कविता

पहलगाम

क्या तुममें है दम
या उसमें है दम
जिसके दम से
तुम दम भरते हो
दम भरने का दम
उसमें जिसे बिना
कारण ही तुम
निष्प्राण किये हो
भर न सकेगी
पूरी उम्मत भी
उनमें नवजीवन
फिर तुम एकाकी
इतने बलवान बने हो
ध्वंस करो उतना
जितना निर्माण
कर सको
क्यों अपने सर
पर पापों को
लाद रहे हो
पूज्य हुआ न कोई
भी इस पथ पर चलकर
तुम ही क्यों फिर
उल्टा सपना
पाल रहे हो ?

— देवेन्द्रपाल सिह बर्गली

देवेन्द्रपाल सिंह "बर्गली"

उधमसिह नगर उत्तराखण्ड M- 9458140798

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