मीडिया की आज़ादी को कृत्रिम बुद्धिमत्ता की चुनौती
किसी भी देश अथवा समाज में स्वतंत्र मीडिया के बिना स्वस्थ लोकतंत्र को सुनिश्चित कर पाना संभव नहीं हो सकता, क्योंकि मीडिया वास्तव में लोकतंत्र का प्रहरी होता है। लोकतंत्र का ही क्यों, मीडिया तो राष्ट्र, मानवीय सभ्यता और संस्कृति, यहां तक कि मानवता का भी रक्षक होता है। आश्चर्य नहीं कि समय-समय पर भारत एवं दुनिया भर में मीडिया ने अपनी भागीदारी एवं भूमिकाओं से इसे सही साबित भी किया है। यही कारण है कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। समय बीतने के साथ-साथ मीडिया ने अपने पिछले अनुभवों के आधार पर अपनी भागीदारी एवं भूमिकाओं में अपेक्षित परिवर्तनों के साथ विस्तार दिया है।
मीडिया के कार्य करने का मुख्य आधार ‘जनपक्षधरता’ और इसका प्रधान उद्देश्य ‘जनता में जागृति’ लाना होता है और इन्हीं दोनों कारणों से मीडियाकर्मियों यानी पत्रकारों के लिए बिना रोक-टोक, विरोध और अड़चन के अपने कार्यों का निष्पादन कर पाना कभी भी सहज नहीं रहा है। दरअसल, जनपक्षधरता और जनता में जागृति लाने का कार्य अत्यंत जोखिम भरा होता है। इसीलिए दुनिया भर में प्रायः पत्रकारिता को बेहद जोखिम भरा कार्य माना जाता है।
दुर्भाग्य से, दिनोंदिन जोखिम बढ़ने के कारण विश्व भर के लोकतांत्रिक देशों में पत्रकारों के लिए निष्पक्ष रहकर कार्य कर पाना लगातार मुश्किल और जोखिम भरा होता जा रहा है। कई बार अपने कार्यों का निष्पादन करते हुए पत्रकारों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। अब तक विश्व भर से ऐसे कई उदाहरण सामने आ भी चुके हैं। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से 2020 के बीच दुनिया भर में 1,200 से अधिक मीडिया पेशेवरों की हत्या कर दी गई। इनमें से 90 प्रतिशत मामलों में उनके हत्यारे दंडित नहीं किए जा सके।
इसके बावजूद, पत्रकारिता के मानदंडों पर खरे उतरते हुए पत्रकार सत्य को उजागर करने की अपनी जिम्मेदारी निभाने को लेकर अपनी जान को जोखिम में डालने से भी नहीं हिचकते। अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर कार्य करने वाले पत्रकारों की आवाज को कोई भी ताकत दबा न सके और उनके निष्पक्ष और सशक्त अभियानों पर कोई भी व्यक्ति, संस्थान या सरकार अंकुश न लगा सके, इसके लिए उनकी स्वतंत्रता बहुत जरूरी और अहम है। जाहिर है कि यदि वे स्वतंत्र नहीं रहेंगे तो अपने कार्यों को निष्पक्ष रहते हुए अच्छे ढंग से नहीं कर पाएंगे।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रेस की स्वतंत्रता के मूलभूत सिद्धांतों का पालन करने तथा पत्रकारों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 3 मई को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन उन पत्रकारों को स्मरण और सम्मानित करने तथा श्रद्धांजलि देने के लिए भी मनाया जाता है, जिन्होंने सत्य को उजागर करने की कीमत अपनी जान देकर चुकाई है अथवा जिन्होंने देश-दुनिया में अपनी पत्रकारिता के दम पर अपना नाम बनाया और एक मुकाम हासिल किया है।
प्रतिवर्ष रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) द्वारा प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक नामक एक वैश्विक सूची प्रकाशित की जाती है। इस सूची में विश्वभर के पत्रकारों को कार्य करने की उपलब्ध स्वतंत्रता के आधार पर देशों की रैंकिंग प्रस्तुत की जाती है। बता दें कि प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट 2024 में भारतीय पत्रकारों को लेकर चिंताजनक रुझान दिखाई दिए हैं। दरअसल, 2024 के इस सूचकांक में भारत विश्व भर के 180 देशों में 159वें स्थान पर मौजूद है, जो पिछली रिपोर्ट से भी नीचे है। रिपोर्ट में मीडिया स्वामित्व संकेन्द्रण, पत्रकारों का उत्पीड़न और इंटरनेट शटडाउन जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है।
गौरतलब है कि ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ मनाने के लिए यूनेस्को की ओर से प्रत्येक वर्ष एक वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। इस वैश्विक सम्मेलन में सामान्यतः पत्रकारों, मीडिया नेताओं, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी होती है। बता दें कि 2025 में यह सम्मेलन 5 से 7 मई तक ब्रूसेल्स में आयोजित होने वाला है, जिसमें पत्रकारिता में एआई की परिवर्तनकारी भूमिका और मीडिया स्वतंत्रता के लिए इसके निहितार्थों पर ध्यान केंद्रित किया जाना है।
यूनेस्को द्वारा वर्ष 2025 के लिए विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की थीम ‘रिपोर्टिंग इन द ब्रेव न्यू वर्ल्ड – द इम्पैक्ट ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऑन प्रेस फ्रीडम एंड द मीडिया’ घोषित की गई है। इस थीम का उद्देश्य आधुनिक पत्रकारिता में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बढ़ते प्रभाव पर प्रकाश डालना है। गौरतलब है कि इस थीम के माध्यम से विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 2025 के अवसर पर तेजी से एआई-विनियमित डिजिटल वातावरण के भीतर मानव अधिकारों की रक्षा करने की तत्काल आवश्यकताओं पर जोर दिये जाने की संभावना है।
— विजय गर्ग