कविता

प्रकृति की पुकार

प्रकृति की पुकार
मुझे दो दुलार
न करो मेरा संहार ।
मैं सदा देती हूं
तुम पर उपहार लुटाती हूं
संसाधनों की संपत्ति से
तुम्हें मालामाल करती हूं
देश की प्रगति में
काम आती हूं ।
मेरा संरक्षण –
तुम्हारा जीवन है
तुम्हें इसे समझना है
जीवन से खिलवाड़ न करना है ।

— गजानन पांडेय

गजानन पांडेय

हैदराबाद M- 9052048880

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