जवान बेटे के अल्प समय में दुनिया से चले जाने पर एक पिता की मनोदशा
दुनिया में बहुत गम है, मेरा तो यह गम बहुत कम है। जब लोगों का दुख दर्द को देखता हूं तो मेरे आंसू आपने आप बहें निकलते हैं। समय का यह चक्र ऐसा ही होता है। आज ऐसे समय जो दो वर्ष के रुप में बीत गया। आज के दिन ही ऐसा था जो कभी किसी दुश्मन का भी इस जीवन में ना आए। जब मेरी आंखों का तारा एक सड़क दुघर्टना में लहुलुहान हालत में सड़क पर तड़पता रहा, और वह खड़े तमाशबीन लोग उसे अस्पताल जल्दी नहीं ले गये। वह लोग मोबाइल से फोटो विडियो बनने में लगे रहे ? यहां तक कि जिस वाहन से उसका एक्सीडेंट हुआ उस वाहन चालक ने पहचान होने के बाद भी उस घायल जवान बच्चे को अस्पताल नहीं पहुंचाया। यही स्तर है मानवीय मूल्यों का है। जो वर्तमान समय में धराशाई हो चुका है। तभी तो वह व्यक्ति जिसने टक्कर मारी थी वह खुद वहां से भाग गया। बस यही लेट लतीफी ऐब्बुलेस का इंतजार और तमाशे देखने वालों के कारण मेरा जवान बच्चा काल के भंवर में फंस गया। दो तीन दिन इलाज़ करने के बाद भी हम खाली हाथ रहे गये। आज दो साल हो गए, पर जब भी उस घटनाक्रम को याद करता हूं तो मन स्थूल व शुन्य हो जाता है। इतना गेर ज़िमेदारी भरा इंसान क्यों हो गया है क्या आदमी से दुसरे आदमी का कोई सरोकार,दया करुणा भव नहीं बचा क्या। भारत सरकार दुघर्टनाओं पर सख्त रवैया अपनाया रहीं हैं, क्योंकि अल्प समय में सड़क दुघर्टनाओं में जवान व्यक्ति को छीन लेती है। इस लिए सड़क दुघर्टनाओं व सुरक्षा के प्रति नियम बनाए कि घायलों को सही व त्वरित ईलाज मिले। उन्हें जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचने वालों को इनाम भी सरकार देगी। जिससे सड़क दुघर्टनाओं में बढ़ती मौत का सिलसिला कम से कम हो। मददगार लोगों के प्रति नरमी व मानवीय मूल्यों व उनकी सेवा भाव का सम्मान हो इस बात को भी सुनिश्चित करने का प्रयास अब ज़ारी है। क्योंकि घायल व्यक्ति को सही इलाज मिल सके और उनकी जान बच सकें। आज वही तरीक है जिस दिन मेरा सम्मान मेरा अभिमान मेरा कुल दीपक बुझ गया था। हम सबको अकेला छोड़कर वह अल्प समय में चला गया। बेटा कैसे कहूं कि तु मुझे छोड़ कर चला गया। कैसे कहें दूं कि तूं मेरे साथ नहीं है। कैसे कहूं कि आज दो साल पूरे हो गए। क्योंकि बेटा तेरे बिना एक एक दिन विशाल पहाड़ सा लगता है, रात भयभीत करने लगतीं हैं। हम तो यही मानकर खुश हैं कि तूं जितने दिन भी हमारे साथ रहा, वह दिन मेरी जिंदगी के सबसे खुशनुमा पलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। जब भी में तेरी हंसती हुई तस्वीर देखता हूं तो मुझे तुझसे जुड़ी हर एक पुरानी स्मृतियां मानस पटल पर दिखाई देने लगती है। 4 अगस्त सन् 2000 में तेरा जन्म हुआ था। में कितना खुश था मेरे घर पहली संतान के रुप में आया तो मुझे पिता होने का एक सुखद अहसास हुआ। यह अनुभूति ईश्वर के आशीष से ही सम्भव है। वहीं धीरे धीरे तेरा घुटनों पर चलने से लेकर मेरी उंगली पकड़कर चलना, फिर साईकिल पर आगे सीट लगवाकर तुझे घूमने ले जाना। बहुत याद आता है तुझे स्कूल छोड़ने जानें से लेकर मेला दिखने लगे जाना झूलो में घुमाना और शाम को चाट चोपाटी पर जाना। ऐसी ना जाने कितनी यादें हैं जो आज अचानक याद आ रही है। वहां लम्हे जो भूलें ना भूलाए जायेंगे। बेटा देखते ही देखते तूं इतना बड़ा हो गया कि मोटर साइकिल पर पापा के साथ मम्मी की गोद में बैठने वाला बच्चा अपने पिता को पीछे गाड़ी पर बिठाने लगा। हमें पता ही नहीं चला मेरा पुरु बेटा इतना बड़ा हो गया कि कालेज जाने लगा। क्रिकेट टूर्नामेंट में भाग लेकर पढ़ाई के साथ खेलकूद में भी पुरस्कार पाने लगा। हर एक चीज में वह अव्वल आने लगा। अपने दोस्तों में भी वह बहुत मिलनसार रहा। हमारे परिवार में मम्मी, बुआ,भाभी,भाई, नाना-नानी मामा-मामी और अपनी बहनों का प्यारा राज दुलारा मेरा बेटा मेरे कामों में भी हाथ बांटने लगा। कितने सपने देखें थें सब के सब चंद मिनटों में खत्म हो गये। पर लाख चातुराई इंसान कर लें उस ईश्वर के आगे किसी की नहीं चलती। क्योंकि जितनी चाबी भरी राम ने उतना ही चलें खिलोना। अब इस दुनिया में तूं नहीं है बेटा पर वो लम्हे जो हंसी खुशी के बीते पल के बारे में सोचता हूं तो आंखे भर आती है। वो पल ही तो है जो मुझे जीने का होंसला दे रहा है। तभी तो तेरी यादों के साये में आज बेटा हम तेरी दुसरी पुण्यतिथि पर तुझे यह शब्दों की श्रद्धांजलि दे रहे हैं। मुझे गर्व है कि तुझ जैसे बेटा का पिता होने का सुख मुझे मिला। सफ़र लम्बा नहीं चला पर जितना भी रहा अच्छा रहा। अब जब भी तेरा पुनः जन्म हो तो मुझे तेरे पिता होने का दोबारा सुख मिले। तूं जहां भी है बहुत खुश रहे , जों खुशियां इस जीवन में तुझे प्राप्त नहीं हो पाई , वो सब खुशियां तुझे और दुगुनी होकर मिलें। तूं तो हमारे लिए हमेशा ध्रुव तारे की तरह चमकता रहे , और जहां भी रहे सबको अपनी खुशमिजाजी से अपना बनाते रहे। क्या लिखूं हाथ कांपने लगाते है तूं मेरा सहारा था पर ना जाने किस जहां में खो गया। आंसु हर रोज बहते हैं तेरी याद में
तूं हम सब को अकेला छोड़ गया
पर तेरा इतना साथ ही था
तूं उस ईश्वर की देन था
उन्हीं के घर चला गया।
मेरे बेटे की दूसरी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, यह एक पिता की मनोदशा शब्दों में है।
— हरिहर सिंह चौहान