हुए कहा ।
“नहीं, ये घर तो रेखा का है मेरा नहीं।”सिंहल जी ने आक्रोश से कहा।
“ये आप कैसी बात कर रहे हैं। मैंने आप चारों में कभी कोई अंतर नहीं किया । मां ने कहा।”
सोनी सब कुछ सुनती रही ।मां की लब- लबाई आंखों को देख– मां चलिए यहां से, आराम कीजिए वरना आपकी तबीयत बिगड़ जाएंगी । और हां जीजा जी मुझे माफ कीजिए । मैं तो आपको इसी घर का सदस्य समझती थी , लेकिन आज समझी आप तो दामाद हैं आंखिर ! मुस्कुरा कर सचमुच , सब कुछ बदल गया लेकिन इंसान की सोच आज भी वही रहें गयी ।
— डोली शाह