ग़ज़ल
आंख खोली दर्द झेले हैं
देख लो कितने अकेले हैं
आंसुओं के रंग मत देखो
हादसों के साथ खेले हैं
उम्र गुज़री तो समझ आया
ज़िन्दगी है तो झमेले हैं
काम की बातें अभी छोड़ो
सीख लेंगे ये नवेले हैं
आपसे मिलकर समझ आया
नीम से कड़वे करेले हैं
जी रहा हू अब भी तन्हाई
राह में सब सूने मेले हैं
— डॉ. महेन्द्र अग्रवाल